यमक अलंकार की परिभाषा
जिस काव्य में समान शब्द के अलग-अलग अर्थों में आवृत्ति हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। यानी जहाँ एक ही शब्द जितनी बार आए उतने ही अलग-अलग अर्थ दे।
जैसे–
कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौरात नर या पाए बौराय।।
इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दूसरे कनक का अर्थ-धतूरा है। अतः; ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
कुछ अन्य उदाहरण :
माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।
ऊपर दिए गए पद्य में ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहली बार ‘मनका’ का आशय माला के मोती से है और दूसरी बार ‘मनका’ से आशय है मन की भावनाओ से।
अतः ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
किसी सोच में हो विभोर साँसें कुछ ठंडी खींची।
फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखें मींचीं।।
केकी-रव की नूपुर-ध्वनि सुन, जगती जगती की मूक प्यास।
बरजीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न हरिनी के नैनान ते हरिनी के ये नैन।
तीन बेर खाती ते बे तीन बेर खाती हैं।
जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं ‘बेर’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। पहली बार तीन ‘बेर’ दिन में तीन बार खाने की तरफ संकेत कर रहा है तथा दूसरी बार तीन ‘बेर’ का मतलब है तीन फल।
अतः ‘बेर’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
काली घटा का घमंड घटा।
ऊपर दिए गए वाक्य में आप देख सकते हैं की ‘घटा’ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। पहली बार ‘घटा’ शब्द का प्रयोग बादलों के काले रंग की और संकेत कर रहा है।
दूसरी बार ‘घटा’ शब्द बादलों के कम होने का वर्णन कर रहा है। अतः ‘घटा’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
कहै कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराई लीनी ।
रति रति सोभा सब रति के शरीर की ॥
पहली पंक्ति में बेनी शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है। पहली बार प्रयुक्त शब्द बेनी कवि का नाम है तथा दूसरी बार प्रयुक्त बेनी का अर्थ है चोटी। इसी प्रकार दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त रति रति शब्द तीन बार प्रयुक्त हुआ है पहली बार प्रयुक्त रति रति का अर्थ है समीप जरा जरा सी और दूसरे स्थान पर प्रयुक्त रति का अर्थ है कामदेव की परम सुंदर पत्नी रति इसी प्रकार बेनी और रति शब्दों की आवृत्ति में चमत्कार उत्पन्न किया गया है।अतः यह उदाहरण यमक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
यमक अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण :
- केकी रव की नुपुर ध्वनि सुन, जगती जगती की मूक प्यास।
- बरजीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न हरिनी के नैनान ते हरिनी के ये नैन।
- तोपर वारौं उर बसी, सुन राधिके सुजान। तू मोहन के उर बसी ह्वे उरबसी सामान।
- भर गया जी हनीफ़ जी जी कर, थक गए दिल के चाक सी सी कर।
यों जिये जिस तरह उगे सब्ज़, रेग जारों में ओस पी पी कर।। - जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
- पास ही रे! हीरे की खान, उसे खोजता कहाँ नादान?
- भूखन सिथिल अंग, भूखन सिथिल अंग, बिजन डोलाती ते बे बिजन डोलाती हैं।
- तोपर वारौं उर बसी, सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसी वै उरबसी समान। - ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी, ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
- कंद मूल भोग करें कंदमूल भोग करें
- जिसकी समानता किसी ने कभी पाई नहीं।
पाई के नहीं हैं अब वे ही लाल माई के। - किसी सोच में हो विभोर साँसें कुछ ठंडी खिंची।
फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखें मिंची।।- सपने में भी अपने को अपने ही समझना
- हरी, हरी रूप दियो मीरा को
- दो बेर खाती वो दो बेर खाती है।
- जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
- उधौ जोग जोग हम नाहीं ।
- सुर–सुर तुलसी ससि।
- कबीरा सोई पीर है, जो जानै पर पीर।
- काली घटा का घमंड घटा
- रहिम पानी राखिये, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
- कंद मूल भोग करें कंदमूल भोग करें