- ब्रह्म के दो रूप-निर्गुण और सगुण
- निर्गुण निराकार की भक्ति है
- इसमें ईश्वर घट-2 में रहता है
- यह ज्ञानमार्गी है
- रहस्यवाद भी निर्गुण पर ही आश्रित है
- यह भक्ति मूर्तिपूजा, कर्मकांड आदि आडम्बरों का विरोध करती है
- ज्ञान और प्रेम द्वारा एकाकार की प्राप्ति पर बल
- इसके पहले प्रवर्तक- महाराष्ट्र के नामदेव (13वीं सदी) हैं जो बिठोवा के भक्त थे |
प्रथम कवि
रामचंद्र शुक्ल- “निर्गुण मार्ग के निर्दिष्ट प्रवर्तक कबीरदास ही थे |”