यह कहानी प्रेमचंद जी द्वारा मार्च 1925 में माधुरी पत्रिका में प्रकाशित हुई | यह कहानी सामजिक पृष्ठ भूमि पर आधारित है | इसमें लेखक अमीर-गरीब और नौकर मालिक के सम्बन्ध वर्णित करता है | यह कहानी वर्तमान परिवेश में भी अत्यंत प्रासंगिक है | जो लोग बुरा काम करने के बाद पर्दा डालने की तकनीकी कला रखते हैं , तो वे सभ्य, सज्जन कहलाते हैं | यदि किसी में यह कला नहीं है, तो वह गंवार, असभ्य और बदमाश है | यही सभ्यता का रहस्य है |इस काहनी में दो मुख्य पात्र है एक है दमड़ी जो सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, दूसरा है राय रत्न किशोर जो पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है | इधर गरीब दमड़ी अपनी विरासत को सहेजता हुआ झूठी शान के लिए भूखा रहता है , ठण्ड में ठिठुरता है , उधर राय साहब अपनी परम्परा को छोड़कर अपना जीवन आनंदमय बनाता है |कहानी में राय साहब लेखकके एक परिचित व्यक्ति हैं जो कहने को रिश्वत नहीं लेते लेकिन वे रोजनामचे में हर रोज अपनी उपस्थिति लगाकर घर में बैठकर मेहमानों के साथ समय बिताते हैं | एक बार दमड़ी रात को घर में मेहमान होने के कारण राय साहब के घर नहीं आता तो राय साहब उसके ऊपर दो रूपये का जुर्माना लगा देते हैं | दमड़ी के पास लगभग 6 बिस्वे जमीन है और उसके परिवार में दो लडके, दो लडकियां , पत्नी और दो बैल थे | उसने बैल अपने माँ-सम्मान के लिए रखे थे क्योंकि मजदुर से ज्यादा सम्मान किसान का होता है | इससे उसकी हैसियत स्थिर रही और लड़कियों के रिश्तों में भी परेशानी होगी | राय साहब उसे समझाते हैं कि जब खुद के खाने के लिए समस्या हो तो परम्परा का निर्वहन न करने में ही समझदारी है | राय साहब ने स्वयं घर पर होने वाला जन्माष्ठमी का उत्सव रद्द कर देते हैं | कस्बे में किसी के भी घर पर शादी होने पर लकड़ी का खर्च राय साहब के वालिद खर्चा उठाते थे जिससे उन्हें कम से कम 500 रूपये सालाना का नुकसान होता था | राय साहब ने यह सबा बंद कर दिया बिना किसी सामाजिक भय के | कुच्छ दिन के बाद सब लोग भूल जाते हैं |

इस प्रकार राय साहब के इजलास में एक बड़े मार्के का मुकद्दमा आता है जिसमें एक अमीर व्यक्ति फंस गया था जो कोई भी कीमत देने को तैयार होता है | इसके लिए वह अपनी पत्नी के माध्यम से राय साहब की पत्नी से केश लेने के लिए प्रयास करता जिसमें वह सफल हो जाता है और 20 हजार रूपये में रे साहब की पत्नी उसे जमानत दुलवा देती है |

दूसरी तरफ दमड़ी एक दिन अपने भूखे बैलों की हालत देखकर दुखी होता है जो उसके आने पर उसके हाथ चाटते हैं | दमड़ी रात को उठकर अपने बैलों को भूखे देखता है तो वह रात को उनके लिए चारा लेने चल पड़ता है, यह सोचकर की थोड़े से चारे के लिए उसे कोई क्या दंड देगा ? अंत में एक पुलिस वाला उसे चारा लाते देख लेता है जो किसी जुए पर कुछ रिश्वत के लिए दबिश करना चाहता था | वह दमड़ी को पकड़कर राय साहब की अदालत में पेश करता है जहाँ राय साहब अपने नौकर को इसलिए 6 महीने की सजा देते है क्योंकि उसने राय साहब का नाम ख़राब कर दिया था |गरीब दमड़ी अपराध करके उस पर पर्दा डालने की कला से परिचित नहीं था , इसलिए वह असभ्य और गंवार था |

कहानी की भाषा सहज, सरल और स्वभाविक है | कहानी का उद्देश्य समाज फैलती रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और अफसरों की चालबाजियों को उजागर करना है |

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