मुर्दों के इस संसार में
मुर्दों के संसार में इंसान बिकते सरे बाजार देखे
कुछ सिर्फ देखने में ज़िंदा थे कुछ ज़िंदा मुर्दे देखे
कुछ देखे मतवाले कुछ दीवाने देखे
कुछ देखे सज्जन कुछ ढोंगीपन के बेताज बादशाह देखे
देखि कहीं सच्चाई कहीं बहते झूठ के दरिया देखे
कहीं लहू लुहान रिश्तों के धागे देखे
कहीं क्षत विक्षत रूहें देखि
कहीं देखि मौन के आगोश में जीने की जुस्तजू
कहीं मर मिटने को तैयार पतंगें देखे
कहीं पल पल मरकर जीने के बहाने देखे
कहीं देखे ख़ुशी के संगीत कहीं जीवन की किलकारी देखि
कहीं दूसरों पर मर मिटने वाले परवाने देखे
कभी हुई निराशा जो जीवन में
हर तरफ तन्हाई लाचारी बेबसी के आंसू देखे
कभी उम्मीद की किरण की रोशनी में
नव अंकुरित फसलों फूलों के ताजा चेहरों के नज़ारे देखे
सब देखा लेकिन आसमान से उंचा बड़ा विस्तृत न देखा किसी को
कहीं अपनी छोटी इ हस्ती पर घमंड करते बेचारे देखे
देखकर इस सिमित दुनिया के कुछ दृश्यों को
परमात्मा को देख लेने का दावा करनेवाले छलावे देखे
कौन पैदा करे कौन मारे इस प्रश्न के उत्तर में
कुछ सुलझे कुछ उलझे बैठे प्रकृति के किनारे देखे
कहे कुमार अगर समेट ले हम उसकी रहमत की
बूंदों के हजारवें हिस्से को भी , तो समझो कुछ पाया जीवन में
वरना ख्वाबों में कल्पना से भरे चाँद चांदनी और सितारे देखे
मौत कोई शत्रु नहीं प्रियतमा है मेरी
उसके आगोश में चैन से लेटने के सपने हजारों देखे
मगर अफसोस उन पर होता है जो ज़िंदा होते हुए भी मरदे बने हुए हैं इस जहाँ में
साहस शौर्य विद्वता दृढ़ता के समुद्र के तुफानो को चिर सुरमे पहुँचते किनारे देखे……………….
द्वारा- सुखविन्द्र