सूर्य पूर्व दिशा में निकलता है तथा पश्चिम में अस्त होता है-ऐसा संसार में दिखाई देता है। परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सूर्य गतिशील है। सूर्य स्थिर है और पृथिवी गतिशील है, जो अपनी धुरी पर घूमती है-यह सिद्धान्त अब भली प्रकार स्थापित हो चुका है। यह सिद्धान्त जिनके द्वारा सर्वप्रथम प्रवर्तित किया गया, वे महान् गणितज्ञ ज्योतिर्विद् आर्यभट थे।

उन्होंने ‘पृथिवी स्थिर है’-इस परम्परा से प्राप्त रिवाज (मान्यता) का खण्डन किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि चलती नौका पर बैठे हुए व्यक्ति को नौका स्थिर अनुभव होती है तथा अन्य पदार्थों को वह गतिशील समझता है। इसी प्रकार गतिशील पृथिवी पर स्थित मानव पृथिवी को स्थिर अनुभव करता है तथा सूर्यादि ग्रहों को गतिशील जानता है।

476 ईस्वीय सन् में आर्यभट ने जन्म लिया ऐसा उसके द्वारा ही विरचित ‘आर्यभटीय’ इस ग्रन्थ में उल्लेख किया गया है। यह ग्रन्थ उसके द्वारा तेईस वर्ष की अवस्था में रचा गया था। इतिहास के स्रोतों से ज्ञात होता है कि पाटलिपुत्र के पास आर्यभट की वेधशाला थी। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि उसकी कर्मभूमि पाटलिपुत्र ही थी।

आर्यभट का योगदान गणितज्योतिष से सम्बन्धित है, जहाँ संख्याओं की गणना का महत्त्व है। आर्यभट फलित ज्योतिष शास्त्र में विश्वास नहीं रखते थे। गणित की पद्धति पर किए गए आकलन को आधार बनाकर ही उन्होंने प्रतिपादित किया था कि ग्रहण में राहु व केतु नामक राक्षस कारण नहीं हैं। वहाँ तो सूर्य, चन्द्र और पृथिवी-ये तीन ही कारण हैं।

सूर्य के चारों ओर घूमती हुई पृथिवी का चन्द्रमा के परिक्रमा पथ के साथ संयोग होने से ग्रहण होता है। जब पृथिवी की छाया पड़ने से चन्द्रमा का प्रकाश रुक जाता है तब चन्द्र ग्रहण होता है। उसी प्रकार पृथ्वी और सूर्य के मध्य आए हुए चन्द्रमा की छाया पड़ने से सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।

समाज में नए विचारों को स्वीकार करने में प्रायः सामान्य लोग कठिनता का अनुभव करते हैं। भारतीय ज्योति:शास्त्र में उसी प्रकार आर्यभट का विरोध हुआ। उनके सिद्धान्तों की उपेक्षा की गई। वे अपने आपको विद्वान् मानने वाले लोगों के मजाक का पात्र बने। फिर भी उनकी दृष्टि समय को लाँघने वाली दृष्टिगोचर हुई। आधुनिक वैज्ञानिकों ने उनके प्रति तथा उनके सिद्धान्त के प्रति आदर प्रकट किया है। इसी कारण से हमारे पहले उपग्रह का नाम ‘आर्यभट’ किया (रखा) गया। वास्तव में भारतीय गणितपरम्परा तथा विज्ञान परम्परा के वे एक शिखरपुरुष थे।

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