सिद्ध परम्परा का जन्म बौध धर्म की घोर विकृति के फलस्वरूप माना जाता है| बुद्ध का निर्वाण 483 ईसा पूर्व हुआ |उनके निर्वाण के लगभग 50 वर्षों तक बौद्ध धर्म का खूब प्रचार-प्रसार रहा | बौद्ध धर्म का उदय वैदिक कर्मकांडों व हिंसा के खिलाफ हुआ था |यह धर्म सदाचार और सहानुभूति के आदर्शों पर आधारित था | लेकिन धीरे-धीरे उन्हीं कर्मकांडों और अन्य व्यभिचारों ने बौद्ध धर्म को जकड लिया और बौद्ध धर्म दो हिस्सों में बंट गया – हीनयान और महायान | कंचन कामिनी के योग से महायान मंत्रयान में बदल गया | महायानियों ने मठों और मंदिरों के निर्माण पर जोर दिया | स्वर्ण और सुन्दरी के योग से भ्रष्टाचार का प्रवेश हो गया | सातवीं शताब्दी में इसी से एक अन्य उपयान निकला जिसका नाम सहजयान( इनकी भाषा संध्या थी-संध्या=प्रकाश और अंधेरे का मिश्रण) या वज्रयान था | वज्रयान पंचामाकारों में बांध गया –मन्त्र, मध, मैथुन, मांस और मुद्रा |इस यान में यौन सम्बन्धों की स्वछन्दता को बढ़ावा दिया गया | और इस प्रकार बौद्ध धर्म महायान हीनयान वज्रयान से होता हुआ पतनोन्मुख हो गया |

तंत्र-मन्त्र द्वारा सिद्धि चाहनेवाले सिद्ध कहलाए |वे वज्रयानी या सहजयानी ही थे |अपने मत के पचार के लिए उन्होंने जो साहित्य लिखा वह सिद्ध साहित्य ककहलाया | 84 सिद्धों ( इसका वर्णन ज्योतिरीश्वर ठाकुर रचित “वर्ण रत्नाकर” में जिक्र) की 23 रचनाएँ मिलती है | 84 सिद्धों में लुइपा का स्थान तथा सबसे ऊँचा माना जाता है | कुन्हपा सर्वश्रेष्ठ विद्वान और सबसे बड़े कवि माने जाते हैं | इनके नाम करे पीछे “पा” लगा होता है जैसे- सरहपा (अन्य नाम सरोजवज्र , राहुल भद्र) हिंदी के पहले कवि माने जाते हैं | इनका “देहाकोश” ग्रन्थ प्रसिद्ध है | इनके अतिरिक्त कुकुरिपा , शान्तिपा और वाणापा प्रसिद्द सिद्ध थे |इन सिद्धों ने गृहस्थ जीवन पर जोर दिया |इए प्रायः अशिक्षित और निम्न जातियों से थे इसलिए इनकी साधनभुत मुद्राएं भी कापाली और डोम्बी आदि नायिकाएं भी निम्न जाति से थी |इन्होने समस्त बाह्य आडम्बरों का विरोध किया |रामकुमार वर्मा सिद्धों के विषय में लिखते हैं कि इन्होने राजाओं की स्वेच्छाचारिता और पतन के निराशा में डूबे लोगों को पुनः जीवित करने का कार्य किया |

सिद्ध साहित्य की विशेषताएं –(Features of Siddh Sahitya)

  • साधनापरक साहित्य का सृजन किया
  • जीवन की सहजता और स्वाभाविकता में दृढविश्वास व्यक्त किया
  • कृत्रिमताओं और कर्मकांडों का विरोध किया
  • गुरु की महिमा का गुणगान किया
  • पाखंडों की कड़ी आलोचना की
  • तत्कालीन जीवन में आशा का संचार किया |
  • रहस्यात्मक अनुभूति अर्थात प्रज्ञा और उपाय (करुणा) के मिलनेके उपरान्त प्राप्त महासुख का वर्णन नौका, वीणा, चूहा, हिरन आदि रूपकों के माध्यम से किया गया |
  • श्रृंगार ओर शांत रस का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है |
  • अपनी रचनाओं में जन भाषा का प्रयोग किया |
  • यही साहित्य ही हिंदी साहित्य की सामग्री के रूप में प्रामाणिक ढंग से प्राप्त होता है |

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