• इसमें राम को आधार बनाकर काव्य रचना की गई है |
  • मुख्य स्रोत्र वाल्मीकि रामायण है जिसका वर्णन महाभारत में भी वर्णन है-आरण्यक पर्व, द्रोण और शांति पर्व |
  • उपनिषदों (रामरहस्योपनिषद) तथा पुराणों (विष्णु, वायु, भागवत, कर्म ) में भी रामकथा का वर्णन |
  • बौद्ध जातक कथाओं (दशरथजातक, अनार्मतजातक)
  • जैन धर्म ग्रंथों (पउमचरिउ, राम-मंदोदरी संवाद, हनुमानचरित)
  • दक्षिण भारत के आलवार संतों में भी रामभक्ति पाई जाती है |
  • शठाकोरप अथवा नक्मालवार को राम की पादुका का अवतार माना जाता है | इनकी 3 कृत्तियाँ=तिरुवितुरम, तिरुवर्गशरियेम, पेरिय तिरुवंदादि

रामभक्ति काव्य का विकास

  • सुस्पष्ट शुरुआत= श्री रामानुज और उनके श्री सम्प्रदाय ( भक्ति को मात्र ब्राह्मणों के लिए सीमित रखा)
  • रामानुज सम्प्रदाय के राघवानंद जी ने राम को लोक नियुक्त बनाने की कोशिश की और राम को बैकुंठ में बैठकर रामावत सम्प्रदाय की स्थापना की |
  • राघवानंद के विपरीत रामानन्द जी ने भक्ति को सर्वसुलभ बनाया |
  • रामानुज के मानस शिष्यों के रूप में तुलसी और रामानन्द थे |
  • तुलसी से पहले विष्णुदास ने राम काव्यधारा को जोड़ने की कोशिश की | वाल्मीकि रामायण का हिन्दीयकरण किया |
  • नाभादास और अग्रदास ने अष्टयाम लिखकर रामभक्तिधारा को क्रमशः काव्यात्मक, रसिकोपासनाधारा बनाने की कोशिश की |
  • आगे चलकर जीवा जी राम ने तत्सुखी और रामचरण दास ने स्वरसुखी सम्प्रदाय की स्थापना की | दोनों में राम की उपासना स्वयं को सीता या सीता की सखी मानकर की गई है |
  • आधुनिक राम काव्यधारा मैथिलीशरणगुप्त , निराला, नरेश मेहता जैसे रचनाकार हैं |

रामकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

  1. राम का स्वरूप
  2. भक्ति का स्वरूप
  3. समन्वयवादी प्रवृत्ति
  4. नारी विषयक दृष्टिकोण
  5. रस-योजना
  6. भाषा विभिन्नता
  7. अलंकार विधान

रामभक्ति के प्रमुख सम्प्रदाय

संप्रदाय आचार्य विशेष
श्री सम्प्रदाय रंगनाथ मुनि (रामभक्ति परम्परा के प्रथम कवि माना जाता है)
रामानुजाचार्य (शेषनाग अथवा लक्ष्मण का अवतार)
पुण्डरीकाक्ष, राम मिश्र, यामुनाचार्य,
प्रबन्धम में आलवार भक्तों के पदों का संकलन
विष्णु और लक्ष्मी की उपासना मान्य
रामानुजाचार्य ने अद्वैत वेदान्त का खंडन -विशिष्टाद्वैतवाद की स्थापना
प्रधान गददी तोताद्रि में
ब्रह्म सम्प्रदाय मध्वाचार्य इन्होने द्वैतवाद का प्रचार किया |
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