चाहे सूर्य तपाए अथवा बादल अत्यधिक जल बरसाए।
महिला व पुरुष किसान शीतकाल में भी नित्य क्रियाशील रहते हैं |


चाहे गर्मी में शरीर पसीने से तरबतर हो या सर्दी में कम्पायमान |
वे दोनों हल और कुदाल से खेत को जोतते हैं। 


चाहे  पैरों में जूते ना हों , शरीर पर कपड़े न हों |
वे दोनों निर्धन कष्ट को सहते हुए जीवन के सुख से दूर ही रहते हैं|


चाहे उनके टूटे हुए घर बरसातों को रोकने में सक्षम न हों।
फिर भी वह (बरसातें)  इन कर्मवीरों की कर्मठता को नष्ट नहीं कर पाती |


उन दोनों के परिश्रम से ही खेत हमेशा फसलों से भरपूर रहते हैं।
शुष्क और कांटों से भरी हुई धरती सरस (उपजाऊ)  हो जाती है। 


वे दोनों सभी को सब्जी, अन्न, फल, दूध देते हुए , 
ये दोनों विचित्र जन-पालक (लोगों का पालन करने वाले)भूख और प्यास से व्याकुल (दुखी)  रहते हैं| 
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