पर्व (त्योहार) में, संकट के समय में, अकाल पड़ने पर, देश पर विपत्ति आने पर और दैनिक व्यवहार में जो सहायता करता है, वह भाई होता है। यदि संसार में सब स्थानों पर ऐसी भावना हो, तब संसार में भाईचारा सम्भव होता है
परन्तु अब सारे विश्व में लड़ाई और अशान्ति का वातावरण है। मनुष्य आपस में विश्वास नहीं करते हैं। वे (मनुष्य) दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा नहीं गिनते (समझते) हैं। और (भी) सम्पन्न देश असमर्थ (गरीब) देशों के प्रति अनादर का भाव दिखाते हैं और उनके ऊपर अधिकार स्थापित करते हैं (रखते हैं) विश्व में सब स्थानों पर द्वेष की, वैर की और हिंसा की भावना दिखाई देती है। देशों की उन्नति भी रुक जाती है।
यह बड़ी आवश्यकता है कि एक देश दूसरे देश के साथ शुद्ध हृदय (मन) से भाईचारे का व्यवहार करे। संसार के लोगों के लिए यह भावना आवश्यक है। तब विकसित और अविकसित देशों के बीच में सही होड़ होगी। सभी देश ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में मित्रता की भावना से और सहयोग से उन्नति प्राप्त करने के योग्य होंगे।
सूर्य और चन्द्र की रोशनी सब स्थानों पर समान रूप से फैलती है। प्रकृति भी सब में समान भावना से व्यवहार करती है। उसी कारण से हम सबको आपसी शत्रुता के भाव को छोड़कर संसार में भाईचारा स्थापित करना चाहिए।
इसलिए संसार की भलाई (हित) के लिए ऐसी भावना होनी चाहिए-
यह अपना है और यह पराया है, इस प्रकार की गिनती (सोच) क्षुद्र (छोटे) हृदय वाले लोगों की होती है। दयालु अर्थात् विशाल हृदय वाले व्यक्तियों के लिए तो (सारी) पृथ्वी ही एक परिवार है।