कुछ शिक्षक वो हैं जो इस अपनी ताकत स्कूलों मे लगा रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जो ठाठ से मौज उड़ा रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जो अपनी ऊर्जा मासूमों पर लुटा रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जो सिर्फ कोरी बातो से काम चला रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जो जी जान व ईमानदारी से पढ़ा रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जो घटिया अफसरों की चापलूसी से ईनाम पा रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जो चाॅक और डस्टर से हर पीरियड नहा रहेहै

कुछ शिक्षक वो हैं जो बार कंघी करके अपना चेहरा चमका रहे है

कुछ शिक्षक वो हैं जिनको अध्यापन प्यारा है

कुछ शिक्षक वो हैं जिन्हे सिर्फ इ सैलरी का ही सहारा है

कुछ शिक्षक वो हैं जो बिना पढाए बेचैन हो जाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो सिर्फ टाइम पास करने विद्यालय आते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो समाज की दिशा को बदलना चाहते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो बहती हवा के साथ बह जाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो अपने शिष्य पर सब कुछ लुटाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो नाश्ता लंच व स्वेटर बुनकर घर आ जाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो बच्चो पर जान लुटाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो बच्चो से घर की सब्जियाँ कटवाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो विद्यालयो मे लंगर चलाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो बच्चो का मिड डे मील चट कर जाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो हर बच्चे को बिना भेदभाव के गले लगाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो स्कूलों को sc bc का अड्डा बताते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो हर कीमत पर शिक्षकत्व की गरीमा बढाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो इस पद पर कालिख पोत जाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो ऊंचे आदर्श स्थापित कर एक मिसाल बनाते है

कुछ शिक्षक वो हैं जो बन स्वार्थ लोलुप बनकर इस पद का अपमान कराते है

कुछ शिक्षक वो हैं जिन्होने इस देश की अखंडता व एकता को संभाला और संवारा है

कुछ शिक्षक वो हैं जिन्होने जाति धर्म का प्रचार करके अपने कर्तव्य से किया किनारा है

शिक्षकत्व अब उपकार नही व्यापार है

फिर क्यों सम्मान के लिए इतनी हा हा कार है

शिक्षक के गुणो को अपने अंदर जगाना होगा

फिर कर्तव्य विमुख होने का कोई ना बहाना होगा

नीति निर्धारक भी अपने शिष्यत्व का कर्ज चुका देगे

अगर हम ईमानदारी से उन्हे पढा देगे

देश के निर्माता को फिर अलख जगानी होगी

पर पहले अपनी बुराईयो की चिता जलानी होगी

आज चुनौती हमारे सामने अपार है

तेज नुकीली दो धारी तलवार है

पर हाल मे इस परीक्षा को पार करने की ठानी है

क्योकि योग्यता क्षमता हम मे भी अपार है—‘-”——–

द्वारा: सुखविंद्र

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