भारतेन्दु- भारत दुर्दशा-यथार्थ बोध।

भारत दुर्दशा नाटक नाटक  नाटककार: भारतेंदु हरिश्चंद्र प्रकाशन:  1880ई o  प्रकार:  एक नाट्यरासक  शैली: प्रतीकात्मक व्यंग्यात्मक कुल अंक: 6 विशेषता: यह नाटक भारत की तत्कालीन यथार्थ दशा से परिचित कराता है विषय: हिंदी का पहला राजनैतिक नाटक के पात्र नाटक के पात्र भारत दुर्दैव : देश के  विनाश का मूल आधार, किस्तानी आधा मुसलमानी  वेशधारी भारत: […]

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अरस्तू का विरेचन सिद्धान्त-काव्यशास्त्र

प्लेटो ने काव्य पर आरोप लगाया था कि काव्य हमारी वासनाओं का दमन करने के स्थान पर उनका पोषणकरता है। अरस्तू का मत इससे भिन्न है। वे यह तो मानते हैं कि काव्य मानवीय वासनाओं का दमन नहीं करता, पोषण ही करता है, पर वे यह स्वीकार नहीं करते कि वह अनैतिक भावनाओं को उभारता

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टी. एस. ईलियट के काव्य सिद्धान्त-काव्यशास्त्र

आधुनिक काल के पाश्चात्य समीक्षकों में टी. एस. ईलियट (1888-1965 ई. ) का नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उनका जन्म सेन्ट लुई (अमेरिका) में हुआ, किन्तु शिक्षा पेरिस और लन्दन में हुई। बाद में वे लन्दन में बस गए। वे बीसवीं शती के महान कवियों में गिने जाते है। न्हें 1948 ई. में साहित्य का नोबल

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मतिराम

मतिराम रीति काल के मुख्य कवियों में से एक थे। वे चिंतामणि तथा भूषण के भाई परंपरा से प्रसिद्ध थे। मतिराम की रचना की सबसे बड़ी विशेषता है, उसकी सरलता और अत्यंत स्वाभाविकता। उसमें ना तो भावों की कृत्रिमता है और ना ही भाषा की। भाषा शब्दाडंबर से सर्वथा मुक्त है। भाषा के ही समान

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