पश्चिमी हिन्दी

पश्चिमी हिन्दी- शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित पश्चिमी हिंदी के अन्तर्गत पाँच बोलियों आती है- हरियाणी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुन्देली। डॉ. भोलानाथ तिवारी ने पश्चिमी हिंदी के अन्तर्गत दो अन्य बोलियों ताजब्बेकी तथा निमाड़ी को भी स्वीकार किया है। जार्ज ग्रियर्सन ‘कन्नौजी’ को बोली न मानकर ब्रजभाषा की उपबोली मानते हैं, परन्तु उन्होंने जनमत को ध्यान में रखकर […]

पश्चिमी हिन्दी Read More »

मानक हिन्दी का भाषा वैज्ञानिक विवरण (रूपगत)

मानक भाषा मानक भाषा मानक का अभिप्राय है- आदर्श, श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित।मानक भाषा की पहचान यह भी है कि उसका प्रयोग शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।व्याकरणसम्मत परिनिष्ठित रूप मानक भाषा कहलाता है जो विकास की प्रक्रिया से निखरकर प्रयोग करने वालों का माध्यम बन

मानक हिन्दी का भाषा वैज्ञानिक विवरण (रूपगत) Read More »

साहित्यिक हिन्दी के रूप में खड़ी बोली का उदय और विकास

खड़ी बोली गद्य के आरम्भिक रचनाकारों में फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के बाहर दो रचनाकारों— सदासुख लाल ‘नियाज’ (सुखसागर) व इंशा अल्ला ख़ाँ (रानी केतकी की कहानी) तथा फ़ोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता के दो भाषा मुंशियों— लल्लू लालजी (प्रेम सागर) व सदल मिश्र (नासिकेतोपाख्यान) के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु पूर्व युग में मुख्य संघर्ष हिंदी की

साहित्यिक हिन्दी के रूप में खड़ी बोली का उदय और विकास Read More »

काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा का उदय और विकास

“ब्रजभाषा” को अंतर्वेदी के नाम से भी जाना जाता है। पश्चिमी हिन्दी की सर्वाधिक प्रमुख बोली “ब्रजभाषा” है जो इसलिए इतनी महत्त्वपूर्ण हो गई, क्योंकि इसका प्रयोग 600 वर्षों तक साहित्य में होता रहा। यही कारण है कि यह बोली के सीमित क्षेत्र को छोङकर भाषा कही जाने लगी। ब्रज शब्द संस्कृत के ब्रज शब्द

काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा का उदय और विकास Read More »

काव्य भाषा के रूप में अवधि का उदय

भाषा के रूप में अवधी का पहला स्पष्ट उल्लेख अमीर खुसरो की रचना खालिकबारी में मिलता है। रोडा कृत ‘राउलबेल’ व दामोदर पंडित कृत ‘उक्ति-व्यक्ति प्रकरण’ में अवधी के प्रयोग से स्पष्ट होता है कि अवधी एक भाषा के रूप में 13वीं सदी में स्थापित हो चुकी थी। मूल प्रश्न है कि अवधी के मध्यकाल

काव्य भाषा के रूप में अवधि का उदय Read More »

1. अपभ्रंश (अवहट्ट सहित) और पुरानी हिन्दी का संबंध

प्रस्तावना प्रत्येक भाषा के दो रूप होते हैं। एक है उसका बोलचाल का रूप और दूसरा है उसका मानक साहित्यिक रूप। प्राचीन भारतीय भाषा के दो रूप थे। बोलचाल के तौर पर वह ‘लौकिक संस्कृत’ कहलाती थी और उसका साहित्यिक रूप “वैदिक संस्कृत’ कहलाता था। वैदिक संस्कृत के रूढ़, जड़ और लौकिक संस्कृत से कट

1. अपभ्रंश (अवहट्ट सहित) और पुरानी हिन्दी का संबंध Read More »

HPSC Asst. Professor Hindi

KARMANYA COMPETITION PLATFORM   हिन्दी भाषा और उसका विकास अपभ्रंश (अवहट्ट सहित) और पुरानी हिन्दी का संबंध काव्य भाषा के रूप में अवधि का उदय काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा का उदय और विकास साहित्यिक हिन्दी के रूप में खड़ी बोली का उदय और विकास मानक हिन्दी का भाषा वैज्ञानिक विवरण (रूपगत) हिन्दी की

HPSC Asst. Professor Hindi Read More »

बिहारी लाल (BIHARI LAL)

नाम कविवर बिहारी पिता का नाम केशव राय जन्म  सन् 1603 ईसवी जन्म-स्थान बसुआ-गोविंदपुर (ग्वालियर) भाषा-शैली भाषा – प्रौढ़ प्रांजल, परिष्कृत एवं परिमार्जित ब्रज प्रमुख रचनाएं बिहारी सतसई निधन सन् 1663 ई० साहित्य में स्थान अपनी काव्यगत (भावपक्ष व कलापक्ष) विशेषताओं के कारण हिंदी साहित्य में बिहारी का अद्वितीय स्थान है। जन्मकाल 1603 से 1663

बिहारी लाल (BIHARI LAL) Read More »

मतिराम

मतिराम रीति काल के मुख्य कवियों में से एक थे। वे चिंतामणि तथा भूषण के भाई परंपरा से प्रसिद्ध थे। मतिराम की रचना की सबसे बड़ी विशेषता है, उसकी सरलता और अत्यंत स्वाभाविकता। उसमें ना तो भावों की कृत्रिमता है और ना ही भाषा की। भाषा शब्दाडंबर से सर्वथा मुक्त है। भाषा के ही समान

मतिराम Read More »

विद्यापति की पदावली

बिहार के दरभंगा जिले में विपसी गांव में जन्मे विद्यापति (1350 -1450) हिंदी के आदि गीतकार माने जाते हैं |ये तिरहुत के राजा शिव सिंह और कीर्मति सिंह के दरबारी कवि थे| ये शैव सम्मप्धुरदाय के कवि हैं | मधुर गीतों के रचयिता होने के कारण इन्हें अभिनव जय देव के नाम से भी जाना

विद्यापति की पदावली Read More »

Scroll to Top
× How can I help you?