कोई किसान बैलों से खेत जोत रहा था। उन बैलों में एक (बैल) शरीर से कमज़ोर और तेज़ी से चलने में असमर्थ (अशक्त) था। अतः किसान उस दुबले बैल को कष्ट देते हुए (ज़बरदस्ती) हाँकने लगा। वह बैल हल को उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर पड़ा। क्रोधित किसान ने उसको उठाने के लिए बहुत बार प्रयत्न किए, तो भी बैल नहीं उठा।

भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सब गायों की माता सुरभि की आँखों से आँसू आने लगे। सुरभि की इस दशा को देखकर देवताओं के राजा (इन्द्र) ने उससे पूछा-“अरी शुभ लक्षणों वाली! क्यों इस तरह रो रही हो? बोलो”। और वह-

हे कौशिक! तीनों दशाओं के स्वामी इन्द्र! कोई उसका सहायक नहीं दिखाई देता। मैं तो पुत्र की चिन्ता करती हूँ. अतः रो रही हूँ।

हे इन्द्र! पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ। वह लाचार है। यह जानते हुए भी किसान उसे अकसर (अनेक बार) पीड़ा देता (पीटता) है। कठिनाई से भार (बोझ) उठाता है। दूसरे की तरह जुए को वह उठाने (ढोने) में समर्थ नहीं है। यह आप देख रहे हैं न? ऐसा उत्तर दिया।
“हे प्रिये! निश्चित ही। हजारों अधिक पुत्रों के रहने (होने) पर भी तुम्हारा ऐसा प्रेम इसमें क्यों है?” ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछे जाने पर सुरभि बोली-

हे इन्द्र देव! जबकि मेरे हजारों पुत्र मेरे लिए सब जगह समान ही हैं तो भी कमजोर पुत्र के प्रति मेरी अधिक कृपा (प्रेम) है।

“मेरी बहुत सन्तानें हैं, यह सच है। तो भी मैं इस पुत्र में विशेष अपनत्व को अनुभव करती हूँ। क्योंकि निश्चय से यह दूसरों से दुबला (निर्बल) है। सभी, संतानों में माँ समान प्रेम वाली ही होती है। तो भी निर्बल पुत्र में माँ की अधिक कृपा सामान्य ही है।” सुरभि के वचन को सुनकर बहुत हैरान देवराज इन्द्र का भी हृदय पिघल गया। और उन्होंने उसे इस तरह सांत्वना दी- “हे पुत्री! जाओ। सब कुछ ठीक हो जाए।”
शीघ्र ही तेज़ हवाओं और बादलों की गर्जना के साथ वर्षा होने लगी। देखते ही सब जगह जल भराव हो गया। किसान अधिक प्रसन्नता से खेत जोतने से विमुख होकर बैलों को लेकर घर आ गया।

और सभी बच्चों में माता समान प्रेम भाव (रखने) वाली होती है। परन्तु पुत्र के दीन (दु:खी) होने पर वही माता उस पुत्र के प्रति कृपा से उदार हृदय वाली हो जाती है।

 

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