अजीज सरल और परिश्रमी था।वह स्वामी की सेवा में ही लगा रहता था।एक बार उसने घर जाने के लिए अवकाश मांगा। स्वामी चालाक था | उसने सोचा- “अजीज की तरह कोई भी दूसरा कार्यकुशल नहीं है।यह अवकाश का भी वेतन ग्रहण करेगा।”यह सोचकर स्वामी ने कहा- “मैं तुम्हें अवकाश और वेतन का सारा धन दे दूंगा।परंतु इसके लिए तुम दो वस्तुएँ लाओ- अहह और आः।
        यह सुनकर अजीज दो वस्तुएँ लेने के लिए निकल जाता है।वह इधर उधर घूमता हैं।लोगों से पूछता है।आकाश को देखता है।धरती से प्रार्थना करता है।परंतु सफलता प्राप्त नहीं होती।सोचता है, परिश्रम का धन वह नहीं प्राप्त कर पाएगा।कहीं एक बुढिया मिलती है।वह उसे सारी व्यथा (दुःख) सुनाता है। वह विचार करती है- “स्वामी अज़ीज़ को धन नहीं देना चाहता।वह उससे कहती है- मैं तुम्हें दो चीजें देती हूँ।” परन्तु दोनों ही बहुत कीमती है। प्रसन्न होकर वह स्वामी के पास आ जाता है।
       अजीज देखकर स्वामी हैरान हो जाता है।स्वामी धीरे-धीरे पेटी को खोलता है।पेटी (सन्दूक) में दो छोटे बर्तन थे।सबसे पहले वह एक छोटे बर्तन को खोलता है। अचानक एक मधुमक्खी निकलती है और उसके हाथ को डंस लेती है।स्वामी ज़ोर से बोलता है अहह | दूसरा बर्तन खोलता है, एक दूसरी मक्खी निकलती है, वह माथे पर डंस लेती है।पीड़ित होकर वह ज़ोर से चिल्लाता है  आः,  ऐसा।
      अजीज सफल था। स्वामी उसे अवकाश का और वेतन का पूरा धन देता है। 
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