कफ़न प्रेमचंद द्वारा रचित एक उत्कृष्ट और अंतिम कहानी है जो अप्रैल 1936 ई० में चाँद नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।मूल रूप से ये उर्दू में लिखी गई थी जो दिसंबर 1935 वीं में जामिया पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।यह कहानी दलित चेतना से ओतप्रोत एक वातावरण प्रधान सामाजिक कहानी है।कहानी के मूल में आर्थिक विषमता,बेरोजगारी, निठल्लेपन की प्रवृत्ति, सामाजिक-व्यवस्था है जो सर्वहारा वर्ग को स्वार्थी और जड़ बना रही है। उसकी स्वार्थपरता के आगे संवेदना समाप्त होती जा रही है।घीसू का बेटा माधव है।उसकी पत्नी बुधिया प्रसव वेदना से तड़प रही है।झोंपड़ी के बाहर बैठे धीसू माधव उसके मरने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।जब वह मर जाती है तो दुखी होने का नाटक करके काफी चंदा जमा कर लेते है।उस धन से वे बुधिया का कफन न खरीदकर बाजार जाकर खूब मज़े से तली हुई मछलियां खाते हैं और खूब शराब पीते हैं और बेहोश होकर गिर जाते हैं।

कहानी में ग्रामीण जीवन की रूढ़िग्रस्तता का यथार्थ चित्रण हुआ है। जीवित, पीड़ित बुधिया को देखने-छूने कोई नहीं आता लेकिन मरने पर चंदा देने को कोई मना नहीं करता। इस स्थिति का लाभ घीसू-माधव उठाते हैं।घीसू-माधव परले दर्जे के कमजोर, निर्दयी और हृदयहीन बन चुके है।उनकी हृदयहीनता का उदाहरण इस बात से मिलता है कि बुधिया प्रसव वेदना में तड़प रही है और वे दोनों चोरी के भुने आलू खाने में मग्न है।संवादों के माध्यम से पात्रो के चारित्रिक विशेषताओ के उद्घाटन के साथ साथ कथ्य की मार्मिकता और गतिशीलता को बढ़ाया गया है। घीसू-माधव को विश्वास है कि बुधिया मरकर लिए बैकुण्ठ जाएगी। इसके पीछे एक मर्मांतक विचारधारा है। 

जीते-जी सुख के दर्शन न कर सकने वाली बुधियामरने पर सही सुख तो पा सकेगी। माधव अपने होने वाले बच्चे के प्रति उत्साहित नहीं है क्योंकि कहीं न कहीं वह इस कटु सत्य से परिचित है कि वह जन्म लेकर क्या करेगा, क्या वह भी उनकी तरह नाली में रेंगते कीड़े के समान नहीं हो जाएगा | कहानी की एक एक पंक्ति अनेकानेक प्रश्नों को जन्म देती है।निर्विवाद रूप से यह प्रेमचंद की कालजयी रचना है। कहानी का उद्देश्य यथार्थवादी है। प्रेमचंद की अधिकांश कहानियों में उनके निम्नवर्गीय पात्र भूख, प्यास, शोषण, उपेक्षा सहते-सहते और मेहनत, मजदूरी करते-करते मर जाते हैं। लेकिन माधव-घीसू सहते-सहते इतने संवेदनशून्य हो गए है कि वे कामचोर से कफनचोर बन गए हैं। शोषण करने वाला समाज उन्हें प्रश्रय देता है।हूँ।

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