सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

राजनीतिक परिस्थिति– राजनीतिक दृष्टि से यह काल मुगलों के शासन की वैभव की चरमोत्कर्ष और उसके बाद उत्तर काल में ह्रास, पतन और विनाश का काल था।शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल वैभव अपनी चरमसीमा पर था।राजदरबारों में वैभव, भव्यता और अलंकरण प्रमुख था।राजा और सामन्त मनोरंजन के लिए गुणीजनों कवियों और कलाकारों को आश्रय देते […]

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रीतिकाल का अर्थ और नामकरण

रीतिका अर्थ पद्धति, शैली और काव्यांग निरुपण से है।साहित्य को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है-प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल। फिर पुन मध्यकाल को दो भागों में बांटा गया है- पूर्व मध्यकाल (भक्ति काल) उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) | 1643 विषय 1843 वीं तक के कालखंड को रीतिकाल कहा गया है। नामकरण अलंकृत

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केशवदास

इनका जन्म 1555 ई० में बुन्देलखण्ड के ओरछा में और मृत्यु 1617 में हुई | ये ओरछा नरेश रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के गुरु और राज्याश्रित कवि थे | इनका उपनाम वेदांती मिश्र था | ये निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित थे | ये मुख्यतः रीतिकालीन कवि हैं, परन्तु कुछ रचनाएँ रामभक्ति से सम्बन्धित हैं

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ईश्वरदास

इनकी रामकथा से सम्बन्धित रचना भरत-मिलाप है | इसमें वन में राम से मिलते हुए भरत के करुण और कोमल प्रसंग को आधार बनाया गया है | इनकी दूसरी रचना अंगदपैज भी रामकथा से सम्बंधित है | इसमें रावण की सभा में अंगद के पैर जमाकर खड़े रहने का वीर रस से परिपूर्ण वर्णन किया

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नाभादास

जन्म अनुमानतः 1570 के आस-पास हुआ | तुलसीदास के समकालीन कवि इन्होने भक्तमाल की परम्परा का सूत्रपात किया | इनके गुरु का नाम अग्रदास था | गिर्यसन से इनका उपनाम नारायणदास बताया है | 1585 में ब्रजभाषा में “भक्तमाल” की रचना की | भक्तमाल में 200 कवियों का जीवनवृत्त और भक्ति 316 छ्प्पयों में लिखी

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अग्रदास

ये तुलसी के समकालीन थे | इन्होने अनंतानंद के शिष्य कृष्णदास पयहारी से दीक्षा ग्रहण की | रामभक्ति में रसिक भावना का समावेश किया | रसिक सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया | जिसका आधार ग्रन्थ नाभादास का अष्टयाम है | प्रमुख ग्रन्थ- ध्यानमंजरी, रामभजनमंजरी, उपासना बावनी और पदावली है | स्वयं को जानकी की सखी मानकर

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तुलसीदास

तुलसी की गुरु परम्परा= राघवानंद-रामानंद-अनंतानंद- नरहरिदास-तुलसीदास जीवन चरित के आधार ग्रन्थ = मूलगोसाई (बेनीमाधवदास), तुलसीचरित (रघुवरदास), भक्तमाल की टीका( प्रियादास) जन्म=1532-1623 ई० (1554 विक्रमी मृत्यु=1680 विक्रमी) ( विभिन्न मत) पिता का नाम=आत्माराम दुबे , माता का नाम= हुलसी जन्म स्थान= एटा जिले के सोंरो नामक स्थान पर (शुक्ल ने सूकर खेत, शिवसिंह सेंगर ने राजापुर)

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स्वामी रामानंद

जीवनकाल= 1400-1470 ई० के बीच माना जाता है | इनका जन्म काशी में हुआ | राघवानंद से दीक्षा ली | इनके बारह शिष्यों का उल्लेख भक्तमाल में हुआ है जिनमें प्रमुख- कबीर, रैदास, धन्ना, पीपा आदि | इन्होने रामावत सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया | ये संस्कृत के भी प्रकांड पंडित थे | प्रसिद्ध ग्रन्थ=वैष्णव मताब्ज

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रामकाव्य का अर्थ एवं उत्पत्ति

इसमें राम को आधार बनाकर काव्य रचना की गई है | मुख्य स्रोत्र वाल्मीकि रामायण है जिसका वर्णन महाभारत में भी वर्णन है-आरण्यक पर्व, द्रोण और शांति पर्व | उपनिषदों (रामरहस्योपनिषद) तथा पुराणों (विष्णु, वायु, भागवत, कर्म ) में भी रामकथा का वर्णन | बौद्ध जातक कथाओं (दशरथजातक, अनार्मतजातक) जैन धर्म ग्रंथों (पउमचरिउ, राम-मंदोदरी संवाद,

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अन्य प्रमुख कृष्णभक्त कवि

मीरा बाई=इनका जन्म 1457 ई० में मेड़ता के समीप कुडकी गाँव में हुआ | इनका पिता का नाम रतनसिंह था , माँ बचपन में चल बसी | अतः इनका पालन-पोषण राव दूदा ने किया |1516 में राणा सांगा के बड़े बेटे भोज के साथ हुआ | 7 वर्ष बाद उनकी मृत्यु हो गई | वे

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