Leave a Comment / Educational / By sukhvinder787

आदिकाल (1050-1375)(महारोज भोज से लेकर हम्मीर देव से पीछे तक)

इस काल के विभिन्न नाम

साहित्यकार नामकरण समयावधि (ई०)टिप्पणी
गिर्यसनचरण काल7000-1300
मिश्र बंधुप्रारम्भिक काल0700-1343 (1)
1344-1444 (2)
पूर्व आरंभिक
उत्तर आरम्भिक
आचार्य शुक्लवीर गाथा काल1050-137512 ग्रंथों (विजयपाल रासो,खुम्माण रासो ,कीर्तिलता आदि) आधार पर
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीआदिकालइस मत को व्यापक स्वीकृति
राम कुमार वर्मा संधिकाल
चारण काल
750-1000
1000-1375

आचार्य शुक्ल हिंदी का आरम्भ तो सिद्धों की रचनाओं से स्वीकार करते हैं | परन्तु वे वास्तविक हिंदी का प्रारम्भ 993 ई० से मानते हैं| लेकिन शिक्ल ने नाथ तथा जैन साहित्य की उपेक्षा की है |नाथों-जोगियों और सिद्धों के साहित्य की भाषा का ढांचा साधुक्कड़ी या कुछ खडी बोली लिए राजस्थानी था | जनता की भाषा में साहित्य, पंडित परम्परा को चुनौती देता है |

भाषा को विशिष्ट बनाने वाली मूलतः तीन प्रवृत्तियां हैं

1. क्षतिपूरक दीर्घीकरण 2. परसर्गों की बहुलता 3. तत्सम शब्दों का प्रचलन

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपभ्रंश को एक स्वतंत्र भाषा स्वीकार किया है |अपरोक्ष रूप से सातवीं सदी को आरम्भ अवश्य मानते हैं | परन्तु वे वास्तविक हिंदी की शुरुआत भक्तिकाल से मानते हैं | वे दसवीं से चौदहवीं सदी तक को आदिकाल मानते हैं | इसे वे अपभ्रंश के आगे का काल मानते हैं | इसी अपभ्रंश के पूर्वरूप को पुरानी हिंदी कहते हैं | राहुल सांकृत्यायन ने उत्तर अपभ्रंश की रचनाओं को हिंदी की रचना मानते हैं | सरहपा या पुष्य में से कौन पहले कवि कौन है ? यही अभी भी विवाद का विषय है |

डिंगल- पिंगल भाषा का प्रयोग (डिंगल-चारण कवियों ने रासो ग्रंथों में जिस अपभ्रंश ओर राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया है , इसी प्रकार अपभ्रंश ओर ब्रजभाषा के मेल से बनी भाषा को पिंगल कहा जाता है ।

विविध छंदों का प्रयोग – पृथ्वीराज रासो को “छंदों का अजायबघर” कहा जाता है ।

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