देउल नाम का गाँव था। वहाँ राजसिंह नाम का राजपुत्र रहता था। एक बार किसी जरूरी काम से उसकी पत्नी बुद्धिमती दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर की तरफ चली गई। रास्ते में घने जंगल में उसने एक बाघ को देखा। बाघ को आता हुआ देखकर उसने धृष्टता से दोनों पुत्रों को एक-एक थप्पड़ मार कर कहा-“एक ही बाघ को खाने के लिए तुम दोनों क्यों झगड़ा कर रहे हो? इस एक (बाघ) को ही बाँटकर खा लो। बाद में अन्य दूसरा कोई ढूँढा जाएगा।”
यह सुनकर यह कोई व्याघ्र (बाघ को) मारने वाली है, ऐसा समझकर वह बाघ डर से व्याकुल होकर वहाँ से भाग गया। वह स्त्री अपनी बुद्धि द्वारा व्याघ्र (बाघ) से छूट (बच) गई। अन्य बुद्धिमान भी (इसी तरह) अपनी बुद्धि के बल से महान भय से छुटकारा पा जाते हैं।
डर से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त सियार हँसते हुए बोला-“आप कहाँ से डरकर भाग रहे हो?”
बाघ– “जाओ. जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में छिप जाओ, क्योंकि हमने जिस व्याघ्रमारी के संबंध में बातें शास्त्रों में सुनी हैं उसी ने मुझे मारने का प्रयास किया, परन्तु अपने प्राण हथेली पर रखकर मैं उसके आगे से भाग गया।”
सियार- “बाघ! तुमने बहुत आश्चर्यजनक बात बताई कि तुम मनुष्यों से भी डरते हो?”
बाघ-“मेरे सामने ही (उसके) दोनों पुत्र मुझे अकेले-अकेले खाने के लिए झगड़ा कर रहे थे और उसने दोनों को एक-एक चाँटा मारती हुई देखी गई।
सियार- स्वामी. जहाँ वह धूर्त औरत है वहाँ चलिए। हे बाघ! फिर वहाँ जाने पर वह सामने यदि स्थित रहती है तो तुम्हारे द्वारा मार दिए जाने योग्य हूँ।
बाघ-सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे तो समय कुसमय में बदल जाएगा।
सियार-यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले से बाँधकर जल्दी चलो।
वह बाघ वैसा ही करके जंगल की तरफ चल दिया। सियार के साथ बाघ को फिर से आते हुए दूर से देखकर बुद्धिमती ने सोचा-‘सियार के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे छूटकारा पाया जाए?’ परन्तु जल्दी से सोचने वाली उस स्त्री ने सियार को धमकाते हुए कहा-
“अरे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ दिए थे, आज विश्वास दिलाकर भी तू एक को ही लेकर क्यों आया, अब बता।” ऐसा कहकर वह भय उत्पन्न करने वाली, व्याघ्र को मारने वाली जल्दी से दौड़ गई, अचानक व्याघ्र भी गले में बँधे हुए शृगाल को लेकर भागने लगा।
इस प्रकार से बुद्धिमती बाघ के भय से फिर से मुक्त हो गई। इसीलिए कहा जाता है-
“हमेशा हर कामों में बुद्धि ही बलवान होती है।”