भक्ति आंदोलन के उदय के सामाजिक ओर सांस्कृतिक कारण
भक्ति की प्रधानता के कारण इसे भक्तिकाल कहा जाता है |गिर्यसन महोदय ने इसे धार्मिक पुनर्जागरण कहा है | भक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख “श्वेताश्वेतर उपनिषद” में मिलता है | गिर्यसन ने इसे हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा है| रामविलास शर्मा ने-लोक जागरण काल हजारी प्रसाद द्विवेदी-लोक जागरण नामकरण साहित्यकार समयावधि मिश्रबंधु संवत् 1444-1560 विक्रम पूर्व
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पृथ्वीराज रासो
इसे “छंदों का अजायबघर” कहा जाता है | आचार्य शुक्ल ने इसे हिंदी का प्रथम महाकाव्य ओर इसके रचयिता चन्दरबरदाई को हिंदी का प्रथम कवि माना है।चन्दरवरदाई दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहाण के प्रमुख सामंत सलाहकार, मित्र ओर राज कवि थे| उन्होंने खुद को छः भाषाओँ का ज्ञाता बताया है| चंदरबरदाई इसे पूरा नहीं कर पाए
आदिकाल की विशेषताएँ एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ
परिस्थितियां राजनीतिक परिस्थिति-युद्ध और अशांति का काल, हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद छोटे स्वतंत्र ( परमार, चौहान,चंदेल) राज्यों का उदय राजनीतिक अन्तः क्लेश के कारण शक्ति क्षीण, महमूद गजनबी(10 वीं सदी), मुहम्मद गोरी (12 वीं सदी) का आक्रमण 8-14 वीं सदी तक यह काल युद्ध, संघर्ष, अशांति, अराजकता, गृहक्लेश, विद्रोह का काल धार्मिक परिस्थिति-वैदिक, बौद्ध
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हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियाँ
वर्णानुक्रम- लेखक और कवियों का परिचय उनके नाम के वर्णों के क्रम के अनुसार ( गार्सा द तासी, शिव सिंह सेंगर) कलानुक्रमी -लेखक और कवियों का परिचय उनके जन्मतिथि तथा ऐतिहासिक काल के क्रम के अनुसार (जार्ज गिर्यसन, मिश्र बन्धु) वैज्ञानिक -पूर्णतः तटस्थ रहकर तथ्यों का संकलन करके व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना | यह
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हिंदी साहित्य इतिहास दर्शन
इतिहास शब्द से सांस्कृतिक एवं राजनीतिक इतिहास का बोध होता है, किन्तु साहित्य भी इतिहास से भिन्न न होकर उससे जुड़ा हुआ है | साहित्य के इतिहास का अर्थ है-देशकाल की सीमाओं में विकसित साहित्य का समग्र रूप से अध्ययन करना |साहित्य की विकास प्रक्रिया के सम्बन्ध में मुख्य सिद्धांत- तेन-साहित्य की व्याख्या के तिन
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हिंदी की सैंविधानिक स्थिति
14 सितम्बर 1949 ओ संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि जिन्दी भारत की राजभाषा होगी | इसलिए 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है | राष्ट्रपति ने अधिसूचना संख्या 59/2/54 दिनांक 03/12/1955 सरकारी प्रयोजनों में हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी के प्रयोग से सम्बन्धित संविधान के भाग 17 के अध्याय धारा
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हिंदी ध्वनियों के वर्गीकरण
हिंदी ध्वनियों के वर्गीकरण के आधार-१. स्वर के आधार पर २. व्यंजन के आधार पर स्वर के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जा सकता है- जिह्वा के उत्थापित(ऊपर उठना) भाग के आधार पर= तीन भेद = अग्रस्वर , मध्य स्वर, पश्च स्वर जिह्वा की ऊँचाई के आधार पर– चार भेद-संवृत्त स्वर
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प्रत्यय
वे शब्दांश जो किसी भी शब्द के पीछे लगकर उसके अर्थ में परिवर्तन करते हैं, प्रत्यय कहलाते हैं । भेद- कृदंत (क्रिया या धातु के अंत में) आ, आई, आन, इया, त, नी तद्धित प्रत्यय (धातुओं को छोड़कर बाक़ी सभी शब्दों के साथ) एरा, एली, ई, इक
उपसर्ग-
वे शब्दांश जो किसी भी शब्द के आगे आकर उसके अर्थ को बदल देते हैं , उपसर्ग कहलाते हैं । भेद- उपसर्ग तीन प्रकार के होते हैं – 1.तत्सम उपसर्ग- अति, अधि, अभि, अनु, अप, अब, उप, उत/उद, दुर/दुस, निर, निस, परा, परि, प्रति, वि, कु, सम, स, सु, नि, प्र, आ ( व्यंजनांत शब्दांश