मुर्दों के इस संसार में

मुर्दों के इस संसार में मुर्दों के संसार में इंसान बिकते सरे बाजार देखे कुछ सिर्फ देखने में ज़िंदा थे कुछ ज़िंदा मुर्दे देखे कुछ देखे मतवाले कुछ दीवाने देखे कुछ देखे सज्जन कुछ ढोंगीपन के बेताज बादशाह देखे देखि कहीं सच्चाई कहीं बहते झूठ के दरिया देखे कहीं लहू लुहान रिश्तों के धागे देखे […]

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बुजुर्गों की आँखें

बुजुर्गों की आँखें क्या कहती हैं जब देखी खामोश आँखें बुजुएगों की कुछ कहना कुछ बताना चाहती हो जैसे कुछ जानना कुछ जताना चाहती हों जैसे एक कातरता एक ठहराव कभी सागर सी गहराई दिखाई देती है जैसे उन आँखों में जीवन की हर सच्चाई दिखती है जैसे लगता है कुछ कह रही हैं अपने

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वो बचपन

वो बचपन याद बहुत आता है वो सुहानी यादें फिर बटोर लाता है वो बचपन था जन्नत का बसेरा ना कुछ तेरा था ना कुछ मेरा उस जमाने सब हमारा था वो बहनों भाइयों का प्यार भी न्यारा था न चालाकी ना हेरा फेरी थी ना होशियारी ना गद्दारी थी हर रिश्ते में एक वफादारी

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छड्ड दिला

छड्ड दिला दुनिया नु इदा ता सर ही जाणा किन्ने तैनू पूछना जे तू मर वि जाणा तेरी कि औकात वे निमाणया इत्थे ते बड्डे बड्डे कर सके ना ठिकाणा ……………………… सर ही जाणा किन्नू कु तेरी फिकर डून्गा सोच के वेख ले एक बारी सब कुछ छड के ता वेख ले ना किसे ने

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ओ मां

ओ मां ये रीत किसने और क्यों बनाई है ? एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है जिसने अपना बचपन तेरे आंचल और बाप की छाया में बिताया जिसने भगवान् को आप दोनों में ही है पाया उस अभागी बेटी ने ये कैसी किस्मत पाई है …………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों

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दो सखियों की बातचीत

क्यूँ री सखी क्या तू इस किताब व् उंगुलीवाले भीम को जानती है या तू भी मेरी तरह इस भीम को महाभारतवाला भीम ही मानती है पर समझ नहीं आता ये कौन सा भीम है जो हमेशा सूठ-बूट में सजा है मैंने महाभारत वाले भीम के हाथ में तो देखा हमेशा गदा है ये जो

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मैं

मैं हूं तो कुछ नहीं है सामने, मै नहीं तो सारा संसार नजर आता हैमै हूँ तो मै ही हूँ मै के नीचे सब कुछ दब जाता हैमै का मान करते करते मै मै का अहसास तब हुआएक दिन जब मै मै के बोझ के नीचे दब गयामै वो बादल का टुकडा जो अहंकार के

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महिला उत्थान में एक पहल “

महिला को कभी भी कम समझने की मत करना कोई भूल, समय आने पर अपने परिवार की लिए उठा लेगी त्रिशूल l नारी को मिलना चाहिए जीवन में उसको उसका संमान, उसे भी अधिकार है कि पूरे हो जाए अपने सारे अरमान l घर में खुश यदि नारी है तो समझो पूरा खुश होगा ये

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कवितायेँ

तबादला नीति बनी जी का जंजाल, वर्तमान में बिगड़ता गृहस्थ जीवन, महिला उत्थान में एक पहल- प्रवीण कुमार सिसवाल मैं, दो सखियाँ, ओ माँ , छड्ड दिला वो बचपन , बुजुर्गों की आँखें  मुर्दों के संसार में,  आज को जो दौर,  Facebook और Whatsapp,  शिक्षक,  हारती जिंदगियों, फेसबुक, मातृभाषा , स्थानांतरण   -सुखविन्द्र   

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वर्तमान में बिगड़ता गृहस्थ जीवन”

एक दूसरे का ख्याल छोड़कर दिन- रात खो गए ऐसे, मानो उन पर असर कर गया हो कोई किसी का मन्त्र l अब तो आपस की बातों में भी दिलचस्पी कम हो रही है, जब से पुस्तक छोड़कर हाथों में आ गया दूरसंचार यन्त्र l घर में कोई भी रिश्तेदार आए या चाहे कोई भी

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