1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता।
वनस्पतिगतं गृधं ददर्शायतलोचना॥

शब्दार्था:-
तदा – तब, करुणा वाचो: – दुख भरी आवाज़ से, विलपन्ती – रोती हुई, सुदुःखिता – बहुत दुखी, वनस्पतिगतम् – वृक्ष पर बैठे हुए को, गृध्रम् – गिद्ध को, ददर्श – देखा, आयतलोचना-बड़ी – बड़ी आँखों वाली।

अर्थ – तब करुण वाणी में रोती हुई, बहुत दुखी और बड़ी-बड़ी आँखों वाली (सीता) ने वृक्ष पर (स्थित) बैठे हुए गीध्र (जटायु) को देखा।

2.जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्।
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा॥

शब्दार्था:-
जटायो – हे जटायु!, पश्य – देखो, माम् – मुझे (मुझ को), आर्य – श्रेष्ठ, ह्रियमाणाम् – हरी (हरण की) जाती हुई, अनाथवत् – अनाथ की तरह, अनेन  -इस (से), राक्षसेन्द्रेण – राक्षसराज के द्वारा, करुणम् – दुखी, पापकर्मण-पापकर्म वाले।

अर्थ – हे आर्य जटायु! इस पापकर्म करने वाले राक्षस राज (रावण) के द्वारा अनाथ की तरह हरण की जाती हुई मुझ दुखी को देखो।

3. तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः॥

शब्दार्था:- तम् – उस (को), शब्दम् – शब्द को, अवसुप्तः – सोए हुए, तु – तो, रावणम् – रावण को, क्षिप्रम् – शीध्र, जटायुः – जटायु ने, अथ – इसके बाद, शश्रुवे – सुना, निरीक्ष्य – देखकर, वैदेहीम् – सीता को, ददर्श – देखा।

अर्थ – इसके बाद सोए हुए जटायु ने उस शब्द को सुना तथा रावण को देखकर और उसने शीध्र ही वैदेही (सीता) को देखा।

4. ततः पर्वतशृङ्गाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः।
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्॥

शब्दार्थाः –
ततः-उसके बाद, पर्वतश्रृंगाभः-पर्वत की चोटी की तरह शोभा वाले, तीक्ष्णतुण्डः-तीखी चोंच वाले, खगोत्तमः-पक्षियों में उत्तम, गिरम्-वाणी को, वनस्पतिगतः-वृक्ष पर स्थित, श्रीमान्-शोभायुक्त, व्याजहार-बोला (कहा), शुभाम्-सुदर।

अर्थ – उसके बाद (तब) पर्वत शिखर की तरह शोभा वाले, तीखे चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित, शोभायुक्त पक्षियों में उत्तम (जटायु) ने सुंदर वाणी में कहा।

5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्।
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥

शब्दार्था: –
निवर्तय-मना करो, रोको, मतिम्-बुद्धि (विचार) को, परदारा-पराई स्त्री के, अभिमर्शनात्- स्पर्श दोष से, अस्य-इसकी, तत्-वह (उस तरह का), समाचरेत्-आचरण करना चहिए, धीरः-बुद्धिमान (धैर्यशाली) को, यत्-जो (जिसे), परः-दूसरे लोग, विगर्हयेत्-निंदा (बुराई) करें, नीचाम-नीच (गंदी)।

अर्थ – पराई नारी (परस्त्री) के स्पर्शदोष से तुम अपनी नीच बुद्धि (नीच विचार) को हटा लो, क्योंकि बुद्धिमान (धैर्यशाली) मनुष्य को वह आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे कि दूसरे लोग उसकी निंदा (बुराई) करें।

6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥

शब्दार्थाः-
वृद्धः-बूढा, अहम्-मैं, युवा-जवान (युवक), धन्वी- धनुषधारी, सरथः-रथ से युक्त, कवची-कवच वाले, शरी-बाणों वाले, आदान-लेकर, कुशली-कुशलतापूर्वक, वैदेहीम्-सीता को, मे-मेरे (रहते), गमिष्यसि- जा सकोगे।

अर्थ – मैं (तो) बूढा हूँ परंतु तुम युवक (जवान) हो, धनुषधारी हो, रथ से युक्त हो, कवचधारी हो और बाण धारण किए हो। तो भी मेरे रहते सीता को लेकर नहीं जा सकोगे।

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः।
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः।

शब्दार्था:- तस्य-उसके (जटायु के), तीक्ष्णनखाभ्याम्-तेज नाखूनों से, चरणाभ्याम्-पैरों से, महाबल:- बहुत बलशालो, पतगसत्तमः-पक्षियों में उत्तम (श्रेष्ठ), चकार-कर दिए, बहुधा-बहुत से, गात्रे-शरीर पर, व्रणान्-घावों को।

अर्थ – उस उत्तम तथा अतीव बलशाली पक्षी (राज) ने अपने तीखे नाखूनों तथा पैरों से उस (रावण) के शरीर पर बहुत से घाव कर दिए।

8. ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनु॥

शब्दार्थाः-
ततः-उसके बाद, अस्य-इसके, सशरम्-बाणों के सहित, चापम्- धनुष को, मुक्तामणिविभूषितम्-मोतियों और मणियों से सजे हुए, चरणाभ्याम्-दोनों पैरों से, महातेजा-महान तेजस्वी, बभञ्ज-तोड़ दिया, अस्य-इसके, मृहद्धनु:-विशाल धनुष को।

अर्थ – उसके बाद उस महान तेजस्वी (जटायु) ने मोतियों और मणियों से सजे हुए बाणों सहित उसके (रावण के) विशाल धनुष को अपने पैरों से तोड़ डाला।

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूछितः ॥

शब्दार्थाः- सः-वह, भग्नधन्वा-टूटे हुए धनुषवाला, विरथः-रथ से रहित, हताश्वः-मारे गए घोड़ों वाला पर, हतसारथिः-मारे गए सारथि वाला, तलेन-मूंठ से, अभिजघान-हमला या प्रहार किया, आशु-शीघ्र, क्रोधमूर्च्छितः-बहुत क्रोधी

अर्थ – (तब) टूटे हुए धनुष वाले, रथ से विहीन, मारे गए घोड़ों व सारथि वाले अत्यन्त क्रोधित उसने तलवार की अत्यन्त क्रोधित मँठ से शीघ्र ही जटाय पर घातक प्रहार किया।

10. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः।
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः ॥

शब्दार्था:-
जटायुः – जटायु ने, तम्-उसको, अतिक्रम्य-झपट करके, तुण्डेन-चोंच से, अस्य-उसके (रावण के),
खगाधिपः-पक्षियों के राजा, वाम–बाईं ओर की, बाहूम्-भुजाओं को, व्यपाहरत्-नष्ट कर दिया, अरिन्दमः-शत्रुाओं का नाश करने वाला।

अर्थ – तब उस पक्षीराज जटायु ने शत्रुओं का नाश करने वाली अपनी चोंच से झपटकर (अक्रमण करके) उसके (रावण के) बाईं ओर की दसों भुजाओं को नष्ट कर दिया।

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