राजनीतिक परिस्थिति– राजनीतिक दृष्टि से यह काल मुगलों के शासन की वैभव की चरमोत्कर्ष और उसके बाद उत्तर काल में ह्रास, पतन और विनाश का काल था।शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल वैभव अपनी चरमसीमा पर था।राजदरबारों में वैभव, भव्यता और अलंकरण प्रमुख था।राजा और सामन्त मनोरंजन के लिए गुणीजनों कवियों और कलाकारों को आश्रय देते थे ।जहाँगीर ने अपने शासनकाल में राज्य का जो विस्तार किया उसे शाहजहाँ ने दक्षिण भारत तक फैला दिया।शाहजहाँ ने ताजमहल एवं मयूर सिंहासन जैसे वैभव के प्रतीक निर्मित कराए। किंतु 1658 ई० में उसके पुत्रों औरंगजेब और दाराशिकोह में सत्ता का संघर्ष प्रारंभ हो गया। दारा की हत्या कर औरंगजेब ने सत्ता पर अधिकार कर लिया।शाहजहाँ के बाद औरंगजेब ने जब सत्ता संभाली तो धार्मिक संघर्ष शुरू हो गए।परिणामस्वरूप उसका शासनकाल इन्हीं संघर्षों को समाप्त करने हो गया।इसके पश्चात्।उत्तर प्रति मुगल शासन प्रारंभ हुआ।यह शासन धीरे धीरे।कमजोर होता गया।और मोहल्लों पर अंग्रेजों का राज़ में ही खत्म हो गया। अवध के विलासी शासकों का अंत भी मुगल साम्राज्य के समान ही रहा।राजस्थान में भी विलास और बहुपत्नी प्रथा बहुत बढ़ गई थी |औरंगजेब के बाद उसका पुत्र शाहआलम गद्दी पर बैठा और 1712 ई० से मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।।राजपुरुष कुचक्रों संयंत्रों और आंतरिक कलह के शिकार होकर पतनोन्मुख हो गए। 1748 में नादिर शाह के आक्रमण ने मुगल साम्राज्य की नींव हिला दी और रही सही कसर 1761 ईसवी में अहमद शाह अब्दाली ने पूरी कर दी। विदेशी व्यापारियों विशेष रूप से अंग्रेजों ने इस स्थिति का पूरा लाभ उठाया और धीरे धीरे शक्ति संचय करके 1830 ई० तक लगभग समस्त उत्तरी भारत पर अपना आधिपत्य जमा बैठे।वास्तविक सत्ता अंग्रेजों के हाथ में आ गई और मुगल सम्राट नाममात्र के शासक रह गए। बिहारी के काव्य में वर्णित मुगलकालीन वैभव, विलास का समर्थन हॉकिंग्स ने अपने यात्रा वृतांतों में किया है।

सामाजिक परिस्थिति-सामाजिक दृष्टि से इस काल को आदि से अंत तक घोर अधः पतन का काल कहा जाना चाहिए| इस काल में सामंतवाद का बोलबाला था। जिसकारण सामंतशाही का प्रभाव आम लोगों पर पड़ रहा था।सामाजिक व्यवस्था का केंद्र बिन्दु बादशाह था।इस वर्ग में श्रमजीवी, कृषक, सेठ, साहूकार, व्यापारी आदि सभी शोषित थे।जनसंख्या की चिकित्सा का कोई प्रबंध नहीं था।ऐसी दयनीय दशा में लोग भाग्यवादी या नैतिक मूल्यों से रहित हो रहे थे| ।कार्य सिद्धि के लिए घूस लेना देना आम बात थी। जिसके कारण विलासिता की प्रवृत्ति बढ़ गई थी और नारी को मात्र उपभोग की वस्तु समझा जाता था।अभिजात वर्ग के लिए लड़कियों का अपहरण करना सामान्य बात थी।यहाँ बहुविवाह की प्रथा प्रचलित थी।

सांस्कृतिक परिस्थिति-सामाजिक परिस्थिति के सामान ही सांस्कृतिक उपस्थिति भी बड़ी दयनीय थी।अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ की उदारवादी नीति भी औरंगजेब के शासनकाल में समाप्त हो गई थी।औरंगजेब की कट्टरता के कारण धार्मिक संघर्ष जारी था |अंधविश्वास इतना बढ़ गया था कि हिंदू मंदिरों में और मुसलमान पीरो के तकिए पर जाकर इच्छाओं के लिए लोग प्रार्थना करते थे।जनता की अंधविश्वास का लाभ पुजारी और मोलवी भी उठाते थे।

साहित्य परिस्थितियां-साहित्य और कला की दृष्टि से यह काल अत्यंत समृद्ध रहा।इस काल के कवि साधारण परिवार से होते थे।परन्तु उन्हें सही जीविका मिल जाती थी और उनकी गणना प्रतिष्ठित लोगों में होती थी।कवियों को उचित सम्मान और प्रतिष्ठा कला को प्रोत्साहित करने के लिए महत्वपूर्ण थी।वे चमत्कारपूर्ण काव्य रचना करने को कवि कर्म की सफलता मानते थे।जिसके कारण उनका काव्केय श्रृंगार के संकुचित क्षेत्र में ही सिमट कर रह गया था। इस काल में चित्रकला, स्थापत्य कला एवं संगीत कला का विशिष्ट स्थान रहा।मुगलों की राजकीय भाषा फ़ारसी थी किंतु काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा प्रतिष्ठित हो गई थी। इस युग की चित्रकला राजसी ठाट- बाट और जनजीवन दोनों का चित्रण करती दिखाई पड़ता है।राजा राजस्थानी शैली एवं कांगड़ा शैली के चित्रों में रागमाला एवं राधा-कृष्ण की लीलाओं लोगगाथाओं और महाभारत की कथाओं का चित्रण हुआ है। शाहजहाँ द्वारा बनाई गई इमारतों में सौंदर्य का समावेश हुआ है।आगरा का ताजमहल तथा दिल्ली के लाल किले का दीवाने-खास इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं| कवियों एवं कलाकारों को राजस्व इस काल में खूब मिला, जिसे साहित्य तथा कला का बहुमुखी विकास हुआ।

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