1. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥1॥
शब्दार्थाः
आलस्यम् – आलस्य। हि-निश्चय से। मनुष्याणां – मनुष्यों के (को)। शरीरस्थः – शरीर में रहने वाला। रिपुः – शत्रु (है)। अद्यमसमः – परिश्रम के समान। बन्धुः – मित्र (भाई/सखा)। नास्ति – नहीं है।। सम् – जिसे, जिसको। कृत्वा – करके। अवसीदति-दुखी होता है। न – नहीं।
हिंदी अनुवाद:
निश्चय से आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा दुश्मन है। परिश्रम के समान उसका कोई मित्र नहीं है जिसको करके वह दुखी नहीं होता है।
2. गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः ॥2॥
शब्दार्थाः
गुणी – गुणवान व्यक्ति। वेत्ति – जानता है। निर्गुणः – गुणहीन (गुणों से हीन) व्यक्ति। बली – बलवान् व्यक्ति। बलम् – बल को। निर्बल: – बलहीन (बल से रहित)। पिकः – कोयल। वायसः – कौआ। करी – हाथी। मूषकः – चूहा।
हिंदी अनुवाद:
गुणवान् व्यक्ति गुण (के महत्व) को जानता है गुणहीन नहीं जानता। बलवान् व्यक्ति बल (के महत्व) को जानता है बलहीन (निर्बल) नहीं जानता है। कोयल वसन्त ऋतु के (महत्व) गुण को जानती है, कौआ नहीं जानता है और हाथी सिंह के बल को जानता है चूहा नहीं जानता है।
3. निमित्तमुद्दिश्य हि यः प्रकुप्यति,
ध्रुवं स तस्यापगमे प्रसीदति।
अकारणद्वेषि मनस्तु यस्य वै,
कथं जनस्तं परितोषयिष्यति ॥3॥
शब्दार्थाः
निमित्तम् – कारण। उद्देश्य – उद्देश्य करके (ध्यान में रखकर)। हि – निश्चित रूप से। प्रकुप्यति – अत्यधिक क्रोध ध्रुवं – निश्चित रूप से। स – वह (व्यक्ति)। तस्य-उस (कारण) के अपगमे – समाप्त होने पर। प्रसीदति – प्रसन्न हो जाता है। अकारणद्वेषि – बिना कारण के द्वेष करने वाला। वै – निश्चय से। कथं – कैसे। तम् – उसको। परितोषयिष्यति – संतुष्ट करेगा।
हिंदी अनुवाद
निश्चय से जो किसी कारण से अत्यधिक क्रोध करता है निश्चित रूप से वह उस कारण के समाप्त होने (मिट जाने) पर प्रसन्न भी हो जाता है। परन्तु जिसका मन बिना किसी कारण के किसी से द्वेष करता है, (फिर) कैसे मनुष्य उसे सन्तुष्ट करेगा।
4. उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते,
हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः,
परेगितज्ञानफला हि बुद्धयः ॥4॥
शब्दार्थाः
उदीरित: – कहा हुआ। अर्थः – संकेत/मतलब। गृह्यते – ग्रहण किया जाता है। नागा: – हाथी। वहन्ति – उठाते हैं।ले जाते हैं। बोधिता: – बताए गए। अनुक्तम् – बिना कहे। ऊहति – अंदाज़ा लगा लेता है। हि – क्योंकि निश्चय से। बुद्धयः – बुद्धियाँ। परेगितज्ञानफला: – दूसरों के संकेत से उत्पन्न ज्ञान रूपी फल वाली।
हिंदी अनुवाद
कहा हुआ अर्थ (मतलब/संकेत) पशु से भी ग्रहण कर लिया जाता है, घोड़े और हाथी भी कहे जाने पर ले जाते हैं। विद्वान बिना कहे ही बात का अंदाज़ा लगा लेता है, क्योंकि बुद्धियाँ दूसरों के संकेत से उत्पन्न ज्ञान रूपी फल वाली होती हैं।
5. क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,
देहस्थितो देहविनाशनाय।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,
स एव वह्निर्दहते शरीरम् ॥5॥
शब्दार्थाः
हि – निश्चय से। प्रथमः – पहला। देहस्थितः – देह में स्थित। देहविनाशाय – देह के नाश के लिए। यथास्थितः – यथावत् स्थित। काष्ठगतः – लकड़ी में रहने वाला। वह्निः – अग्नि। दहते – जलाती है।
हिंदी अनुवाद
निश्चय से मनुष्यों के शरीर में रहने वाला क्रोध शरीर को नष्ट करने के लिए (उनका) पहला शत्रु है। जैसे लकड़ी में स्थित आग उसे जलाने का कारण होती है, वही आग शरीर को भी जलाती है।
6. मृगाः मृगैः सङ्गमनुव्रजन्ति,
गावश्च गोभिः तुरगास्तुरङ्गैः।
मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीभिः,
समान-शील-व्यसनेषु सख्यम् ।।6।।
शब्दार्थाः
मृगाः – हिरण। मृगैः – हिरणों के (साथ)। सगम् – साथ। अनुव्रजन्ति – पीछे-पीछे चलते हैं। गावः – गायें। गोभिः – गायों के (साथ)। तुरगा: – घोड़े। तुरगैः – घोड़ों के (साथ)। सुधियः – विद्वान लोग। सुधिभिः – विद्वानों के (साथ)। समान-शील-व्यसनेषु – समान व्यवहार-स्वभावों (स्वभाव वालों में)। सख्यम् – मित्रता होती है।
हिंदी अनुवाद
मृग (हिरण) मृगों (हिरणों) के साथ पीछे-पीछे चलते हैं। गाएँ गायों के साथ, घोड़े-घोड़ों के साथ, मूर्ख मूखों के साथ तथा बुद्धिमान बुद्धिमानों के साथ जाते हैं (क्योंकि) समान व्यवहार और स्वभाव वालों में (परस्पर आपसी) मित्रता होती है।
7. सेवितव्यो महावृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
यदि दैवात् फलं नास्ति छाया केन निवार्यते ॥7॥
शब्दार्थाः
सेवितव्यः – सेवन (आश्रय लेने) के योग्य है। महावृक्षः – महान वृक्ष। फलच्छायासमन्वितः – फल और छाया से युक्त। दैवात् – भाग्यवश। निवार्यते – रोकी जाती है।
हिंदी अनुवाद
फल और छाया से युक्त महान वृक्ष आश्रय (सहारा) लेने योग्य होता है। यदि भाग्यवश फल न भी हों तो भी छाया किस के द्वारा रोकी जा सकती है? अर्थात् किसी के द्वारा नहीं।
8. अमन्त्रमक्षरं नास्ति, नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ॥8॥
शब्दार्थाः
अमन्त्रम् – मंत्र से रहित। अक्षरम् – अक्षर (ज्ञान)। मूलम् – जड़। अनौषधम् – औषधि से रहित। अयोग्यः – योग्यता रहित। योजक: – जोड़ने वाला। तत्र – वहाँ (उस स्थान पर)। दुर्लभः – कठिनाई से मिलने वाला।
हिंदी अनुवाद
मन्त्र से रहित (हीन) अक्षर नहीं होता है। जड़ जड़ी-बूटियों से रहित नहीं होती है। योग्यता से रहित व्यक्ति वास्तविक पुरुष (इनसान) नहीं होता है। वहाँ गुणों को वस्तुओं-व्यक्तियों से जोड़ने वाला दुर्लभ होता है।
9. संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।
उदये सविता रक्तो रक्तोश्चास्तमये तथा ॥9॥
शब्दार्थाः
संपत्तौ – सम्पत्ति आने पर। विपत्ती – मुसीबत होने पर। महताम् – महान् लोगों की। एकरूपता – एक जैसी स्थिति होती है। उदये – उदय होने पर। सविता – सूर्य। रक्तः – लाल। अस्तमये – अस्त होने पर।
हिंदी अनुवाद
धनवान होने अथवा (और) धनहीन होने पर महान् लोगों की एकरूपता (एक जैसी कार्यशीलता) होती है। जैसे उदय होते समय पर सूर्य लाल रंग का होता है तथा अस्त होने के समय पर भी लाल रंग का होता है।
10. विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः ॥10॥
शब्दार्थाः
विचित्रे – अनोखे। खलु – निश्चय से। किञ्चित् – कुछ। निरर्थकम् – बेकार। चेद् – यदि। धावने – दौड़ने में। भारस्य – भार के। वहने – उठाने में। खरः – गधा।
हिंदी अनुवाद
निश्चय से इस विचित्र (अनोखे) संसार में कुछ भी निरर्थक (बेकार) नहीं है। क्योंकि यदि घोड़ा दौड़ने में उपयोगी (वीर) होता है तो गधा भार को उठाने में (ढोने) में उपयोगी होता है।