भट – महाराज की जय हो।
राजा – तुम्हारी प्रसन्नता अद्भुत-सी लग रही है, बताओ किस कारण इतने प्रसन्न हो?
भट – अविश्वसनीय प्रिय प्राप्त हो गया है, अभिमन्यु पकड़ लिया गया।
राजा – अब वह किस प्रकार पकड़ लिया गया है?
भट – रथ पर पहुँचकर निश्शङ्क भाव से हाथों द्वारा उतार लिया गया है। राजा
राजा – कैसे?
भट – निश्चय से जो यह महाराज के द्वारा रसोई में नियुक्त किया गया है (अभिमन्यु को संकेत करके)
कुमार! इधर से इधर से (आओ)।
अभिमन्युः – अरे! यह कौन?, जिसने एक हाथ से पकड़कर अधिक बलशाली होकर भी मुझे पीड़ित नहीं किया।

बृहन्नला – कुमार, इधर चलें।
अभिमन्यु – अरे! यह दूसरा कौन है, ऐसा लग रहा है जैसे महादेव ने उमा का वेष ग्रहण किया हो।
बृहन्नला – आर्य! मुझे इससे बात करने की बहुत उत्सुकता हो रही है। आप इसे बोलने के लिए प्रेरित करें।
बल्लभः – (एक ओर को) अच्छा (प्रकट रूप से) अभिमन्यु।
अभिमन्यु – अभिमन्यु?
बल्लभः – यह मुझसे चिढ़ता है, तुम्ही इसे बात करने के लिए प्रेरित करो।
बृहन्नला – अभिमन्यु!
अभिमन्यु – क्यों, मेरा नाम अभिमन्यु है! अरे! क्या यहाँ विराट नगर में क्षत्रिय कुमारों को नीच लोग भी नाम । लेकर पुकारते हैं, अथवा मैं शत्रओं के अधीन हो गया, इसलिए अपमानित किया जा रहा है मुझे।

बृहन्नला – अभिमन्यु! तुम्हारी माता सकुशल है?
अभिमन्यु – क्या, क्या? माता? क्या आप मेरे पिता या चाचा हैं? आप क्यों मुझ पर पिता के समान अधिकार दिखाकर माता के सम्बन्ध में प्रश्न कर रहे हैं?
बृहन्नला – अभिमन्यु! देवकीपुत्र केशव सकुशल हैं?
अभिमन्यु – क्या आदरणीय कृष्ण को भी नाम से……? और क्या, और क्या! (कुशल हैं) (बृहन्नला और बल्लभ एक-दूसरे की ओर देखते हैं)
अभिमन्यु – ये मेरे ऊपर अज्ञानी की तरह क्यों हँस रहे हैं?
बृहन्नला – क्या कुछ ऐसा ही नहीं है? पिता पार्थ तथा मामा श्री कृष्ण वाला युवक युद्ध में निपुण होकर भी युद्ध में परास्त हो जाता है।
अभिमन्युः – स्वच्छन्द प्रलाप करना बन्द करो। हमारे कुल में आत्मप्रशंसा करना अनुचित है। युद्ध क्षेत्र में मेरे बाणों से अतिरिक्त दूसरा नाम नहीं होगा।
बृहन्नला – अरे वाणी की ऐसी वीरता! फिर उन्होंने तुम्हें पैदल ही क्यों पकड़ लिया?
अभिमन्युः – वे अशास्त्र (शस्त्रहीन) होकर मेरे सामने आए। पिता अर्जुन को याद करके मैं उन्हें कैसे मारता? मुझ जैसे लोग शस्त्रहीन पर प्रहार नहीं करते। अतः इस शस्त्रहीन ने मुझे धोखा देकर पकड़ लिया।
राजा – अभिमन्यु को शीघ्र बुला लाओ।

बृहन्नला – कुमार इधर आएँ। यह महाराज हैं। आप समीप जाएँ।
अभिमन्यु – आह! किसके महाराज?
राजा – आओ, आओ पुत्र। तुम मुझे प्रणाम क्यों नहीं करते (मन में) अरे! यह क्षत्रिय कुमार बहुत घमण्डी है।
मैं इसका घमण्ड शान्त करता हूँ। (प्रकट रूप से) तो इसे किसने पकड़ा?
भीमसेनः – महाराज! मैंने।
अभिमन्यु – शस्त्रहीन होकर पकड़ा- ऐसा कहिए।
भीमसेन – शान्त हो जाइए। धनुष तो दुर्बलों के द्वारा उठाया जाता है। मेरी तो भुजाएँ ही शस्त्र हैं।
अभिमन्यु – अरे नहीं! क्या आप हमारे मध्यम तात हैं, जो उनके समान वचन बोल रहे हैं।
भीमसेन – पुत्र! यह मध्यम तात कौन हैं?
अभिमन्यु – सुनिए-जिसने अपनी भुजाओं से जरासन्ध का कण्ठावरोध करके कृष्ण के लिए जो असाध्य कार्य था, उसको साध्य बना दिया था।
राजा – तुम्हारे निन्दापूर्ण वचनों से मैं चिढ़ता नहीं हूँ। तुम्हारे चिढ़ने से मुझे आनन्द प्राप्त होता है। तुम यहाँ क्यों खड़े हो, जाओ यहाँ से – यदि मैं ऐसा कहूँ तो क्या मैं अपराधी नहीं होऊँगा?
अभिमन्यु – यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहते हो तो- मेरे पैर बाँधकर मुझे उचित दण्ड दीजिए। मैं हाथों से पकड़कर लाया गया हूँ। मेरे मध्यम तात भीम मुझे हाथों से ही छुड़वाकर ले जाएँगे। (तब उत्तर का प्रवेश)

उत्तर – भगवन्! मैं प्रणाम करता हूँ।
राजा – दीर्घायु हो पुत्र! क्या युद्ध में वीरता दिखाने वाले वीरों का सत्कार कर दिया गया है?
उत्तर – अब सबसे अधिक पूज्य की पूजा कीजिए।
राजा – किसकी पूजा पुत्र?
उत्तर – यहीं मौजूद अर्जुन की।
राजा – क्या अर्जुन यहाँ आए हैं?
उत्तर – और क्या? पूज्य अर्जुन ने श्मशान से अपना धनुष तथा अक्षय तरकश लेकर भीष्म आदि राजाओं को परास्त कर दिया तथा हम लोगों की रक्षा की।
राजा – ऐसी बात है?
उत्तर आप अपना सन्देह दूर करें। धनुर्विद्या में प्रवीण अर्जुन यही हैं।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूँ तो यह भीमसेन है और यह राजा युधिष्ठिर हैं।

अभिमन्यु – ये मेरे पूज्य पितागण हैं, इसीलिए……
मेरे निन्दापूर्ण वचनों से ये क्रुद्ध नहीं होते और हँसते हुए मुझे चिढ़ाते हैं। गौ-अपहरण की यह घटना सौभाग्य से सुखान्त हुई। इसी के कारण मुझे अपने सभी पिताओं के दर्शन हो गए।
(ऐसा कहकर क्रम से सबको प्रणाम करता है और सब उसका आलिंगन करते हैं)

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