अलंकार

  अलंकार से तात्पर्य- अलंकार में ‘अलम्‌’ और ‘कार’ दो शब्द हैं। ‘अलम्‌’ का अर्थ है-भूषण सजावट। अर्थात्‌ जो अलंकृत या भूषित करे, वह अलंकार है। स्त्रियाँ अपने साज-श्रृंगार के लिए आभूषणों का प्रयोग करती हैं, अतएव आभूषण ‘अलंकार’ कहलाते हैं। ठीक उसी प्रकार कविता-कामिनी अपने श्रृंगार और सजावट के लिए जिन तत्वों का उपयोग-प्रयोग […]

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अरस्तू का अनुकरण सिद्धान्त

“अरस्तू मेरी विद्यापीठ का मस्तिष्क है और शेष विद्यार्थी उसके शरीर है।’’ – प्लेटो पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में यूनानी विद्वान अरस्तू का स्थान महत्त्वपूर्ण है।अरस्तू महान् यूनानी दार्शनिक प्लेटो (427 ई.पू. से 347 ई.पू.) का शिष्य माना जाता है। इनका स्थितिकाल (384 ई.पू. से 322 ई.पू.) निर्धारित किया जाता है। सिकन्दर महान् ने भी

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बिहारी (हिन्दी की बोलियाँ)

बिहारी हिंदी का विकास मागधी अपभ्रंश से हुआ है। जिसे दो भागों– पूर्वी बिहारी और पश्चिमी बिहारी में विभाजित किया जा सकता है। पूर्वी बिहारी की दो बोलियाँ हैं- मगही और मैथिली। पश्चिमी बिहारी के अंतर्गत भोजपुरी बोली आती है। जार्ज ग्रियर्सन ने मगही को मैथिली की एक बोली मानते हैं। वहीं सुनीति कुमार चटर्जी भोजपुरी

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दक्खिनी हिन्दी

दक्खिनी हिन्दी  प्राचीनकाल से ही दक्खिनी में साहित्य सर्जन होता रहा है।दक्षिण में प्रयुक्त होने के कारण इसे ’दक्खिनी’ बोली कहा जाता है। दक्खिनी का मूल आधार दिल्ली के आसपास की 14 वीं-15वीं सदी की खङी बोली है। मुस्लिम शासन के विस्तार के साथ हिन्दुस्तानी बोलने वाले प्रशासक, सिपाही, व्यापारी, कलाकार, फकीर, दरवेश इत्यादि भारत के पश्चिमी

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पहाङी हिन्दी

पहाङी हिन्दी अपभ्रंश से ही पहाड़ी भाषाएँ भी निकली हैं। इनकी लिपि देवनागरी है। हिमालय के तराई (निचले) भागों में बोली जाती है। पूर्व में नेपाल से लेकर पश्चिम में भद्रवाह तक की भाषाओँ को जार्ज ग्रियर्सन ने पहाड़ी हिन्दी माना है। उन्होंने पहाड़ी हिन्दी को तीन वर्गों में विभजित किया गया है- पूर्वी पहाड़ी, पश्चिमी

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राजस्थानी हिन्दी (बोलियाँ)

हिंदी की पाँच उपभाषाएँ – पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, बिहारी, पहाड़ी और राजस्थानी लोक साहित्य की दृष्टि से ’मारवाङी’ सम्पन्न उपभाषा है। राजस्थान शब्द का इस प्रांत के लिए पहला लिखित प्रयोग ‘कर्नल टॉड’ ने किया था, जिनको आधार बनाकर जार्ज ग्रियर्सन ने इस क्षेत्र की भाषा को राजस्थानी कहा और साथ-साथ राजस्थानी की बोलियों का सर्वेक्षण भी प्रस्तुत किया। इस

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हिन्दी की बोलियाँ- वर्गीकरण तथा क्षेत्र

हिन्दी की पाँच उपभाषाएँ हैं- पश्चिमी हिन्दी पूर्वी हिन्दी राजस्थानी पहाङी बिहारी पश्चिमी हिन्दी हरियाणवी खड़ी बोली (कौरवी) ब्रजभाषा  कन्नौजी बुन्देली   पूर्वी हिन्दी अवधी  बघेली छत्तीसगढ़ी राजस्थानी मारवाङी जयपुरी मेवाती मालवी पहाङी कुमाउँनी गढ़वाली बिहारी बिहारी हिन्दी  भोजपुरी  मैथिली दक्खिनी हिन्दी  

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पूर्वी हिन्दी

जार्ज ग्रियर्सन ने हिंदी क्षेत्र को दो भागों– पश्चिमी हिंदी और पूर्वी हिंदी में विभाजित किया है। इन्हीं क्षेत्रों में बोली जाने वाली बोलियों को वे हिंदी की बोलियाँ मानते हैं। ग्रियर्सन पूर्वी हिंदी की उत्पत्ति अर्धमागधी अपभ्रंश  से मानते हैं। वहीं धीरेन्द्र वर्मा (हिंदी साहित्यकोश) के अनुसार पूर्वी हिंदी का विकास मागधी अपभ्रंश से

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पश्चिमी हिन्दी

पश्चिमी हिन्दी- शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित पश्चिमी हिंदी के अन्तर्गत पाँच बोलियों आती है- हरियाणी, खड़ी बोली, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुन्देली। डॉ. भोलानाथ तिवारी ने पश्चिमी हिंदी के अन्तर्गत दो अन्य बोलियों ताजब्बेकी तथा निमाड़ी को भी स्वीकार किया है। जार्ज ग्रियर्सन ‘कन्नौजी’ को बोली न मानकर ब्रजभाषा की उपबोली मानते हैं, परन्तु उन्होंने जनमत को ध्यान में रखकर

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मानक हिन्दी का भाषा वैज्ञानिक विवरण (रूपगत)

मानक भाषा मानक भाषा मानक का अभिप्राय है- आदर्श, श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित।मानक भाषा की पहचान यह भी है कि उसका प्रयोग शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।व्याकरणसम्मत परिनिष्ठित रूप मानक भाषा कहलाता है जो विकास की प्रक्रिया से निखरकर प्रयोग करने वालों का माध्यम बन

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