- जन्म-(1596-1689) में जयपुर की राजधानी धौंसा
- माता-पिता = परमानन्द खंडेलवाल -सती
- गुरु= छः साल की आयु में दादू दयाल के शिष्य
- प्रमुख रचनाएँ- (42 रचनाएँ) ज्ञान समुद्र, सुंदर विलास ( भाषा- परिष्कृत ब्रजभाषा)
- प्रमाणिक संकलन= सुंदर ग्रंथावली (दो भाग) द्वारा-पुरोहित हरिनारायण शर्मा
- श्रृंगार रस की रचनाओं के विरोधी थे
- रचनाओं में भक्ति, योग-साधना और नीति को प्रधान स्थान
- भाषा= परिष्कृत ब्रजभाषा, अलंकारों और छन्दों का प्रयोग
- ये सवैया की रचना करने में सिद्धहस्त थे |
उदाहरण
संत सुन्दरदास श्रृंगार रस के कट्टर विरोधी थे| वे लिखते हैं-
रसिक प्रिया रसमंजरी और सिंगारहि जानि | चतुराई करि बहुत विधि विषै बनाई आनि ||
ब्रह्म तें पुरुष अरु प्रकृति प्रकट भई |प्रकृति तें महत्तत्व, पुनि अहंकार है ||
पति ही सूँ प्रेम होय, पति ही सूँ नेम होय | पति ही सूँ छेम होय, पति ही सूँ रत होय ||