1. शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम्।
तत्कृत्वा तु सुखं देह विमृद्नीयात् समनततः ॥1॥
शब्दार्थाः
शरीर – शरीर (के)। आयासजननम् – परिश्रम से प्राप्त (उत्पन्न)। व्यायामसंज्ञितम् – व्यायाम नाम वाला। देहम् – देह का। विमृद्नीयात् – मालिश करनी चाहिए। समन्ततः – एक ओर से।
हिंदी अनुवाद
शरीर के परिश्रम का काम व्यायाम नाम वाला होता है। उसे करके देह का सुख प्राप्त होता है। अतः सब तरफ से शरीर की मालिश करनी चाहिए।
2. शरीरोपचयः कान्तित्राणां सुविभक्तता।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मजा ॥2॥
शब्दार्थाः
शरीरोपचयः – शरीर की अभिवृद्धि। कान्ति – सुन्दरता। गात्राणाम् – अंगों की। सुविभक्तता – शरीरिक सौन्दर्य। दीप्ताग्नित्वम् – जठराग्नि का प्रकाशित होना (भूख लगना)। स्थिरत्वम् – स्थिरता (शान्ति)। लाघवम् – हल्कापन। मजा – शरीरिक स्वच्छता।
हिंदी अनुवाद
(व्यायाम करने से) शरीर की वृद्धि, शारीरिक अंगों की सुन्दरता, सम्पूर्ण शरीर का सौन्दर्य है। जठराग्नि में प्रकाश (भूख लगना), आलस्य की समाप्ति, स्थिरता, हल्कापन तथा शरीर की स्वच्छता भी व्यायाम से ही होती है।
3. श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते ॥3॥
शब्दार्थाः
श्रम – परिश्रम (मेहनत)। क्लम – थकान। पिपासा – प्यास। उष्णशीतादीनाम् – गर्मी तथा ठण्डियों की। सहिष्णुता – सहनशीलता। आरोग्यम् – स्वास्थ्य। परमम् – उत्तम। व्यायामात् – व्यायाम से। उपजायते – उत्पन्न (पैदा) होता है।
हिंदी अनुवाद
शारीरिक परिश्रम, थकान, प्यास, गर्मी और ठण्डियों की सहनशीलता और उत्तम स्वास्थ्य व्यायाम से उत्पन्न (प्राप्त) होते हैं।
4. न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम्।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ॥4॥
शब्दार्थाः
सदृशम् – समान। तेन – उसके (उससे)। किञ्चित् – कुछ। स्थौल्य – आपर्षणम्- मोटापे को दूर करने वाला। व्यायामिनम् – व्यायाम करने वाले को। मर्त्यम् – व्यक्ति को। अर्दयन्ति – कुचल पाते हैं। अरयः – शत्रु गण। बलात् – बलपूर्वक।
हिंदी अनुवाद
और उसके (व्यायाम के) समान कोई (कुछ) भी मोटापे को दूर (कम) करने वाला नहीं है। और ना ही व्यायाम करने वाले व्यक्ति को बलपूर्वक शत्रु कुचल पाते हैं।
5. न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥
शब्दार्थाः
चैनम् (च एनम्) – और इसको। सहसा – अचानक। आक्रम्य – आक्रमण (हमला) करके। जरा – बुढ़ापा। समधिरोहति – आता (दबाता) है। स्थिरीभवति – परिपक्व हो जाता है। मांसम् – मांस। व्यायाम – व्यायाम (में)। अभिरतस्य – लगे रहने वाले का।
हिंदी अनुवाद
और इस (व्यायामशील) व्यक्ति को अचानक बुढ़ापा नहीं आता (दबाता) है। और व्यायाम में तल्लीन (लोग) रहने वाले मनुष्य का मांस परिपक्व होता जाता है।
6. व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः
वयोरूपगुणीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥
शब्दार्थाः
व्यायाम – व्यायाम के कारण। उरगाः – साँप। स्विन्नगात्रस्य – पसीने से लथपथ शरीर वाले के। वयः – आयु (से)। पद्भ्याम् – दोनो पैरों से। रूप – सुन्दरता (से)। उद्वर्तितस्य – ऊपर उठने वाले के। गुणैः – गुणों से। व्याधयः – बीमारियाँ। हीनम् अपि – हीन को भी। उपसर्पन्ति – पास जाती हैं। सुदर्शनम् – सुन्दर। वैनतेयम् – गरुण के (को)। कुर्यात् – करता है। इव – समान।
हिंदी अनुवाद
व्यायाम के कारण पसीने से लथपथ शरीर वाले के और दोनों पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम करने वाले के पास रोग वैसे ही नहीं आते हैं जैसे गरुड़ के पास साँप। व्यायाम से आयु, रूप तथा गुणों से हीन व्यक्ति भी सुन्दर दिखाई देने लगता है।
7. व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोष परिपच्यते ।।7।।
शब्दार्थाः
व्यायामम् – व्यायाम को। कुर्वतः – करते हुए का। नित्यम् – प्रतिदिन। विरुद्धमपि – अनुपयोगी भी। भोजनम् – भोजन। विदग्धम् – भली प्रकार से पका हुआ। अविदग्धम् – भली प्रकार से न पका हुआ। निर्दोषम् – बिना कष्ट के। परिपच्यते – पच जाता है।
हिंदी अनुवाद
प्रतिदिन व्यायाम करते हुए व्यक्ति का विरुद्ध (अनुपयोगी), भली प्रकार, से पका हुआ अथवा न पका हुआ भोजन भी बिना कष्ट के पच जाता है।
8. व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम्।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः ॥8॥
शब्दार्थाः
हि – निश्चय से। सदा – हमेशा। पथ्यः – लाभदायक है। बलिनाम् – बलवानों का। स्निग्धभोजिनाम् – चिकनाई युक्त भोजन खाने वालों का। शीते – शीतकाल में। वसन्ते – वसन्त ऋतु में। तेषाम् – उनका (उनके लिए)। पथ्यतमः – बहुत ही लाभदायक। स्मृतः – कहा गया है।
हिंदी अनुवाद
निश्चय से व्यायाम सदा ही बलशालियों का और चिकनाई युक्त भोजन रखने वालों की दवा है। और वह शीतकाल में और वसन्त ऋतु में उसके लिए अतीव लाभदायक कहा गया है।
.9 सर्वेष्वतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः।
बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा ॥9॥
शब्दार्थाः
सर्वेषु – सभी। ऋतुषु – ऋतुओं में । अहरहः – प्रतिदिन। पुम्भिः – पुरुषों के द्वारा। आत्महितैषिभि – अपना (आत्मा का) हित चाहने वालों के द्वारा। बलस्य – बल का। अर्धेन – आधे भाग से। कर्तव्यः – करना चाहिए। हन्तयत: – रहित (कम) हो जाता है (हानिकारक)। अन्यथा – नहीं तो।
हिंदी अनुवाद
आत्मा का (अपना) हित चाहने वाले पुरुषों के द्वारा सभी ऋतुओं में प्रतिदिन आधे बल से व्यायाम करना चाहिए। नहीं तो (अन्यथा) व्यायाम हानिकारक हो जाता है।
10. हृदिस्थानस्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।
व्यायाम कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥10॥
शब्दार्थाः
हृदिस्थानस्थितः – हृदय देश (स्थान) में स्थित। वायुः – हवा। वक्त्रम्-मुँह को। प्रपद्यतेः – पहुँचती है। कुर्वतः – करते हुए के। जन्तोः – जीव (व्यक्ति) के। तद् – वह। बलार्धस्य – आधे बल का। लक्षणम् – लक्षण होता है।
हिंदी अनुवाद
जब हृदय स्थान में स्थित वायु (हवा) मुँह तक पहुंचती है। व्यायाम को करते हुए व्यक्ति के वह आधे बल का लक्षण होता है।
11. वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च।
समीक्ष्य कुर्यात् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥11॥
शब्दार्थाः
वयः – आयु। बलशरीराणि – बल और शरीरों को। देश – स्थान। काल – समय। अशनानिः – भोजन को। समीक्ष्यदेखभाल करके। कुर्यात् – करना चाहिए। अन्यथा – नहीं तो (अन्यथा)। आप्नुयात् – प्राप्त करे। रोगम् – रोग को (बीमारी को)।
हिंदी अनुवाद
आयु, बल, शरीर, देश (स्थान), समय और भोजन को देखकर ही व्यायाम को करना चाहिए अन्यथा (नहीं तो) रोग प्राप्त करेगा (रोगी हो जाएगा)।