निर्गुण-सगुण कवि और उनका काव्य

भक्तिकाल निर्गुण   सगुण     संत काव्यधारा सूफी काव्यधारा राम काव्यधारा कृष्ण काव्यधारा   निर्गुण भक्ति संतकाव्य धारा नामदेव कबीर रैदास   नानक   दादूदयाल   मलूकदास   सुन्दरदास   रज्जबदास अन्य कवि    ( प्रेमाश्रयी) सूफी काव्य मालिक मोहम्मद जायसी   मुल्ला दाउद   कुतुबन   मंझन कृष्ण काव्य का अर्थ एवं उत्पत्ति […]

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आलवार और नायनार संत

दक्षिण भारत के वैष्णवों को आलवार कहा जाता है |इनका सम्बन्ध केरल से है | इन्होने कृष्ण और राम दोनों की आराधना की | सर्वाधिक लोकप्रिय शठकोप थे | ये रामभक्ति के प्रथम कवि माने जाते हैं | शठकोप की प्रमुख रचनाएँ=तिरुवायमोलि , तिरुविरुतम और सहस्त्रगीति आदि | आलवारों ने आस्तिकता के लिए क्रान्ति की

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भक्ति आंदोलन का अखिल भारतीय स्वरूप और उसका अंतःप्रादेशिक वैशिष्ट्य

यह आन्दोलन सैंकड़ों वर्षों पहले से ही समाज में विकसित हो रहा था | यह गुजरात से लेकर मणिपुर और कश्मीर से कन्याकुमारी तकबहुसंख्यक भाषाओँ और बोलियों में अपनी संस्कृति को आत्मसात करता हुआ जनसामान्य को चेतनता प्रदान कर रहा था | उस समय व्यापरिक पूंजीवाद और सामंतवाद की पतनशीलता के कारण जनसामान्य के आस्था

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भक्ति काव्य के प्रमुख सम्प्रदाय

रामावत सम्प्रदाय प्रवर्तक- रामानन्द , जन्म-प्रयाग के कान्यकुबज ब्रह्मा कुल में 1368 (श्री भक्त सटीक के अनुसार) यशस्वी साधक व प्रगतिशील विचारक इनके गुर राघवानंद, व 12 शिष्य – अनंतानन्द, पीपा, कबीर, रैदास आदि बाहरी कर्मकांडों की बजाय अंतः साधना पर बल इन्होंने दशधा भक्ति ओर ज्ञानमार्ग का उपदेश दिया । श्री सम्प्रदाय प्रवर्तक- रामानुजाचार्य,

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भक्ति आंदोलन के उदय के सामाजिक ओर सांस्कृतिक कारण

भक्ति की प्रधानता के कारण इसे भक्तिकाल कहा जाता है |गिर्यसन महोदय ने इसे धार्मिक पुनर्जागरण कहा है | भक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख “श्वेताश्वेतर उपनिषद” में मिलता है | गिर्यसन ने इसे हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा है| रामविलास शर्मा ने-लोक जागरण काल हजारी प्रसाद द्विवेदी-लोक जागरण नामकरण साहित्यकार समयावधि मिश्रबंधु संवत् 1444-1560 विक्रम पूर्व

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पृथ्वीराज रासो

इसे “छंदों का अजायबघर” कहा जाता है | आचार्य शुक्ल ने इसे हिंदी का प्रथम महाकाव्य ओर इसके रचयिता चन्दरबरदाई को हिंदी का प्रथम कवि माना है।चन्दरवरदाई दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहाण के प्रमुख सामंत सलाहकार, मित्र ओर राज कवि थे| उन्होंने खुद को छः भाषाओँ का ज्ञाता बताया है| चंदरबरदाई इसे पूरा नहीं कर पाए

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आदिकाल की विशेषताएँ एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ

परिस्थितियां राजनीतिक परिस्थिति-युद्ध और अशांति का काल, हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद छोटे स्वतंत्र ( परमार, चौहान,चंदेल) राज्यों का उदय राजनीतिक अन्तः क्लेश के कारण शक्ति क्षीण, महमूद गजनबी(10 वीं सदी), मुहम्मद गोरी (12 वीं सदी) का आक्रमण 8-14 वीं सदी तक यह काल युद्ध, संघर्ष, अशांति, अराजकता, गृहक्लेश, विद्रोह का काल धार्मिक परिस्थिति-वैदिक, बौद्ध

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हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियाँ

वर्णानुक्रम- लेखक और कवियों का परिचय उनके नाम के वर्णों के क्रम के अनुसार ( गार्सा द तासी, शिव सिंह सेंगर) कलानुक्रमी -लेखक और कवियों का परिचय उनके जन्मतिथि तथा ऐतिहासिक काल के क्रम के अनुसार (जार्ज गिर्यसन, मिश्र बन्धु) वैज्ञानिक -पूर्णतः तटस्थ रहकर तथ्यों का संकलन करके व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना | यह

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हिंदी साहित्य इतिहास दर्शन

इतिहास शब्द से सांस्कृतिक एवं राजनीतिक इतिहास का बोध होता है, किन्तु साहित्य भी इतिहास से भिन्न न होकर उससे जुड़ा हुआ है | साहित्य के इतिहास का अर्थ है-देशकाल की सीमाओं में विकसित साहित्य का समग्र रूप से अध्ययन करना |साहित्य की विकास प्रक्रिया के सम्बन्ध में मुख्य सिद्धांत- तेन-साहित्य की व्याख्या के तिन

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