मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। इनका मूल नाम मदन मोहन उगलानी उर्फ़ मदन मोहन था। इनके पिता वकील होने के साथ-साथ साहित्य और संगीत प्रेमी भी थे। पिता के साहित्य में रूचि का प्रभाव मोहन राकेश पर भी पड़ा। पंजाब विश्वविधालय से उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में एम०ए० किया। एक शिक्षक होने के नाते पेशेवर जिंदगी की शुरुआत करने के साथ उनका रुझान लघु कहानियों की तरफ हुआ। बाद में उन्होंने कई नाटक और उपन्यास लिखे। अनेक वर्षों तक दिल्ली, जालंधर, शिमला और मुंबई में अध्यापन का कार्य करते रहे। साहित्यिक अभिरूचि के कारण उनका मन अध्यापन कार्य में नहीं लगा और एक अर्श तक उन्होंने सारिका पत्रिका का सम्पादन किया। इस कार्य से भी लेखन में बाधा उत्पन्न करने के कारण इससे अलग कर लिया। जीवन के अंत समय तक स्वतंत्र लेखन ही इनका जिविकोपार्जन का साधन रहा मोहन राकेश नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे।
रचनाएँ
इनकी रचनाएँ पाठकों और लेखकों के दिलों को छूती हैं। एक बार जो उनकी रचना को पढ़ता है तो वह पूरी तरह से राकेश के शब्दों में डूब जाता है। राकेश के उपन्यास ‘अंधेरे बंद कमरे’, ‘न आने वाला कल’, ‘अंतराल’ और ‘बाकलमा खुदा’ है। इसके अलावा ‘आधे अधूरे’, ‘आषाढ़ का एक दिन’ और ‘लहरों के राजहंस’ उनके कुछ मशहूर नाटक हैं। ‘लहरों के राजहंस’ उनका सबसे विख्यात नाटक रहा। मोहन राकेश ने नाटक, उपन्यास, कहानी, यात्रा वृत्तान्त, निबन्ध आदि विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की।
कृतियाँ
उपन्यास | नाटक | कहानी संग्रह | निबंध संग्रह | अनुवाद |
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उपन्यास: अँधेरे बंद कमरे (1961), न आने वाला कल (1970), अंतराल (1973), कहानियाँ: इंसान के खँडहर (1950), नए बादल (1957) जानवर और जानवर (1958), एक और जिंदगी (1961), फौलाद का आकाश (1966), मिस पाल (1967), मलवे का मालिक (1967), आज के साये (1967), रोंयें रेशे (1968), मिले जुले चहरे (1969), एक-एक दुनिया (1969), पहचान (1972)
कहानी संग्रह: ‘क्वार्टर’, ‘पहचान’ तथा ‘वारिस’ नामक तीन कहानी संग्रह है। जिनमें कुल 54 कहानियाँ हैं।
नाटक: आषाढ़ का एक दिन (1958), लहरों के राजहंस (1963), आधे-अधूरे (1969), पैर तले की जमीन (अधुरा कमलेश्वर जी ने पूरा किया 1975)
एकांकी: एकांकी एवं अन्य नाट्य रूप (1973), अंडे के छिलके, सिपाही की माँ, प्यालियाँ टूटती है, तथा अन्य एकांकी, बीज नाटक, दूध और दांत (अप्रकाशित)
डायरी: मोहन राकेश की डायरी
जीवनी-संकलन: समय सारथी
यात्रा वृतांत: आखिरी चट्टान (1957), ऊँची झील (1960), पतझड़ का रंग मंच
निबंध संग्रह: परिवेश (1967), रंगमंच और शब्द (1974), बकलम खुद (1974), साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि (1975)
अनुवाद: संस्कृत के शाकुंतलम् तथा मृच्छकतिकम् नाटकों का हिंदी रूपान्तर
संपादन: ‘सारिका’ और ‘नई कहानी’ पत्रिका
पुरस्कार
1968 में मोहन राकेश को ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।