माखनलाल चतुर्वेदी के शब्दों में“कविता प्रसाद का प्यार है, उनका गद्य उनका कर्तव्य है।”

संक्षिप्त परिचय-

नाम जयशंकर प्रसाद
जन्म सन 1890 ईस्वी में
जन्म स्थान उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में
पिता का नाम श्री देवी प्रसाद
शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय
रुचि साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन
लेखन विधा काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
मृत्यु 15 नवंबर, 1937 ईस्वी में
साहित्य में पहचान छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक
भाषा भावपूर्ण एवं विचारात्मक
शैली विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक।
साहित्य में स्थान जयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा गया है।

महान लेखक और कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म – सन् 1889 ई0 में हुआ तथा मृत्यु – सन् 1937 ई0 में हुई।बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ही पिता के निधन से पारिवारिक उत्तरदायित्व का बोझ इनके कधों पर आ गया। मात्र आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, पाली, हिन्दी, उर्दू व अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य का विशद ज्ञान प्राप्त किया। जयशंकर प्रसाद छायावाद के कवि थे। यह एक प्रयोगधर्मी रचनाकार थे।

1926 ईस्वी से 1929 ईस्वी तक जयशंकर प्रसाद के कई दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। जयशंकर प्रसाद कवि,कथाकार, नाटककार,उपन्यासकार आदि रहे।इनके आने से ही हिंदी काव्य में खड़ी बोली के माधुर्य का विकास हुआ। यह आनंद वाद के समर्थक थे। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद विद्यानुरागी थे, जिन्हें लोग सुँघनी साहु कहकर बुलाते थे। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा का प्रबंध पहले घर पर ही हुआ। बाद में इन्हें क्वीन्स कॉलेज में अध्ययन हेतु भेजा गया। अल्प आयु में ही अपनी मेधा से इन्होंने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। काव्य रचना के साथ-साथ नाटक, उपन्यास एवं कहानी विधा में भी इन्होंने अपना कौशल दिखाया।

प्रसाद जी की प्रतिभा बहुमुखी है, किन्तु साहित्य के क्षेत्र में कवि एवं नाटककार के रूप में इनकी ख्याति विशेष है। छायावादी कवियों में ये अग्रगण्य हैं। कामायनी इनका अन्यतम काव्य ग्रन्थ है, जिसकी तुलना संसार के श्रेष्ठ काव्यों से की जा सकती है। सत्यं शिवं सुन्दरम् का जीता जागता रूप प्रसाद के काव्य में मिलता है। मानव सौन्दर्य के साथ-साथ इन्होंने प्रकृति सौन्दर्य का सजीव एवं मौलिक वर्णन किया इन्होंने ब्रजमाषा एवं खड़ी बोली दोनों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है।

छायावादी युग के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी में एक प्रसिद्ध साहू समृद्ध और विख्यात परिवार में 30 जनवरी 1890 में हुआ था। जयशंकर प्रसाद के पिता जी का नाम बाबू देवी प्रसाद था। जो बड़े ही दयालु और कृपालु इंसान थे, और गरीबों और दीन दुखियों की मदद और दान अवश्य दिया करते थे। जयशंकर प्रसाद की माता जी का नाम मुन्नी बाई था। जय शंकर प्रसाद के पिताजी का स्वर्गवास उस समय हो गया था, जब जयशंकर प्रसाद की आयु मात्र 11 वर्ष थी और इसके पश्चात 15 वर्ष की आयु आने पर उनकी माताजी भी उन्हें छोड़कर हमेशा के लिए स्वर्गवासी हो गई।

किन्तु जयशंकर प्रसाद पर मुसीबतों का पहाड़ उस समय टूट पड़ा जब इनके बड़े भाई संभू रत्न का निधन हो गया उस समय जयशंकर प्रसाद 17 वर्ष के थे। अब जयशंकर प्रसाद के ऊपर ही घर का सभी प्रकार का खर्च का जिम्मा था उनके घर में भाभी तथा उनके बच्चे भी थे। फिर भी जयशंकर प्रसाद ने बड़े साहस से इन सभी मुसीबतों का सामना किया और अपने परिवार का पालन पोषण। जयशंकर प्रसाद की प्राथमिक शिक्षा वाराणसी में ही संपन्न हुई, जयशंकर प्रसाद ने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन घर पर रहकर ही किया। जयशंकर प्रसाद के प्रारंभिक शिक्षक मोहिनी लाल गुप्त थे। जिनकी प्रेरणा से उन्होंने संस्कृत में पारंगत हासिल कर ली और संस्कृत के विद्वान बन गए। जयशंकर प्रसाद का पहला विवाह विध्वंसनीदेवी के साथ 1908 में संपन्न हुआ था। किंतु विध्वंसनीदेवी को क्षय रोग हो गया और उनकी मृत्यु हो गई और फिर जयशंकर प्रसाद का दूसरा विवाह 1917 में सरस्वती के साथ कर दिया गया।

किंतु वह भी क्षय रोग के कारण ही जल्द ही चल बसी। दूसरी पत्नी की मृत्यु के बाद जयशंकर प्रसाद की इच्छा विवाह करने की नहीं थी। किंतु उन्होंने अपनी भाभी के दुख से दुखी होकर लिए तीसरा विवाह कमला देवी के साथ कर जिनसे उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ। और उसका नाम था रतन शंकर प्रसाद। अपने अंतिम समय में जयशंकर प्रसाद भी क्षय रोग से पीड़ित हो गए और 1936 में मृत्यु   हो गई ।

रचनाएं

नाटक

  • सज्जन (1911),
  • कल्याणी परिणय (1912) (जो नागरी प्रचारणी सभा से प्रकाशित हुआ था),
  • प्रायश्चित (1913),
  • करुणालय (1913),
  • राज्य श्री (1915),
  • विशाखा (1921),
  • अजातशत्रु (1922),
  • कामना (1923) में लिखा गया और प्रकाशन 1927 ई० हुआ,
  • जनमेजय का नागयज्ञ (1926),
  • स्कंदगुप्त (1928),
  • एक घूँट (1929),
  • चन्द्रगुप्त (1931),
  • ध्रुवस्वामिनी (1933),
  • अग्निमित्र (अपूर्ण)

खण्डकाव्य

  • प्रेमपथिक (1914),
  • महाराणा का महत्व (1914)

महाकाव्य

  • कामायनी (1935)

मुक्तक काव्य

  • कानन कुसुम (1913),
  • चित्राधार (1918)

गीति काव्य

  • झरना (1918),
  • आँसू 1925 ई०,
  • लहर 1933 ई०

कहानी संग्रह

  • छाया (1912),
  • प्रतिध्वनि (1926),
  • आकाशदीप (1929),
  • आँधी (1931),
  • इंद्रजाल (1936)।

उपन्यास

  • कंकाल (1929),
  • तितली (1934),
  • इरावती (1938)

निबंध

  • काव्यकला और अन्य निबंध

चंपू काव्य

  • उर्वशी (1906),
  • वब्रुवाहन (1907)

कविताएँ

  • पेशोला की प्रतिध्वनि
  • शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
  • अंतरिक्ष में अभी सो रही है
  • मधुर माधवी संध्या में
  • ओ री मानस की गहराई
  • निधरक तूने ठुकराया तब
  • अरे!आ गई है भूली-सी
  • शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा
  • अरे कहीं देखा है तुमने
  • काली आँखों का अंधकार
  • चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
  • जगती की मंगलमयी उषा बन
  • अपलक जगती हो एक रात
  • वसुधा के अंचल पर
  • जग की सजल कालिमा रजनी
  • मेरी आँखों की पुतली में
  • कितने दिन जीवन जल-निधि में
  • कोमल कुसुमों की मधुर रात
  • अब जागो जीवन के प्रभात
  • तुम्हारी आँखों का बचपन
  • आह रे,वह अधीर यौवन
  • आँखों से अलख जगाने को
  • उस दिन जब जीवन के पथ में
  • हे सागर संगम अरुण नील

साहित्यिक विशेषताएं

बचपन से ही इनकी रुचि साहित्य की ओर थी।इन्दु’ नामक मासिक पत्रिका का इन्होंने सम्पादन किया। साहित्य जगत में इन्हें वहीं से पहचान मिली।प्रेम समर्पण कर्तव्य एवं बलिदान की भावना से ओतप्रोत उनकी कहानियों पाठक को अभिभूत कर देती है। वह हिंदी साहित्य को अपनी साधना समझते थे। महाकवि जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य में योगदान देने वाले सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में से एक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में अपना बहुत योगदान दिया। उन्होंने अपनी कहानियों,नाटक तथा कविताओं के जरिए हिंदी साहित्य में अपना माधुर्य बिखेरा। राजनीतिक संघर्ष तथा संकट की स्थिति में राजपुरुष का व्यवहार उन्होंने बड़ी गहराई से समझा और लिखा। आधुनिक उपन्यास के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद जी ने यथार्थ और आदर्शवादी रचनाकारों का सूत्रपात किया।

भाषा शैली

हमारे देश के सबसे बड़े कवियों में से एक जयशंकर प्रसाद जी ने अपने काव्य लेखन की शुरुआत ब्रजभाषा में की थी। लेकिन धीरे -धीरे वे खड़ी बोली की तरफ भी आते गए और उनको यह भाषा शैली पसंद आती गई। इनकी रचनाओं में मुख्य रूप से भावनात्मक , विचारात्मक , इतिवृत्तात्मक और चित्रात्मक भाषा शैली का प्रयोग देखने को मिलता है । इनकी शैली अत्यंत मीठी और सरल भाषा में थी जिनको कोई भी आसानी से पढ़ और समझ सकता था।

पुरस्कार

जयशंकर प्रसाद को ‘कामायनी’ की रचना के लिए मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

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