1. दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।
शुचि-पर्यावरणम्॥
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।
मनः शोषयत् तनुः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥
दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जननसनम्। शुचि… ॥1॥

शब्दार्थाः:
दुर्वहम् – कठिन। जीवितम् – जीवन। जातम् – हो गया है। शुचिः – पवित्र शुद्ध। महानगरमध्ये – महानगरों के बीच में। चलत् – चलते हुए। कालायसचक्रम् – काला लोहे का पहिया। अनिशम् – रात-दिन। मनः – मन को। शोषयत् – सुखाते हुए। तनुः – शरीर को। प्रेषयद् – पीसते हुए। वक्रम् – टेढ़ा। दुर्दान्तैः – कठोर (भयानक)। दशनैः – दाँतों से। अमुना – इसके द्वारा। स्यात् – होवे। जनग्रसनम् – जनता का नाश।

हिंदी अनुवाद
जीवित रहना (जीवन) कठिन हो गया, अब प्रकृति की ही शरण है, शुद्ध पर्यावरण ही (हमारा आश्रय) है। महानगरों के बीच रात-दिन काले लोहे का पहिया (चक्का) चल रहा है। जो मन को सुखाते हुए और शरीर को पीसते हुए सदा टेढ़ा चलता रहता है। इसके द्वारा (इससे) अपने कठोर (भयानक) दाँतों से जनता का नाश न हो, इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही (हमारा आश्रय) है।

2. कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि …॥2॥

शब्दार्थाः
कज्जलमलिनम् – काजल की तरह काले। धूमम् – धुएँ को। मुञ्चति – छोड़ती है। यातानाम् – गाड़ियों की। शतशकटीयानाम् – सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ। वाष्पयानमाला – रेलगाड़ियों की पंक्तियाँ। संधावति – दौड़ रही है। वितरन्ती – फैलाती हुई। ध्वानम् – शोर को। हि – निषेचय से। पङ्क्तयः – पक्तियाँ। अन्नता: – अनन्त (अनगिनत) है। कठिनम् – कठिन। संसरणम् – चलना।

हिंदी अनुवाद
(आज देश में) सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल की तरह मैले (काले) धुएँ को छोड़ रही हैं। अनेकानेक रेलगाड़ियाँ चारों ओर शोर करती हुईं दौड़ रही हैं। गाड़ियों की पंक्तियाँ अनंत हैं, जिससे चलना कठिन हो गया है। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही (हमारी शरण) है।

3. वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…॥3॥

शब्दार्थाः
भृशम् – अत्यधिक। दूषितम् – प्रदूषित। जगति – संसार में। कुत्सितम् – गलत। समलम् – मैली। धरातलम् – धरती। बहु – बहुत भक्ष्यम् – खाने योग्य वस्तु। शुद्धीकरणम् – शुद्धता।

हिंदी अनुवाद
आज वायुमण्डल बहुत प्रदूषित हो गया है और जल (पानी) शुद्ध नहीं रहा। खाने योग्य सारी वस्तुएँ आज अशुद्ध (विषैली) वस्तुओं से मिलावटी हो गई हैं तथा सारी धरती मैली (अशुद्ध) हो चुकी है। इन सभी अशुद्धियों (मैल) को दूर बाहर करके अन्तर्जगत् अर्थात् मन व बुद्धि आदि को बहुत अधिक शुद्ध करना चाहिए। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है

4. कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।
प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम् ॥
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि…॥4॥

शब्दार्थाः
कञ्चित् – कुछ। कालं – समय। बहुदूरम् – बहुत दूर। मे – मेरा। प्रपश्यामि – देखू। निर्झर – नदी-झरने-नदी (को)। पयःपुरम् – जल से भरा हुआ तालाब। एकान्ते – एकान्त (निर्जन)। कान्तारे – जंगल में। नय – ले चलो। क्षणमपि – क्षण भर भी। स्यात् – हो। सञ्चरणम् – भ्रमण।

हिंदी अनुवाद
कुछ समय को (के लिए) मुझे इस (प्रदूषित) नगर से बहुत दूर ले चलिए। जहाँ गाँव की सीमा पर जल से भरी हुई नदी और झरने को देखू। निर्जन जंगल में मेरा क्षण भर के लिए भी भ्रमण होवे। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

5. हरिततरुणां ललितलतानां माला रमणीया।
कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥
नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि…॥5॥

शब्दार्थाः
हरिततरुणाम् – हरे भरे वृक्षों की। स्यात् – हो। ललितलतानाम् – सुंदर लताओं की। मे – मेरा (मेरे लिए)। माला – पंक्ति रमणीया – सुन्दर। समीरचलिता – हवा से चलाई हुई। वरणीया – वरण करने योग्य। नवमालिका – नई पंक्ति। रसालम् – आम (की)। मिलिता – प्राप्त हो। रुचिरम् – सुंदर। संगमनम् – मेल।

हिंदी अनुवाद
हरे-भरे वृक्षों की, सुन्दर लताओं की सुन्दर माला, हवा से हिलाई गई फूलों की पंक्ति (गुच्छे) मेरे लिए सुन्दर हो। आम की नई पंक्ति रुचिपूर्वक (मुझे) प्राप्त रहे।

6. अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशम्।
पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि…॥6॥

शब्दार्थाः
अयि – अरे। नः – हमारे। बन्धो! – मित्र। खगकुलकलरव – पक्षियों के समूह की आवाज़ से। गुञ्जितवनदेशम् – गुंजायमान वन के स्थान को। पुर – कलरव-नगर की कोलाहल से। सम्भ्रमितजनेभ्यः – भ्रमित लोगों के लिए। धृतसुखसन्देशम् – धैर्य के सुख का सन्देश। चाकचिक्यजालम् – चकाचौंध के जाल को। चल – चलो। कुर्यात् – करे। जीवितरसहरणम् – जीवन के स का हरण।

हिंदी अनुवाद
मित्र (बन्धु/भाई)! पक्षियों के समूह की आवाज़ से गुंजायमान वन में चलो। नगर की आवाज़ (कोलाहल) से परेशान लोगों को धैर्य के सुख का सन्देश दो, नगरों की चकाचौंध भरी दुनिया कहीं हमारे जीवन के रस का हरण न कर ले। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

7. प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…॥7॥

शब्दार्थाः
प्रस्तरतले – पत्थर के नीचे। लतातरुगुल्मा: – बेले, पेड़ और झाड़ियाँ। नो – नहीं। भवन्तु – हों। पिष्टा: – पिसी हुई। पाषाणीसभ्यता – पत्थरों वाली सभ्यता। निसर्गे – प्रकृति में / संसार में। स्यात् – हों। समाविष्टा – मिली (सम्मिलित)। कामये – कामना करता हूँ। जीवन्मरणम् – जीवन की समाप्ति।

हिंदी अनुवाद
पत्थर के तल (नीचे) पर लताएँ, पेड़ और झाड़ियाँ पिसें नहीं। प्राकृति में पथरीली सभ्यता समाविष्ट (सम्मिलित) न हो। मैं मनुष्य के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवित मृत्यु की नहीं। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है।

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