
महारानी दिद्दा ने 958 ईस्वी से 1003 ईस्वी तक कश्मीर पर राज किया. अपनी विकलांगता और एक औरत होने के बावजूद, दिद्दा चार दशकों से अधिक समय तक कश्मीर पर शासन करने में सफल रही.
आज जब हमारे भारत में महिला सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जब महिलाएं घर के बाहर तो क्या अंदर भी सुरक्षित नहीं हैं. ऐसे देश में महिलाओं की वीरगाथा का इतिहास रहा है. इस देश में सिर्फ रानी झांसी ही अकेली मर्दाना नहीं थी जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे किए बल्कि इसी देश में एक ऐसी रानी भी थी जिसे परिवार वालों ने त्याग दिया, लेकिन उसकी चतुरबुद्धि के आगे अच्छे-अच्छों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है.
आप जब यह सोच रहे हैं कि महिलाएं कमजोर हैं उनकी सुरक्षा राजनीतिक पार्टियों के मैनिफेस्टो में एक कोना तलाश रही हैं और पिछले एक दशक से भी अधिक समय से संसद में 33 फीसदी आरक्षण तक नहीं मिल पा रही हैं और महिलाओं का अधिकार जब महज एक्टिविज्म में दिखता है ऐसे ही देश की एक लंगड़ी रानी जिसने अपने लंगड़ेपन को कमजोरी नहीं मजबूती बनाया, देश पर राज किया और महमूद गज़नवी जैसे लुटेरे को एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार देश से खदेड़ दिया. ऐसी वीरांगना थी कश्मीर की रानी दिद्दा. जिसके बारे में न तो बहुत कुछ पढ़ा गया है और न हीं कुछ सुना ही गया है.
इतिहास में बहुत से शासक हुए जिनके नाम के आगे ‘द ग्रेट’ जोड़ा गया. लेकिन 18 शताब्दी तक जितने भी ग्रेट हुए उनमें एक बात कॉमन थी कि वो सब मर्द थे. इतिहास में पहली ग्रेट कहलाए जाने वाली रानी रूस में पैदा हुई थी. नाम था महारानी कैथरीन द ग्रेट(Catherine the Great). उनकी पैदाइश एक छोटे से राज परिवार में हुई थी. लेकिन शादी हुई रूस के होने वाले ज़ार के साथ.
कैथरीन ऑफ कश्मीर
शादी के कुछ ही समय बाद कैथरीन ने अपने प्रेमी की मदद से ज़ार को सत्ता से उतार फेंका और खुद महारानी बन गई. 1762 से 1796 तक उन्होंने रूस पर एकछत्र राज किया. उन्होंने रूस की सीमा का विस्तार करते हुए उसे बाकी यूरोपियन साम्राज्यों के बराबर लाकर खड़ा किया. इतना ही नहीं कैथरीन ने रूस में लड़कियों के स्कूल बनाए, रूस को आधुनिकता से रूबरू करवाया, क़ानून का राज स्थापित किया. यहां तक कि जिस क्रीमिया के लिए आज दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर खड़ी है, इसे रूस का हिस्सा बनाने वाली भी वहीं थीं.
हालांकि रूस के महान इतिहास की चर्चा में आप उनका नाम कम सुनेंगे. इतिहास की इस सबसे महान महारानी के नाम पर जो बात सबसे फेमस हैं, वो ये कि उनकी मौत घोड़े के साथ सेक्स करने के दौरान हुई थी. जो कि कोरी गप्प है. महारानी कैथरीन ने समाज के तमाम नियमों को धता बताते हुए उम्र भर शादी नहीं की. लेकिन तमाम प्रेमी बनाए। इसके चलते उन्हें बदचलन और न जाने क्या क्या कहा गया. जबकि इतिहास के चंद ही पुरुष शासक ऐसे रहे जिनकी एक से ज्यादा रानियां न रहीं हो. बहरहाल हिपोक्रेसी की ये सीमा सिर्फ रूस तक ही सीमित नहीं थी. दुनिया भर में जितनी भी ताकतवर महिला शासक हुई उनके नाम बदचलन और चुड़ैल जैसे विशेषण लगते रहे. आज बात ऐसी ही एक महारानी की. जो भारत में पैदा हुई. और आधुनिक इतिहासकारों ने जिन्हें कैथरीन ऑफ कश्मीर(The Catherine of Kashmir) का नाम दिया. इन महारानी का नाम था दिद्दा(Didda). क्या थी दिद्दा की कहानी?
दिद्दा की कहानी जिस किताब में दर्ज़ है उसका नाम है राजतरंगिनी. ये वो अकेली किताब है जिसमें एक हजार साल पहले के कश्मीर का इतिहास दर्ज़ है. राजतरंगिनी का अंग्रेज़ी में अर्थ होता है, रिवर ऑफ द किंग्स. बिलकुल गेम ऑफ थ्रोन्स जैसा नाम है. और कहानी भी उतनी ही रोचक है. राजतरंगिनी को लिखा था कल्हड़ नाम के कश्मीरी इतिहासकार ने. इसे 12 वीं शताब्दी में लिखा गया था, जब कल्हड़ के पिता लोहार राजवंश के आख़िरी राजा हर्षदेव के दरबार में मंत्री हुआ करते थे. लोहार पीर पंजाल रेंज में पड़ता है. जो कश्मीर और पश्चिमी पंजाब के बीच एक मह्त्वपूर्ण ट्रेड रुट हुआ करता था. कल्हड़ के अनुसार दिद्दा की पैदाइश 924 के आसपास हुई थी. दिद्दा के पिता राजा सिंहराज थे, वहीं उनके नाना भीमदेव काबुल में हिन्दू शाही कबीले के शासक थे. दिद्दा पैदाइश से ही अपंग थी और ठीक से चल फिर नहीं पाती थीं. जिसके कारण उनके माता-पिता ने उन्हें त्याग दिया था.
दिद्दा महारानी कैसे बनी?
हुआ यूं कि 26 की उम्र में दिद्दा की शादी क्षेमगुप्त से हुई. क्षेमगुप्त कश्मीर के महाराज पर्वगुप्त के बेटे थे. 950 ईस्वीं में क्षेमगुप्त कश्मीर के राजा बने. लेकिन कल्हड़ के अनुसार वो एक कमजोर राजा थे. जिनका मन अधिकतर जुएं और शिकार में लगा रहता था. इसी के चलते दिद्दा को राज काज का काम संभालना पड़ा. और धीरे धीरे वो इतनी ताकतवर हो गयीं कि महराजा के नाम के आगे महरानी का नाम लिया जाने लगा. यहां तक कि शाही मुहरें और सिक्के भी दिद्दा क्षेम के नाम से छपने लगे.
958 के आसपास महराज क्षेमगुप्त चल बसे और परंपरा अनुसार दिद्दा से सती होने के लिए कहा गया. लेकिन दिद्दा ने न सिर्फ इससे इंकार किया बल्कि अपने बेटे अभिमन्यु को गद्दी पर बिठाकर राजमाता बन गई. और शासन चलाने लगी. लोग इससे हरगिज खुश न थे. स्थानीय सरदारों ने कहा, एक औरत हम पर शासन कैसे कर सकती है. उसका वचन नहीं चल सकता. दिद्दा ने जवाब दिया, मेरा वचन ही है मेरा शासन और सरदारों का विद्रोह बुरी तरह कुचल दिया. 972 ईस्वीं में महराजा अभिमन्यु भी चल बसे लेकिन दिद्दा का शासन चलता रहा. उन्होंने अपने पोते भीमगुप्त को गद्दी पर बिठाया और राजकाज चलाती रहीं.
45000 के आगे 500 सैनिकों के साथ पहुंची और 45 मिनट में पासा पलट दिया
दिद्दा इतनी तीक्ष्णबुद्दि थी कि वह चंद मिनटों में बाजी पलट दिया करती थी. आज जिस सेना के कमांडो और गुरिल्ला वार फेयर पर दुनिया चालाकी की जंग लड़ती है वह इसी लंगड़ी रानी की देन है. चुड़ैल लंगड़ी रानी के इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि इसने 35000 सेना की टुकड़ी के सामने 500 की छोटी सी सेना के साथ पहुंची और 45 मिनट में युद्ध जीत लिया. यह वही महान नायिका है जिसके पति ने अपने नाम के आगे पत्नी दिद्दा का नाम लगाया और दिद्क सेनगुप्ता के नाम से जाना गया.
हमारा देश महानायकों का देश है लेकिन इसी देश में महिला महानायक है दिद्दा. कश्मीर की रानी. जिसे इतिहास के पन्नों में चुड़ैल रानी का दर्जा दिया गया क्योंकि उसकी दिमागी ताकत के आगे अच्छे-अच्छे राजा नतमस्तक रहे थे. जब राजा महाराजा हार जाते तो अपनी मर्दानगी छुपाने के लिए दिद्दा को चुड़ैल कहना शुरू किया और फिर दिद्दा चुड़ैल रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई. जब दिद्दा के पति सेनगुप्ता की मृत्यु हुई तो सत्ता हासिल करने के लिए दुश्मनों ने उसे सती प्रथा का हवाला दिया और सती करने के लिए दिद्दा से कहा गया. लेकिन उसने पूरी चाल बदल दी और सेनगुप्ता की पहली पत्नी को सती करवा दिया और अपनी शर्तों के बल पर राजगद्दी हासिल की और 50 वर्षों तक शासन किया.
यह वही दिद्दा हैं जिनकी कहानियां भले ही इतिहास के पन्नों में धुंधली हैं लेकिन लेखक आशीष कॉल ‘दिद्दा द वैरियर क्वीन ऑफ कश्मीर’ के बहाने इसे जीवंत कर दिया है और भारतीयों को बार-बार गर्व करने का मौका दिया है. इस किताब ने कश्मीर कि रानी दिद्दा के रूप में वो महानायिका दी है कि जिसने अपनी शर्तों पर अपने बनाये नियमों के अनुरूप पुरुषवादी पितृसत्तात्मक इस समाज को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि कई मौकों पर ठेंगा भी दिखाया .
किताब को पढ़ने वाला खुद से ये सवाल करता जान पड़ता है कि ऐसी करिश्माई महिला के हाथ शासन की बागडोर रही तो उसका ज़िक्र इतना धुंधला क्यों रहा कि किसी को दिखा ही नहीं? निश्चय ही पितृसत्तात्मक इस समाज ने उस वीरांगना से मौके मौके पर मिली हार के बदले में उसकी वीरता की गाथा ही इतिहास से इस कदर ओझल कर दी कि वो सिर्फ एक चुड़ैल रानी ही बन कर कहीं गुम हो गयी.
बचपन
लोहार राजवंश (आज का हरियाणा, पंजाब ,पुंज राजोरी जिसका भाग था) में जन्मी एक खूबसूरत नन्ही बच्ची को उसके माँ बाप सिर्फ इसलिए त्याग देते हैं कि वो अपंग पैदा हुई . नौकरानी का दूध पीकर पली बढ़ी वो लड़की अपने अपंग होने को बाधा न मानते हुए वो युद्ध कला में पारंगत हुई और तरह तरह के खेलों में निपुणता हासिल की . एक दिन आखेट के दौरान कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त ने जब उस खूबसूरत राजकुमारी दिद्दा को देखा तो पहली ही नज़र में दिल दे बैठा. ये जान लेने के बाद भी कि दिद्दा लंगड़ी है , राजा क्षेमगुप्त ने उस से ब्याह रचाया और दिद्दा की किस्मत एक तरह से पलटी खा गयी. उसे पति का प्यार , मान सम्मान , पुत्र रत्न तो मिला ही , साथ ही उसने क्षेमगुप्त के राज काज में भी भागीदारी निभानी शुरू कर दी. इस भागीदारी के सम्मान में अपनी पत्नी के नाम पर सिक्का जारी किया . वो ऐसा पहला राजा बना जो अपनी पत्नी के नाम से जाना गया .
एक दिन आखेट के दौरान सेनगुप्त की मृत्यु होते ही दिद्दा की ज़िन्दगी उस दौराहे पर खड़ी थी जहाँ एक तरफ पति कि मृत्यु का दुःख और सती हो जाने की परंपरा थी और दूसरी तरफ एक नन्हे राजकुमार के राज पाठ संभालने लायक होने तक उसके पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा की ज़िम्मेदारी निभाने वाली माँ का दायित्व . मरते राजा को राज्य सुरक्षित हाथों में देने का प्रण उसे यकायक वो शक्ति दे जाता है कि जिसके चलते वो सती होने से मन कर देती है. दिलचस्प है पढ़ना कि कैसे समय समय पर दिद्दा ने पुरुष सत्तात्मक समाज के बने बनाए नियम तोड़े और अपने खुद के नियम बनाए.
कहानी दिद्दा की वो जीवन यात्रा है जो एक अनचाही अपंग कन्या से शुरू होकर , कश्मीर के राजा की बीवी बनने और फिर विधवा होने के बाद राज्य संभालने ,कई युद्ध करने और युद्ध जीतने के लिए गुरिल्ला तकनीक इजात करने के प्रसंग से होती हुई उस दिलचस्प मोड़ से गुज़रती है जहां संभवतः विश्व कि प्रथम कमांडो सेना , एकांगी सेना के बनने का घटनाक्रम वर्णित है. तो वहीं जिस बेटे के लिए जीवित रही उसके ही द्वारा महल से निकाले जाना , जनता से जुड़ाव जारी रखना , मंदिरों का निर्माण , सारे एशिया के साथ व्यापार और ईरान तक फैले अखंड भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए रणनीति निर्माण जैसे सन्दर्भ आपको इतिहास के उस दौर में ले जाते हैं जिसकी बात अक्सर होती ही नहीं है.
इस सबके बीच उस खूंखार मेहमूद गज़नवी का भी ज़िक्र आता है जिसके हिन्दुस्तान में प्रवेश करने के बाद जो विध्वंस हुआ उसका अपना एक लम्बा इतिहास है . इस किताब में मेहमूद गज़नी के ज़िक्र का प्रसंग एक ऐसा प्रसंग है जिस से लोग अनभिज्ञ हैं . सोमनाथ का मंदिर लूटने वाले और कई शहरों को तहस नहस करने वाले गजनी को दिद्दा ने अपनी रणनीति से एक नहीं दो दो बार भारत में घुसने से रोका और युद्ध में हराया , जिसके बाद उसने रास्ता बदला और गुजरात के रास्ते भारत में प्रवेश किया.
बदचलनी का लगा इल्जाम
दमार तब कश्मीर के ताकतवर ज़मींदार हुआ करता थे. उन्होंने एक और बार विद्रोह की कोशिश की लेकिन दिद्दा ने उनकी भी कमर तोड़ दी. यहां तक कि अपने खिलाफ साजिश के आरोप में उन्होंने राज्य के सबसे ताकतवर मंत्री नंदिगुप्त को भी नहीं छोड़ा और उसे भी मरवा डाला. दिद्दा हालांकि इससे एक कदम और आगे गई. कल्हड़ के अनुसार जब उनके पोतों ने उन्हें राजगद्दी से हटाकर खुद बैठना चाहा तो उन्होंने अपने तीन पोतों की भी हत्या करवा दी. यानी दिद्दा ने अपनी गद्दी बचाने के लिए वो सभी पैतरें चले जो उस वक्त का कोई भी पुरुष शासक चलता था. लेकिन उन्हें दिद्दा महान नहीं कहा गया. बल्कि उनके नाम के साथ चुड़ैल, बदचलन जैसे विशेषण लगाए गए. वो भी तब जब दिद्दा के राज में कश्मीर ने खूब तरक्की की. और चार साल तक उनके राज्य को कोई खतरा नहीं हुआ. उन्होंने अपने बेटे और पति की याद में 64 मंदिरों का निर्माण कराया. मसलन श्रीनगर में उन्होंने एक शिव मंदिर बनाया जिसका नाम दिद्दा मठ था. आज भी इस जगह को दिद्दामर के नाम से जाना जाता है.
आगे दिद्दा का क्या हुआ? दिद्दा ने 23 सालों तक कश्मीर पर एकछत्र राज किया. तमाम कमियों के बावजूद दिद्दा एक मजबूत और कुशल प्रशासक थी. उन्होंने अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मेल मिलाप बनाए रखा और कश्मीर को खूब समृद्ध किया. उस दौर में तमाम शासकों के पास एक से ज्यादा रानियां होती थीं. लेकिन दिद्दा पर अपने प्रेम प्रसंगों के चलते बदचलनी का इल्जाम लगा. कल्हड़ लिखता है कि दिद्दा ने तुंगा नामक एक जवान गुज्जर से सम्बन्ध बनाए और उसे राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया. जिसने स्थानीय सरदारों को खूब नाराज किया लेकिन दिद्दा ने उनकी एक न चलने दी
चंद इतिहासकारों ने उन्हें क्रूर शासक कहा है लेकिन कई ये भी मानते हैं कि दिद्दा को डिस्क्रेडिट करने के लिए ये लानतें दी गई. और ऐसा सिर्फ दिद्दा के साथ नहीं हुआ. 13 वीं सदी में जब रजिया सुलतान दिल्ली के तख़्त पर काबिज़ हुई तो उन पर भी बदचलनी के इल्जाम लगाए गए. कहा गया कि उनका याकूत नाम के एक अफ्रीकी गुलाम से सम्बन्ध था. हालांकि ये बात गलत साबित हुई. हम तो कहेंगे कि अगर सम्बन्ध थे भी तो क्या. औरत और पुरुष में बराबरी का माप ये नहीं है कि उन्हें वो करने का बराबर अधिकार है, जिसे समाज सही मानता है. बल्कि असली बराबरी ये है कि महिलाओं को वो सब दोष रखने का पूरा अधिकार है जो पुरुषों में होते हैं.
दिद्दा ने 1003 ईस्वीं तक कश्मीर पर राज किया. अंत में उन्होंने अपनी गद्दी अपने भाई के बेटे संग्रामराज को सौंप दी और 1003 ईस्वीं में ही उनकी मृत्यु भी हो गई. कल्हड़ उपसंहार में दिद्दा के लिए लिखता है
” वो लंगड़ी रानी जिससे किसी को एक कदम पार करने की उम्मीद नहीं थी, उसने तमाम विरोधों को ऐसे लांघ डाला जैसे कभी हमुमान ने समुन्द्र लांघा था”.
इतिहासकार जीएम रब्बानी अपनी पुस्तक प्राचीन कश्मीर: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में लिखते हैं दिद्दा आम लोगों में बहुत लोकप्रिय थीं और उनकी लोकप्रियता का एक जीवंत प्रमाण यह है कि आज तक कश्मीर के सभी वर्गों और समुदायों में किसी महिला को सम्मान देने के लिए “दिद्दा” का विशेषण की तरह इस्तेमाल किया जाता
क्या रानी दिद्दा ने महमूद गजनवी से युद्ध किया था
अब आखिर में एक बात और. साल 2021 में अभिनेत्री कंगना रनौत ने घोषणा की थी कि वो जल्द ही दिद्दा की कहानी पर एक फिल्म बनाएंगी. इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि दिद्दा ने महमूद गजनवी(Mahmud Ghaznavi) को जंग में हराया था. असल इतिहास के साक्ष्य इस बात से मेल नहीं खाते. महमूद गजनवी ने 1015 ईस्वीं में कश्मीर पर आक्रमण की कोशिश की थी. जबकि दिद्दा की मृत्यु इससे 10 साल पहले ही हो चुकी थी. दिद्दा के बाद राजा बने संग्रामराज के वक्त में गजनवी ने हमला किया था. लेकिन कश्मीर के पहाड़ी रास्तों और सर्द मौसम की वजह से उसे शिकस्त खानी पड़ी थी और वो लोहारकोट के किले पर कब्ज़ा करने में विफल रहा था. इससे अलग दावे भी मौजूद हैं. लेखक आशीष कौल ने अपनी किताब ‘दिद्दाः द वारियर क्वीन ऑफ कश्मीर’ में दावा किया है कि दिद्दा ने महमूद गज़नवी को एक नहीं दो-दो बार हराया. हालांकि यह तथ्य भी सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्हीं की किताब में विस्तार से दर्ज है.