हिंदी गद्य का उद्भव और विकास

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास को चार कालखंडों में बांटा है | चतुर्थक कालखंड को गद्य की प्रमुख होने के कारण गद्यकाल नाम दिया है।और इसकी समय सीमा सन् 1843 से 1923 ई० स्वीकार की है। आधुनिक काल के लिए जो विभिन्न नाम दिए गए हैं, वे इस प्रकार है- गद्यकाल- आचार्य […]

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पद्माकर (Padmaakar)

जन्मकाल 1753 से 1833 ई० | कवियों में पद्माकर का नाम आदर से लिया जाता है। बिहारी के बाद ये रीतिकाल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। इनकी जैसी लोकप्रियता बहुत कम कवियों को प्राप्त होती है। पद्माकर के एक महान विद्वान एवं कवि थे। पद्माकर का जन्म बांदा में 1753 ई० में हुआ और 80

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घनानन्द (Ghananand)

घनानन्द रीतिमुक्त गांव के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। रीतिमुक्त धारा के शृंगारी कवि है।इनका जन्म 1689 ई० में और मृत्यु नादिरशाह के आक्रमण के समय 1739 ई० में हुई।ये दिल्ली के बादशाह मोहम्मदशाह के यहाँ मीर मुंशी थे और जाति के कायस्थ थे। ये सुजान नामक वेश्या से प्रेम करते थे। एक दिन दरबार के कुचक्रियों

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बिहारी लाल (BIHARI LAL)

नाम कविवर बिहारी पिता का नाम केशव राय जन्म  सन् 1603 ईसवी जन्म-स्थान बसुआ-गोविंदपुर (ग्वालियर) भाषा-शैली भाषा – प्रौढ़ प्रांजल, परिष्कृत एवं परिमार्जित ब्रज प्रमुख रचनाएं बिहारी सतसई निधन सन् 1663 ई० साहित्य में स्थान अपनी काव्यगत (भावपक्ष व कलापक्ष) विशेषताओं के कारण हिंदी साहित्य में बिहारी का अद्वितीय स्थान है। जन्मकाल 1603 से 1663

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भूषण

  जीवन परिचय भूषण वीर रस के कवि थे। हिन्दी रीति काल के अन्तर्गत, उसकी परम्परा का अनुसरण करते हुए वीर-काव्य तथा वीर-रस की रचना करने वाले प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने शिवराज-भूषण में अपना परचिय देते हुए लिखा है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनका गोत्र कश्यप था। ये ‘रत्नाकर त्रिपाठी’ के पुत्र थे तथा

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मतिराम

मतिराम रीति काल के मुख्य कवियों में से एक थे। वे चिंतामणि तथा भूषण के भाई परंपरा से प्रसिद्ध थे। मतिराम की रचना की सबसे बड़ी विशेषता है, उसकी सरलता और अत्यंत स्वाभाविकता। उसमें ना तो भावों की कृत्रिमता है और ना ही भाषा की। भाषा शब्दाडंबर से सर्वथा मुक्त है। भाषा के ही समान

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विश्व हिंदी दिवस

आज कल की पीढ़ी अंग्रेजी भाषा को ज्यादा और हिंदी भाषा को कम महत्व देती है। हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है।पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए 2006 में प्रति वर्ष 10 जनवरी को हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की

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कफ़न

कफ़न प्रेमचंद द्वारा रचित एक उत्कृष्ट और अंतिम कहानी है जो अप्रैल 1936 ई० में चाँद नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।मूल रूप से ये उर्दू में लिखी गई थी जो दिसंबर 1935 वीं में जामिया पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।यह कहानी दलित चेतना से ओतप्रोत एक वातावरण प्रधान सामाजिक कहानी है।कहानी के मूल

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मुफ्त का यश

मुफ्त का यश मुन्शी प्रेमचंद द्वारा रचित है।यह अगस्त में हंस पत्रिका में प्रकाशित हुई है हुई थी।यह कहानी मनोविश्लेषणात्मक आधार पर रची गई व्यंग्यप्रधान कहानी है।कहानी का शीर्षक विषयवस्तु से संबद्ध तथा जिज्ञासावर्धक है।कहानी का नायक स्वयं लेखक हैं, जो वर्णात्मक शैली में लोगों के विचारों, भावनाओं और क्रियाकलापों की यथार्थ अभिव्यक्ति करता है।लेखक

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दूध का दाम

मुन्शी प्रेमचंद द्वारा रचित चर्चित कहानी दूध का दाम जुलाई 1934 में हंस पत्रिका में प्रकाशित हुई।यह कहानी सामाजिक वैषम्य, वर्णाश्रम भेद, जात-पात, ऊँच-नीच, छुआछूत जैसी समस्याओं पर आधारित है। यह कहानी ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सकीय सुविधाओं की बदहाल अवस्था को भी इंगित करती है। गांव के अस्पतालों में अच्छे डॉक्टर, नर्सों के अभाव में

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