सूफी मत का वैचारिक आधार 

  • इसका और प्रचलित नाम – प्रेममार्गी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, प्रेमाख्यान काव्य परम्परा,रोमंसिक कथा है
  • इसमें प्रेम तत्व की प्रधानता 
  • मध्यकालीन प्रेमाख्यान ग्रंथों में इसी रोमांस का चित्रण
  • शुक्ल ने इन प्रेमाख्यानों पर फारसी मसनवियों (नायिका का विवाह प्रतिनायक से हो जाता है और नायक आत्महत्या कर लेता है )प्रभाव माना है, परन्तु  भारतीय परम्परा में भी ऐसा साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलता है-उर्वशी-पुरुरवा संवाद, नल-दमयंती संवाद, राधा-कृष्ण संवाद आदि |महाभारत में ऐसी अनेक कथाएँ मिलती हैं |
  • उपरोक्त में भारतीय नायक नायिका से प्रणय की आकांक्षा करता दिखता है |
  • बृहत्कथामंजरी और कथासरित्सागर भी इसके उदाहरण हैं |
  • प्राकृत और अपभ्रंश में रचित जैन साहित्य में इस प्रकार कि प्रेम कथाओं का वर्णन मिलता है 

सूफी शब्द की उत्पत्ति

  • मदीना के सामने वाले चबूतरे जिसका नाम सुफ्फा चबूतरा था, पर बैठने वाले फकीरों को सूफी कहा जाने लगा
  • सोफिया शब्द जिसका अर्थ = ज्ञान
  • सफा शब्द जिसका अर्थ=शुद्ध और पवित्र
  • सूफ शब्द जिसका अर्थ= ऊन (सूफी लोग सफ़ेद ऊन से बने चोगे पहनते थे |

सूफी मत का स्रोत

  • यह इस्लाम धर्म का अंग है |
  • इस्लाम में शरियत (कर्मकांड) की प्रतिक्रिया का परिणाम
  • उदारता एवं कोमलता (इस्लामिक कट्टरता का अभाव)
  • मूल तत्व प्रेम, लौकिक प्रेम से अलौकिक को प्राप्त करने पर बल
  • इसका आदि स्रोत=शामी जातियों की आदिम प्रवृत्तियों में
  • सूफियों का इल्हाम और हाल की दशा का मूल भी शामी ही हैं |

मान्यताएं

  • ईश्वर को निराकार व सर्वव्यापी मानते हैं |
  • मानव श्रृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी और उसमें ईश्वर की छाया
  • मानव में परिपूर्णता काबीज सुप्तावस्था में होता है उसे प्रस्फुटित करना प्रमुख कर्त्तव्य
  • ईश्वर का साक्षात्कार गुरु या पीर की मदद से होता है
  • फना मानवीय गुणों का नाश और बका ईश्वरीय गुणों की प्राप्ति
  • शैतान साधक के मार्ग में बाधक
  • साधना के सात सोपान-अनुताप,आत्मसंयम, वैराग्य, दारिद्रय, धैर्य, विश्वास और प्रेम |
  • ईश्वर साधना के चार मुकाम-शरीअत, तरीकत, मारिफत, और हकीकत |
  • हाल की चार दशाएँ-नासूत, मलकत, जबरूत और लाहूत |
  • हाल की दशा में पहुंचकर साधक अपनी प्रिया(ईश्वर) के रूप में लीन हो जाता है |
  • मजार पूज्य और तीर्थयात्रा की मान्यता
  • इश्क मजाजी (लौकिक प्रेम)से इश्क हकीकी(अलौकिक प्रेम) प्राप्त करने पर बल

प्रमुख प्रवृत्तियाँ

  • मुसलमान कवि एवं मसनवी शैली
  • प्रेमगाथाओं का नामकरण नायिका के आधार पर
  • लौकिक प्रेम कथाओं के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना
  • कथा संगठन एवं कथानक रूढ़ियाँ (इरानी काव्य रूढ़ियाँ)
  • नायक-नायिका के चित्रांकन की एक जैसी पद्धति
  • लोकपक्ष और हिन्दू संस्कृत का चित्रण
  • भाव और रस व्यंजना
  • वस्तु वर्णन (मूल कथा के साथ-2 वास्तु, दृश्य एवं घटना का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन
  • किसी विशेष सम्प्रदाय का खंडन-मंडन नहीं किया |
  • काव्य रूप-दोहा-चौपाई शैली, कडवक शैली का प्रयोग
  • भाषा और अलंकार-अवधी , उपमान, श्लेष, व्यतिरेक, विभावना, अनुप्रास, संदेह जैसे अनेकों अलंकारों का प्रयोग

प्रमुख सूफी ग्रंथों का परिचय

चंदायन

  • लोरकथा नाम ड़ा० माताप्रसाद गुप्त ने दिया
  • रचनाकार= मुल्ला दाउद 1379 में
  • नायक का नाम=लोर/लोरिक
  • नायिका का नाम=चंदा
  • दोनों के उन्मुक्त प्रेम का चित्रण किया गया है
  • इसमें प्रथम दर्शन से प्रेम को उत्पत्ति, प्रेम में बाधा, नाग द्वारा नायिका को डंस लेना और गारुडी द्वारा उसे ठीक करना दिखाया गया है |
  • रचना=कड़वक शैली में (प्राकृत और अपभ्रंश भाषा) जिसमें 5 अर्धार्लियों के बाद दोहा आता है |
  • मसनवी शैली का अनुसरण नहीं किया गया |

मृगावती

  • शुक्ल में प्रेमाख्यान परम्परा का पहला ग्रन्थ माना है |
  • रचनाकार= कुतुबन 1503
  • नायक= एक राजकुमार,
  • नायिका= एक राजकुमारी मृगावती
  • प्रथम दर्शन में नायिका से प्रेम , उसे पाने के लिए योगी के वेश में घर से निकलकर, रस्ते में एक अन्य सुन्दरी को राक्षस से बचकर शादी करते हुए मृगावती प्राप्त करता है |
  • अन्य अपभ्रंश काव्यों की भांति नायक की मृत्यु और नायिकाएँ सती हो जाती हैं |
  • भाषा=अवधी
  • कड़वक शैली (दोहा-चौपाई शैली)

मधुमालती

  • रचनाकार= मंझन 1545
  • नायक= मनोहर,
  • नायिका= मधुमालती
  • नायक का एकनिष्ठ (एकतरफा) प्रेम
  • उसे पाने के लिए अनेक कष्ट
  • प्रथम दर्शन में नायिका से प्रेम , उसे पाने के लिए योगी के वेश में घर से निकलकर, रस्ते में एक अन्य सुन्दरी को राक्षस से बचाता है, माँ के श्राप से नायिका पक्षी बन जाती है |
  • उदात्त प्रेम का चित्रं किया गया है |
  • महासुंदरी प्रेमा के शादी (प्रणय)के प्रस्ताव को ठुकरा देता है
  • सामान्यतः बहुपत्नीवाद के विपरीत यह एक अपवाद है |
  • भाषा=अवधी
  • कड़वक शैली (दोहा-चौपाई शैली)

पद्मावत

  • रचनाकर=मालिक मोहम्मद जायसी 1540
  • नायक=चितौड़ का राजा रत्नसेन
  • नायिका= सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती
  • कथावस्तु दो भागों में विभक्त
  • पहले भाग में =रत्नसेन और पद्मावती का विवाह
  • दूसरे भाग में=अलाउद्दीन की चितौड़ पर चढ़ाई
  • विद्वानों के अनुसार पहला भाग काल्पनिक और दूसरा ऐतिहासिक
  • ड़ा० हरदेव बाहरी के अनुसार इस पर चन्द्रशेखर (प्राकृत भाषा में रचित) का प्रभाव है |
  • यह अवधी में रचित हिंदी का महाकाव्य है |
  • इसके पात्र प्रतीक और पूरा काव्य ग्रन्थ एक रूपक काव्य भी माना गया है |
  • रत्नसेन जीवात्मा और पद्मावती परमात्मा का प्रतीक है |
Scroll to Top
× How can I help you?