शालिनी गर्मी की छुट्टियों में पिता के घर आती है। सभी प्रसन्नमन होकर उसका स्वागत करते हैं, परन्तु उसकी भाभी उदासीन-सी दिखाई पड़ती है।
शालिनी – भाभी, (तुम) चिन्तित-सी प्रतीत होती हो। सभी कुशल तो हैं?
माला – मैं कुशल हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ? चाय या ठण्डा?
शालिनी – इस समय मैं कुछ नहीं चाहती। रात में सभी के साथ भोजन ही कर लूंगी।

(भोजन के समय भी माला की मनोदशा स्वस्थ प्रतीत नहीं होती थी, परन्तु मुख से कुछ नहीं कहा।)
राकेश – बहन शालिनी, भाग्य से तुम आ गई हो। आज मेरे कार्यालय में अचानक एक बैठक निश्चित की गई है। आज ही माला का डॉक्टर के साथ मिलने का समय निर्धारित है। तुम माला के साथ डॉक्टर के पास जाओ। उसकी सलाह के अनुसार जो करने योग्य है, वह करो।
शालिनी – क्या हुआ? (क्या) भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है? मैं तो कल से ही देख रही हूँ कि वह स्वस्थ नहीं लगती है, ऐसा प्रतीत होता था।

राकेश – चिन्ता का विषय नहीं है। तुम माला के साथ जाओ। रास्ते में वह सब बता देगी। (माला और शालिनी डॉक्टर के पास जाती हुई वार्तालाप करती हैं)
शालिनी – क्या हुआ? भाभी। क्या समस्या है?
माला – शालिनी! मेरे कोख में तीन महीने का गर्भ है। तुम्हारे भाई का आग्रह है कि मैं लिङ्ग परीक्षण करवाऊँ और यदि कोख में कन्या है तो गर्भ को गिरवा दूँ। मैं अत्यधिक दुःखी हूँ तथा तेरा भाई सुनता ही नहीं है।

शालिनी – भाई अकेला कैसे विचार कर सकता है? यदि कन्या है तो हत्या करनी है। यह तो पापपूर्ण कार्य है। क्या तुमने विरोध नहीं किया? वह तुम्हारी कोख में स्थित बच्चे की हत्या के विषय में सोचता है और तुम चुप खड़ी हो। अभी घर चलो, लिंगपरीक्षण की आवश्यकता नहीं है। भाई जब घर आएगा, मैं बात कर लूँगी। (सायंकाल भाई आता है, हाथ-पैर आदि धोकर तथा कपड़े बदलकर पूजाघर में जाकर, दीपक जलाकर दुर्गा की पूजा करता है। तत्पश्चात् चायपान के लिए सभी एकत्रित होते हैं।)

राकेश – माला! तुम डॉक्टर के पास गई थीं। उसने क्या कहा?
(माला चुप रहती हैं। तब तीन साल की खेलती हुई बेटी ‘अम्बिका’ पिता की गोद में बैठ जाती है, उससे चॉकलेट माँगती है। राकेश अम्बिका का लाड (प्यार) करता है और उसे चॉकलेट देकर गोद से उतार देता है। पुनः माला की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डालता है।
शालिनी – यह सब देखकर उत्तर देती है।) शालिनी – भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसकी कोख में पुत्र है या पुत्री? किसलिए? छह महीने के पश्चात् सब स्पष्ट हो जाएगा। समय से पूर्व यह प्रयास कैसा?
राकेश – बहन! तुम जानती तो हो कि पहले ही हमारे घर में पुत्री के रूप में ‘अम्बिका’ है ही। अब एक पुत्र की आवश्यकता है। अवश्य ही

शालिनी – अवश्य ही, यदि कोख में कन्या होगी तो मार देना चाहिए। (तेज आवाज में) तुम हत्या के पाप में प्रवृत्त हो।
राकेश – नहीं, हत्या नहीं।
शालिनी – तो यह क्रूर कर्म क्या है? क्या तुम सर्वथा भूल गए हो कि हमारे पिता ने बेटा-बेटी में भेद कभी नहीं किया। वे सदा मनुस्मृति के इस वाक्य को उद्धृत करते थे- आत्मा ही पुत्र के रूप में उत्पन्न होती है, पुत्री पुत्र के समान होती है। तुम भी प्रातः सायं देवी की स्तुति करते हो। जगत् को उत्पन्न करने वाली शक्ति का तिरस्कार किसलिए करते हो? तुम्हारे मन में इतनी गन्दी विचारधारा आ गई है- यह सोचकर ही मैं कुण्ठित हूँ। तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ………..।

राकेश – बहन। रुक जाओ, रुक जाओ। मैं अपने अपराध को स्वीकार करता हूँ और लज्जित हूँ। आज से लेकर कभी इस निन्दनीय कार्य का चिन्तन नहीं करूँगा। जिस प्रकार ‘अम्बिका’ मेरे हृदय की तथा सम्पूर्ण स्नेह की अधिकारी है, उसी प्रकार आने वाला बच्चा भी स्नेह का अधिकारी होगा। पुत्र होवे अथवा पुत्री। मैं अपने निन्दनीय विचार के प्रति पश्चाताप में डूबा हुआ हूँ। मैं किस प्रकार भूल गया हूँ-

जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ इनकी पूजा नहीं होती है, वहाँ सभी क्रियाएँ व्यर्थ होती हैं। अन्वयः-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवताः रमन्ते। यत्र एताः न पूज्यन्ते, तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति।) अथवा ‘पिता से दश गुणा माता (सम्माननीय) है।’ तुमने सन्मार्ग दिखला दिया है। बहन, (आयु में) छोटी होते हुए भी तुम मेरी गुरु हो।

शालिनी –
पश्चात्ताप मत करो। तुम्हारे मन का अज्ञान नष्ट हो गया है। प्रसन्नता का विषय है भाभी चिन्ता को छोड़ दो। आने वाले शिशु के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। भाई, तुम भी प्रतिज्ञा करो- कन्या की रक्षा करने में उसके पालन में सावधान रहँगा। ‘बेटी की रक्षा करो, बेटी का पालन करो’ यह सरकार की घोषणा तभी सार्थक होगी, जब हम सभी मिलकर इस विचार को सत्य करेंगे- वेदशास्त्रों के चिन्तन में जो गार्गी तथा राजनीति में, पराक्रम में द्रौपदी, शत्रु का विनाश करने में लक्ष्मीबाई, विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना, इन्द्र उद्योग के पथ पर तथा खेल जगत् में साइना- ये चारों ओर प्रसिद्ध (स्त्रियाँ) हैं। यह स्त्री सभी दिशाओं में सबला है। सभी इसे सदा प्रोत्साहित करें।

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