रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (उर्वशी- तृतीय अंक)

उर्वशी रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित एक काव्य नाटक है। यह 1961 ई० में प्रकाशित हुआ था। इस काव्य में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ से जोड़ना चाहा है। इसके लिए 1972 ई० में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।इस कृति में पुरुरवा और उर्वशी दोनों अलग-अलग तरह की प्यास लेकर आये हैं। पुरुरवा धरती पुत्र है और उर्वशी देवलोक से […]

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विद्यापति की पदावली (पद संख्या 1-25 तक )

पद संख्या: 1   नन्दक नन्दन कदम्बक तरु-तर धीरे-धीरे मुरली बजाव। समय संकेत निकेतन बइसल, बेरि बेरि बोली पठाब।। सामरि तोरा लागि, अनुखन विकल मुरारि।। जमुनाक तिर उपवन उद्वेगल, फिरि फिरि ततहि निहारि। गोरस बेचत अवइत जाइत, जनि जनि पुछ बनमारि तो हे मतिमान, सुमति! मधुसुदन बचन सुनह किछु मोरा भनइ विद्यापति सुन वरजौरित वन्दह

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रिपोर्ताज (Riportaj)

रिपोर्ताज (Riportaj) रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है और अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ से मिलता-जुलता है। लेकिन ‘Report’ समाचार पत्रों के संवाददाता लिखते हैं, जो तथ्यों का संकलन मात्र होता है, क्योंकि उसका लक्ष्य पाठकों को तथ्यों से परिचित कराना होता है। वास्तविक घटना को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर देना रिपोर्ट है अर्थात ‘रिपोर्ट’ सूचनात्मक

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श्लेष अलंकार

श्लेष अलंकार की परिभाषा श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ।  जब एक ही शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है। यानी जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है।

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यमक अलंकार

यमक अलंकार की परिभाषा जिस काव्य में समान शब्द के अलग-अलग अर्थों में आवृत्ति हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। यानी जहाँ एक ही शब्द जितनी बार आए उतने ही अलग-अलग अर्थ दे। जैसे– कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौरात नर या पाए बौराय।। इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो

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राही मासूम रज़ा

राही मासूम रज़ा (1 सितंबर, 1925-15 मार्च 1992) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। राही की प्रारम्भिक शिक्षा ग़ाज़ीपुर में हुई, बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी,

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मन्नु भंडारी

लेखक का नाम मन्नू भंडारी जन्म तिथि 3 अप्रैल 1931 जन्म स्थान गाँव :  भानपुरा, राज्य : मध्यप्रदेश , देश : भारत पिता का नाम सुखसम्पत राय माता का नाम अनूप कुमारी पति का नाम राजेन्द्र यादव पुत्री का नाम रचना बहनें शुशीला, स्नेहलता भाई प्रसन्न कुमार, बसन्त कुमार मन्नू भंडारी जन्म: 3 अप्रॅल, 1931 हिंदी

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कृष्णा सोबती

नाम कृष्णा सोबती जन्म 18 फरवरी 1925 ई० जन्म स्थान गुजरात ( अब पाकिस्तान में ) मृत्यु 25 जनवरी 2019 राष्ट्रीयता भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार 2017 साहित्य अकादमी पुरस्कार ज़िन्दगीनामा(1980) हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है. वह कहती है की “कम लिखना और विशिष्ट लिखना” यही कारण है उनके संयमित लेखन और

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भीष्म साहनी

पूरा नाम भीष्म साहनी जन्म 8 अगस्त, 1915 ई. जन्म स्थान रावलपिंडी माता पिता पिता- हरबंस लाल साहनी, माता- लक्ष्मी देवी मृत्यु 11 जुलाई, 2003 यादगार कृतियाँ ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘झरोखे’, ‘तमस’, ‘बसन्ती’, ‘मायादास की माड़ी’, ‘हानुस’, ‘कबीरा खड़ा बाज़ार में’, ‘भाग्य रेखा’, ‘पहला पाठ’, ‘भटकती राख’ आदि। श्री भीष्म साहनी का जन्म 1915 में

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क्रोचे का अभिव्यंजनावाद

अभिव्यंजनावाद का प्रारम्भ पाश्चात्य देशों में हुआ है। शैली को प्रभावित प्रदान करने वाले यूरोप में दो वाद प्रचलित हुए-एक तो अभिव्यंजनावाद और दूसरा कलावाद। अभिव्यंजना को महत्त्व प्रदान करने वालों में वेन्देतो क्रोचे का नाम आता है। डा. गोविन्द त्रिगुणायत ने यह प्रमाणित किया है कि अभिव्यंजनावाद का बीजारोपण पाश्चात्य देशों में हुआ। उन्होंने

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