रामावत सम्प्रदाय
- प्रवर्तक- रामानन्द , जन्म-प्रयाग के कान्यकुबज ब्रह्मा कुल में 1368 (श्री भक्त सटीक के अनुसार)
- यशस्वी साधक व प्रगतिशील विचारक
- इनके गुर राघवानंद, व 12 शिष्य – अनंतानन्द, पीपा, कबीर, रैदास आदि
- बाहरी कर्मकांडों की बजाय अंतः साधना पर बल
- इन्होंने दशधा भक्ति ओर ज्ञानमार्ग का उपदेश दिया ।
श्री सम्प्रदाय
- प्रवर्तक- रामानुजाचार्य, विशिष्टाद्वैतवाद को स्थापना की ।अवतारी राम को अपनी विष्णुभक्ति का उपास्य स्वीकार किया ।
- विशिष्टाद्वैतवाद- पुरुषोत्तम ब्रह्म सगुण ओर सविशेष है ।
- दास्यभाव से भक्ति ही मुक्ति का साधन
- तत्त्वमसि जा अर्थ उन्होंने तू उसका सेवक निकाला।
ब्रह्म सम्प्रदाय
- प्रवर्तक- माध्वाचार्य (जन्म दक्षिण भारत के बेलीग्राम में)
- द्वैतवाद की स्थापना की जिसके अनुसार विष्णु आठ गुणों से युक्त व सर्वोच्च तत्व हैं ।
- मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन अमला भक्ति है
रुद्र सम्प्रदाय
- प्रवर्तक-श्री विष्णु स्वामी
- यह दर्शन शुद्धाद्वैतवाद कहलाता है
- इस सम्प्रदाय के अनुसार ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप है ।माया ईश्वर के अधीन रहती है
- ईश्वर का प्रधान अवतार नृसिंह है ।
रसिक सम्प्रदाय
- प्रवर्तक- निम्बकाचार्य हैं
- सम्प्रदाय- द्वैताद्वैतवाद या भेदाभेदवाद है अर्थात् जीव अवस्था भेद से ब्रह्म से भिन्न भी है ओर अभिन्न भी ।
- इसमें राधा कृष्ण की युगल साधना का विधान है, विष्णु के अवतार कृष्ण उपास्य हैं
- भक्ति ही मुक्ति का साधन है
- निम्बकाचार्य के चार शिष्य- श्रीनिवासाचार्य, औदुंबराचार्य, गौरमुखाचार्य ओर लक्ष्मण भट्ट
- निम्बकाचार्य सम्प्रदाय में निम्बकाचार्य को सुदर्शन चक्र का अवतार माना जाता है
- स्वामी हरिदास का सखी सम्प्रदाय इसी सम्प्रदाय का हिस्सा है। इनके पसिद्ध शिष्य तानसेन थे |
वल्लभ सम्प्रदायप्रवर्तक-
- श्री वल्लभाचार्य (जन्म- रायपुर के चंपारन में)
- इस सम्प्रदाय का सिद्धांत शुद्धाद्वैत है
- भक्ति के मुख्यतः तीन मार्ग कहे गए हैं-मर्यादामार्ग, प्रवाहमार्ग और पुष्टिमार्ग
- इनके मार्ग को पुष्टिमार्ग कहा जाता है
- भगवान के अनुग्रह या कृपा को पुष्टि कहा जाता है |
- इस सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार में इनके बेटे विट्ठल का उल्लेखनीय योगदान है ।
- आज इसे स्वतंत्र सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है
- माया ब्रह्म से सर्वथा अलिप्त है
- जड़ जगत ना उत्पन्न होता है एवं न ही नष्ट बल्कि इसका आविर्भाव ओर तिरोभाव होता है।यह मार्ग पुष्टिमार्ग कहलाता है ।
- वल्लभाचार्य द्वारा लिखे गए प्रमुख ग्रंथ- पूर्व मीमांसाभाष्य,अणुभाष्य, तत्वदीप निबंध, पंचश्लोकी,श्रृंगार रस मंडन, श्रीमद्भागवत सूक्ष्म टीका ।
- अणुभाष्य को वल्लभाचार्य जी पूरा न कर सके , इसे उनके पुत्र विट्ठल ने पूरा किया
- वल्लभाचार्य के चार शिष्य थे- कुम्भनदास , सूरदास, परमानंद दास और कृष्णदास
अन्य सम्प्रदाय
- गौड़ीय सम्प्रदाय (चैतन्य सम्प्रदाय)- चैतन्य महाप्रभु
- राधा वल्लभी सम्प्रदाय-स्वामी हित हरिवंश
- अद्वैतवाद- शंकराचार्य