समाज को बेहतर बनाने के लिए जी जान लगा दिया. उन्हीं में से एक थी. देश की पहली महिला शिक्षक फातिमा शेख (Fatima Shaikh). फातिमा का नाम लिया जाता है। उनकी एक पहचान यह भी है कि वो मियां उस्मान शेख की बहन थीं।वही, उस्मान शेख जिनके घर ज्योतिबा फुले, और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था.
फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी को वर्ष 1831 में पुणे में हुआ था। वह शिक्षक और समाज सुधारक ज्योतिबा फुले व उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी, जिन्होंने जाति, सती प्रथा, महिला सशक्तीकरण, विधवा पुनर्विवाह, अंतर्जातीय विवाह और शिक्षा के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये फातिमा शेख के साथ लगातार काम किया। तत्कालीन समाज में फातिमा शेख को एक नारीवादी प्रतीक माना जाता था और स्वतंत्र भारत में उन्हें देश में बदलाव लाने के लिये सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव से लड़ना पड़ा। उन्होंने वर्ष 1848 में फुले के साथ स्वदेशी पुस्तकालय की सह-स्थापना की जो लड़कियों के लिये भारत के पहले स्कूलों में से एक था। उन्होंने निम्न जाति में पैदा हुए लोगों को अवसर प्रदान करने के लिये फुले के साथ काम करते हुए जो प्रयास किये, उन्हें सत्यशोधक समाज आंदोलन के रूप में मान्यता मिली। वर्ष 2014 में शेख की उपलब्धियों को सरकार द्वारा उर्दू पाठ्यपुस्तकों में एक प्रोफ़ाइल के रूप में उनके समय के ऐसे अन्य अनुकरणीय और दृढ़ शिक्षकों के साथ चित्रित किया गया था।
फातिमा शेख ने ना सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के प्रति उनकी शिक्षा और विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई, बल्कि देश के लिए पहला महिला स्कूल खोलने में ज्योतिबा फुले, और सावित्रीबाई फुले के साथ काम किया. उन्होंने 1848 में एक स्वदेशी पुस्तकालय की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी, जोकि लड़कियों के लिए भारत के पहले स्कूलों में से एक है. उन्होंने शोषितों और वंचितों को पढ़ाने के लिए जान लगा दी.
बताया जाता है कि जब सावित्रीबाई फुले निचली जातियों की महिलाओं और बच्चियों को हक़ दिलाने और उन्हें शिक्षित करने की लड़ाई लड़ रही थीं. तब उन्हें लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा. उनके लिए कई मुश्किलें पैदा की गईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारीं. उनकी इस लड़ाई में फातिमा शेख ने हाशिये पर खड़ी दलित, और मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया था.
कहा तो यहां तक जाता है कि जब फुले दंपति का उनकी जाति, उनके परिवार और सामुदायिक सदस्यों ने साथ नहीं दिया था, तब फातिमा शेख ने उनकी मदद की. उनके भाई उस्मान ने अपने घर उन्हें स्कूल खोलने की इजाजत दे दी. फातिमा के लिए यह आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने तमाम विरोधों और बाधाओं का डट कर सामना किया, और लड़कियों को शिक्षित करने की अपनी मुहिम से पीछे नहीं हटीं.
फातिमा शेख सावित्रीबाई के साथ स्कूल में पढ़ाती थीं. उन्होंने पिछड़ों और गरीब महिलाओं की शिक्षा के लिए व उनके हक़ की लड़ाई के लिए जो कुर्बानियां दीं उन्हें भुलाया नहीं जा सकता.