बालिका अनारिका के मन में हमेशा बड़ा कुतूहल (जानने की इच्छा) होता है। इसलिए वह बहुत प्रश्न पूछती है। उसके प्रश्नों से सबकी बुद्धि पहिए के समान घूमने लगती है।
सुबह उठकर उसने अनुभव किया कि उसका मन प्रसन्न (खुश) नहीं है। मन प्रसन्न करने के लिए वह घूमने के लिए घर से बाहर गई। घूमने के समय उसने देखा कि रास्ते सजे हुए हैं। वह सोचती है-किस लिए यह तैयारी है? उसे याद आया कि आज तो मन्त्री आएँगे।
वे यहाँ किसलिए आएँगे इस विषय में उसका कुतूहल आरम्भ हुआ। घर आकर उसने पिता से पूछा-“पिता जी! मन्त्री किसलिए आ रहे हैं।” पिता जी बोले-“पुत्री! नदी के ऊपर नया पुल बना है, उसके उद्घाटन के लिए मन्त्री आ रहे हैं।” अनारिका ने फिर पूछा-“पिता जी! क्या मन्त्री ने पुल का निर्माण किया है?”
पिता ने कहा- “नहीं पुत्री! पुल का निर्माण मजदूरों ने किया था।” फिर अनारिका का प्रश्न था “यदि मजदूरों ने पुल बनाया है, तब मन्त्री किसलिए आ रहे हैं?” पिता बोले-“क्योंकि, वे हमारे देश के मन्त्री हैं।” “पिता जी! पुल को बनाने के लिए पत्थर कहाँ से आते हैं ? क्या उन्हें मन्त्री देते हैं ?”
पिता ने उदासीन भाव से उत्तर दिया, “अनारिका! पत्थर लोग पहाड़ों से लाते हैं।” “पिता जी! तो क्या! इसके लिए मन्त्री धन देते हैं ? उनके पास धन कहाँ से आते हैं?” इन प्रश्नों को सुनकर पिता बोले -“अरे! प्रजाएँ सरकार को धन देती हैं।” आश्चर्यचकित अनारिका ने फिर पूछा- “पिता जी! मज़दूर पहाड़ों से पत्थर लाते हैं, वे ही पुल बनाते हैं, प्रजाएँ सरकार को धन देती हैं, तो भी मन्त्री पुल के उद्घाटन के लिए किसलिए (क्यों) आ रहे हैं?”
पिता बोले, “पहले ही मैंने कहा था कि वे देश के मन्त्री हैं। जनप्रतिनिधि भी हैं। जनता के धन से बने हुए पुल के उद्घाटन के लिए जनता के प्रतिनिधि निमन्त्रित किए जाते हैं। चलो, तैयार होकर विद्यालय जाओ।” अब भी अनारिका के मन में बहुत से प्रश्न हैं।