हिंदी का भाषिक स्वरूप- हिंदी की स्वनिम व्यवस्था-खड़्य ओर खड़्येत्तर

किसी भाषा के मूलभूत इकाई स्वनिम कहलाती है।स्वनिम शब्द स्वन से बना है।स्वन का अर्थ है -वाक् ध्वनि। भाषा विशेष में प्रयोग करने पर यह वाक् ध्वनि अर्थभेदक होकर स्वनिम कहलाती है।स्वन या ध्वनि या ध्वनि भाषा की लघुत्तम इकाई मानी जाती है। परिभाषा- ड़ा० भोलानाथ- स्वनिम किसी भाषा की वह अर्थभेदक ध्वन्यात्मक इकाई है, […]

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कम्प्यूटर ओर हिंदी

आज का युग प्रौद्योगिकी, सूचना तथा संचार का युग है।सूचना प्रौद्योगिकी, तकनीकी उपकरणों द्वारा सूचनाओं का संकलन तथा सम्प्रेषण करता है।आज के युग में कम्प्यूटर द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो नई क्रांति हुई है, वह है-यांत्रिकी ओर कम्प्यूटर की नई भाषाई माँगों को पूरी करना । इन सब भाषाओं में हिंदी का विशेष

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संचार माध्यम ओर हिंदी

संचार=एक सोचना को दूसरों तक पहुँचाना ।अंग्रेज़ी शब्द कम्यूनिकेशन- किसी बात को आगे बढ़ाना या चलाना। संचार की प्रमुख परिभाषाएँ- राबर्ट एंडरसन- वाणी लेखन या संकेतों के द्वारा विचारों, अभिमतों अथवा सूचना का विविध विनिमय करना संचार कहलाता है। ड़ा० हरिमोहन-संचार एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच अर्थपूर्ण

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हिंदी के विविध रूप-

हिंदी खड़ी बोलिसे आधुनिक मानक हिंदी का विकास हुआ है | खड़ी बोली का विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ |सबसे पहले अमीर खुसरो ने हिंदी कड़ी बोली में रचना की जिसे निम्न दोहा दर्शाता है- गोरी सोये सेज पर, मुख पर डाले केश | चल खुसरू घर अपने, रेन भई चहूँ देश || मध्यकाल

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हिंदी भाषा प्रयोग के विविध रूप

भारत के बहुसंख्यक लोगों की भाषा हिंदी है जो मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली,राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान , मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , बिहार और झारखण्ड आदि | बोली- वह भाषिक संचार माध्यम जिसका प्रयोग सीमित जगह में किया जाता है, बोली कहलाती है | जैसे-भोजपुरी इत्यादि | इसी प्रकार हिंदी क्षेत्र में

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आदिकाल का नामकरण व काल विभाजन

Leave a Comment / Educational / By sukhvinder787 आदिकाल (1050-1375)(महारोज भोज से लेकर हम्मीर देव से पीछे तक) इस काल के विभिन्न नाम साहित्यकार नामकरण समयावधि (ई०) टिप्पणी गिर्यसन चरण काल 7000-1300 मिश्र बंधु प्रारम्भिक काल 0700-1343 (1) 1344-1444 (2) पूर्व आरंभिक उत्तर आरम्भिक आचार्य शुक्ल वीर गाथा काल 1050-1375 12 ग्रंथों (विजयपाल रासो,खुम्माण रासो ,कीर्तिलता आदि) आधार पर

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विजयपाल रासो

मिश्रबंधुओं ने अपने ग्रंथ “मिश्रबंधु विनोद” में इस ग्रंथ जा उल्लेख मिलता है।इसके रचयिता नल्हसिंह भाट माने जाते हैं।इसका रचनाकाल 1298 ई० माना जाता है। ड़ा० राजनाथ शर्मा के अनुसार इस कृति में विजय पाल सिंह ओर बंग राजा के युद्ध का वर्णन है। ड़ा० राजबली पाण्डेय के अनुसार इस रचना में रचनाकार ने राजा

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हम्मीर रासो

यह अभी तक एक स्वतंत्र कृति के रूप में उपलब्ध नहीं हो सका है ।अपभ्रंश के “प्राकृत पैंगल” नामक संग्रह ग्रंथ में संगृहीत हम्मीर विषयक 8 छंदों को देख शुक्ल जी ने इसे एक स्वतंत्र ग्रंथ मान लिया था ।प्रचलित धारणा के अनुसार इसके रचयिता शारंगधर माने जाते हैं। परंतु कुछ पदों के आधार पर

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