मैं हूं तो कुछ नहीं है सामने, मै नहीं तो सारा संसार नजर आता है
मै हूँ तो मै ही हूँ मै के नीचे सब कुछ दब जाता है
मै का मान करते करते मै मै का अहसास तब हुआ
एक दिन जब मै मै के बोझ के नीचे दब गया
मै वो बादल का टुकडा जो अहंकार के दबाव में सबसे ऊपर पहुँच जाता है
क्षणभर के ठहराव में अपने सर्वोच्च समझ इतराता है
पुनः अपनी स्थिति पलभर में समझ जाता है
मैं ने मारे सरे अहसास स्वार्थ ही हर और नजर आता है
मैं का ये सपना सरे राह आसानी से बिकता दिखता है
मैं में इतराते इंसानों को देखकर
अपने ऊपर घुमान का मेरा भी मन हुआ
मैं क्या किसी कम हूँ इन भावों ने मन को छुआ
मैं के दरिया में सब धीरे धीरे गहराता चला गया
मैं दुनिया में सुख दुःख मेरे तेरे की ऊँची दीवारे बनता चला गया
इसी मैं ने अंतरात्मा से पवित्रतता के भाव का नाश किया
मैं में मैं उड़ता रहा है पतंग की तरह
मैं ने ही बड़े बड़े शूरवीर विद्वान मिटटी में मिला दिए
मैं का कवच उतार देने पर हर तरफ खुशहाली और हरियाली दिखाई देती है
प्रकृति की हर अदा में नव सृजन की बानगी दिखाई देती है
मैं को छोड़कर देखो तो प्रकृति की सुंदरता से नजरें हटती नहीं
मैं ऐसी प्यास है जो कभी बुझती नहीं
मैं से जीतनी जल्दी हो सके तो पीछा छुड़ाने के प्रयास करता हूँ
पर अगले ही पल खुद को में में घिरे पाताहूँ
ये मैं मेरा पीछा छोड़ता ही नहीं
मैं से मेरा बंधन लाख तोड़ने पर भी टूटता ही नहीं
मैं को मारने की कोशिश हर पल जारी है
मैं को मारने की लड़ाई अभी नहीं हारी है
आज मेरी कल आपकी भी बारी है
मै के आगे सारी दुनिया हारी है
मैं से पैदा हुआ मैं एकदिन मैं में ही मिल जाएगा
मैं भी अपने साथ सारे दुःख अशांति भी ले जाएगा
कोशिश जारी है की मैं की बाजी मैं एक दिन जीत जाऊंगा
जिस दिन मैं खुद अपने मैं को मिटटी में मिलाऊँगा
मैं की ये कहानी जारी रहेगी …………………………

द्वारा-सुखविन्द्र

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