अभी तक आपने कई फिल्मी सितारों की अनसुनी दास्तानें पढ़ीं। आज हम आपको एक ऐसी नायिका की कहानी सुनाते हैं, जिसके लिए हीरोइन बनना अपनी जिंदगी को जीते-जी नर्क बनाना साबित हुआ। पहली फिल्म के पहले ही शो के बाद लोग उसकी जान लेने पर आमादा हो गए, थिएटर जला दिए गए।
उसे अपनी बाकी जिंदगी गुमनामी में गुजारनी पड़ी। इतनी गुमनामी में कि आज गूगल पर भी उसकी सिर्फ एक धुंधली सी तस्वीर है। ना तो कोई फोटोशूट और ना ही कोई वीडियो, कुछ भी नहीं।
रोजी का सिर्फ एक कसूर था कि वो दलित थी। कोई नीची जाति की लड़की फिल्म की हीरोइन कैसे बन सकती है, ये सोच कर ऊंची जाति के लोगों ने उसकी पूरी जिंदगी तबाह कर दी।
जी हां, हम जो बता रहे हैं वो सुनने में डरावना सा है, लेकिन सच है। ये अनसुनी दास्तान है मलयाली फिल्मों की पहली नायिका पीके रोजी की। जिन्होंने अपने जीवन में सिर्फ एक ही फिल्म की, उसके बाद समाज से ऐसा छिपना पड़ा कि खुद उनकी बेटियां सालों तक जान नहीं पाईं कि उनकी मां मलयाली फिल्मों की पहली एक्ट्रेस हैं।
आज की अनसुनी दास्तानें में उन्हीं पीके रोजी की कहानी, जिनके साथ हीरोइन बन जाने पर जो बर्बरता हुई, वो सिहरन पैदा करने वाली है…
ये थी पहली फिल्म
वह एक ऐसे युग में थी, जब समाज के कई वर्गों में प्रदर्शन कला को हतोत्साहित किया जाता था, विशेष रूप से महिलाओं के लिए रोजी ने मलयालम फिल्म विगाथाकुमारन (द लॉस्ट चाइल्ड) में अपनी भूमिका के साथ बाधाओं को तोड़ा। आज भी उनकी कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है।
पीके रोजी मलयालम फिल्म और इनसे जुड़े तथ्य
पीके रोजी ने 25 साल की उम्र में अपनी पहली फिल्म की थी। 1928 में बनी विगाथाकुमारन (द लॉस्ट चाइल्ड) एक मूक मलयालम फिल्म थी। रोजी ने उस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई थी। वह मलयालम सिनेमा की पहली नायिका और भारतीय सिनेमा की पहली दलित अभिनेत्री थीं।
पहली फिल्म से जुड़े विवाद
इस फिल्म में रोजी ने एक नायर महिला सरोजिनी की भूमिका निभाई थी। जब फिल्म रिलीज हुई, तो एक उच्च समुदाय के सदस्य एक दलित महिला को उनके समाज को चित्रित करने के कारण क्रोधित थे। इतना ही नहीं उसके घर को उच्च जातियों द्वारा जला दिया गया था।अपने जान बचाने के लिए रोजी एक लॉरी में भाग गई जो तमिलनाडु की ओर जा रही थी। बाद में उन्होंने लॉरी चालक केशवन पिल्लई से शादी की और अपना जीवन ‘राजम्मल‘ के रूप में व्यतीत किया।मजेदार बात यह है कि मलयालम सिनेमा में महिला अभिनेताओं के एक समाज ने खुद को पीके रोजी फिल्म सोसाइटी का नाम दिया।