विद्यापति की पदावली

बिहार के दरभंगा जिले में विपसी गांव में जन्मे विद्यापति (1350 -1450) हिंदी के आदि गीतकार माने जाते हैं |ये तिरहुत के राजा शिव सिंह और कीर्मति सिंह के दरबारी कवि थे| ये शैव सम्मप्धुरदाय के कवि हैं | मधुर गीतों के रचयिता होने के कारण इन्हें अभिनव जय देव के नाम से भी जाना […]

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अमीर खुसरो काव्य

हिंदी में खड़ी बोली के प्रथम काव्य प्रयोग का श्रेय इन्हीं को जाता है |इनका वास्तविक नाम अबुल हसन था | यह निजामुद्इदीन औलिया के शिष्य थे | इन्होने दिल्ली के सिंहासन पर 11 राजाओं का आरोहण देखा था |इन्होने हिन्दुओं -मुसलमानों में एकता स्थापित करने का प्रेस किया | या अनेक भाषाओँ ( अरबी,

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वर्ण रत्नाकर

मैथिली हिंदी में रचित यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है| मैथिलि कवि ज्योतिशेखर ठाकुर इसके लेखक हैं| इसकी रचना 14 वीं सदी के आस-पास मानी जाती है|यह एक शब्दकोशनुमा ग्रन्थ है |इसमें कवित्व, आलंकारिकता तथा शब्दों की तत्सम प्रवृतियाँ मिलाती हैं |हिंदी गद्य के विकास में इसका एक महत्त्वपूर्ण स्थान है |

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उक्ति व्यक्ति प्रकरण

दामोदर शर्मा द्वारा रचित यह रचना 12 वीं शताब्दी की है| यह एक प्रमुख व्याकरण ग्रन्थ हैं | इसमें बनारस और इसके आस-पास के क्षेत्र की तत्कालीन संस्कृति तथा भाषा का वन्न किया गया है| इसके भाषा अध्ययन से तत्कालीन गद्य-पद्य दोनों शैलियों की हिंदी भाषा में तत्सम पदावली के प्रयोग की प्रवृति का ज्ञान

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राउल वेल

यह गद्य पद्य की मिश्रित चम्पूकाव्य प्राचीनतम हिंदी कृति है |इसकी रचयिता रोड़ा नामक कवि को माना जाता है| रचनाकाल 10 वीं शताब्दी मन गया है | इसमें राउल नायिका के नखशिख का वर्णन किया गया है| शुरू में नायिका के सौन्दर्य का वर्णन पद्य में फिर गद्य में किया गया है| यहीं से हिंदी

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बीसलदेव रासो

इसके रचयिता नर पति नाल्ह हैं | यह आदिकाल की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है | यह कथा 120 छंदों और 4 कह्यन्हदों में विभक्त है एक प्रेम काव्य है जो संयोग व वियोग के गीतों से युक्त है |इसमें अजमेर के राजा बीसलदेव तृतीय तथा भोज परमार की पुत्री राजमती के विवाह, वियोग

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ढोला मारू रा दूहा

इसके रचनाकार “कुशलराय” हैं| ग्याहरवीं सदी में रचित यह ग्रन्थ मूलतः दोहों में लिखा गया है| कछवाहा वंश के राजा नल के पुत्र ढोला और पूगल के राजा पिंगल की रूपवती कन्या मारू (मारवाड़ी) की प्रेमकथा है |यह पश्चिमी राजस्थान की अति लोकप्रिय काव्य कृति है | इस राजस्थानी लोककथा में ढोला और मारवाड़ी को

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पूस की रात

यह प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है ।यह कहानी किसानों ओर कृषि की आर्थिक स्थिति का आइना है। कहानी किसानों की दो मुख्य समस्याओं पर आधारित है -१. क़र्ज़ में डूबा किसान २. खेती की लाभकारी स्थिति। कहानी का मुख्य पात्र हल्क़ु एक किसान है । वह हरवक्त क़र्ज़े में डूबा रहता है। उसकी पत्नी मुन्नी परेशान है क्योंकि वे जो भी कमाते हैं सब क़र्ज़ चुकाने में चला जाता है । हल्क़ु ने मुश्किल से कम्बल ख़रीदने के लिए तीन रुपए जमा किए थे लेकिन इन्हें भी सहना ले जाता है । हल्क़ु पूस की ठंडी रातों में खेत की रखवाली करता है जहाँ उसका एक मात्र साथी ज़बरा नामक कुत्ता होता है । कहानी कुछ इस प्रकार है कि हल्क़ु कड़ाके की ठंड में खेतों की रखवाली करता है । परंतु असहनीय ठंड उसकी नसों के खून को जमा देने वाली होती है । तब पेड़ की पत्तियों को इकट्ठा करके आग जला लेता है । जब तक आग जलती रहती है तो वह पूरे जोश में रहता है पर जैसे ही आग बुझ जाती है , सिर्फ़ आग नीचे कुछ पत्तियाँ सुलगती रहती है। ज़बरा जब भौंक कर उसे बुलाता है तो वो समझ जाता है कि खेत में कोई जानवर घुस गया है । फिर उसे फसल के खाने की भी आवाज़ सुनाई देती है तो वह समझ जाता है कि ये ज़रूर नील गाय हैं । वह इन्हें भगाने के लिए जैसे ही आग वाली जगह से चलता है तभी एक ठंडी हवा का झोंका आकर उसे रोक देता है । वह दोबारा आग वाली जगह के पास आकर लेट जाता है । फिर सुबह जब मुन्नी आकर देखती है तो सारा खेत बर्बाद किया जा चुका था । हल्क़ु सारी रात कुत्ते को गोद में लेकर निकाल देता है । रात की ठंडकी यातना उसे इतना तटस्थ बना देती है की उसे नील गाय द्वारा फसल खा लिए जाने से रंज नहीं होता बल्कि प्रसन्नता होती है कि अब उसे रातों को जागकर पहरेदारी नहीं करनी पड़ेगी । कहानी का अंत यथार्थ पृष्ठभूमि ओर मनोवैज्ञानिक अनुभव के साथ होता है ।हल्क़ु ने स्वयं की खींची हुई लकीरों से बाहर निकलते देख पाठक अचंभित रह जाता है ।यही कहानी का शिल्प-सौष्ठव है । पूस की रात कहानीका नायक हल्क़ु सदैव के लिए अमर हो गया है। आज भी किसानों की कमोबेश यही स्थिति है। कहानी का उद्देश्य ग्रामीण जीवन की कठिनता, कर्ज में डूबे किसानों की विवशता, आर्थिक विपन्नता आदि को उजागर करना है ।  आर्थिक संकटों के कारण किसानों की मजदूरी की ओर आकृष्ट होना पलायनवाद जा संकेत है ।

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ख़ुमान रासो

रासो परम्परा के आरम्भिक ग्रंथों में ख़ुमान रासो का नाम सर्वोपरि है।इसका सर्वप्रथम उल्लेख शिव सिंह सेंगर की कृति “शिव सिंह सरोज” में मिलता है । इसके रचयिता दलपति विजय हैं। रामचंद्र शुक्ल इसे नवीं सदी की रचना मानते हैं ।इसमें राजस्थान के चितौड नरेश खुमण (ख़ुमान) द्वितीय के युद्धों का शिव वर्णन किया गया

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गुल्ली डंडा

यह कहानी फ़रवरी 1924 में हंस पत्रिका में प्रकाशित हुई थी ।यह कहानी बाल मनोविज्ञान ओर असमान सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित है ।बचपन की यादों को लेकर यह कहानी लिखी गई है ।इस कहानी के मुख्य पात्र हैं- गया, मतई, मोहन,दुर्गा आदि। लेखक को याद है कि किस तरह गया चमार गुल्ली डंडे का का

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