बीसलदेव रासो

इसके रचयिता नर पति नाल्ह हैं | यह आदिकाल की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है | यह कथा 120 छंदों और 4 कह्यन्हदों में विभक्त है एक प्रेम काव्य है जो संयोग व वियोग के गीतों से युक्त है |इसमें अजमेर के राजा बीसलदेव तृतीय तथा भोज परमार की पुत्री राजमती के विवाह, वियोग […]

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ढोला मारू रा दूहा

इसके रचनाकार “कुशलराय” हैं| ग्याहरवीं सदी में रचित यह ग्रन्थ मूलतः दोहों में लिखा गया है| कछवाहा वंश के राजा नल के पुत्र ढोला और पूगल के राजा पिंगल की रूपवती कन्या मारू (मारवाड़ी) की प्रेमकथा है |यह पश्चिमी राजस्थान की अति लोकप्रिय काव्य कृति है | इस राजस्थानी लोककथा में ढोला और मारवाड़ी को

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पूस की रात

यह प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है ।यह कहानी किसानों ओर कृषि की आर्थिक स्थिति का आइना है। कहानी किसानों की दो मुख्य समस्याओं पर आधारित है -१. क़र्ज़ में डूबा किसान २. खेती की लाभकारी स्थिति। कहानी का मुख्य पात्र हल्क़ु एक किसान है । वह हरवक्त क़र्ज़े में डूबा रहता है। उसकी पत्नी मुन्नी परेशान है क्योंकि वे जो भी कमाते हैं सब क़र्ज़ चुकाने में चला जाता है । हल्क़ु ने मुश्किल से कम्बल ख़रीदने के लिए तीन रुपए जमा किए थे लेकिन इन्हें भी सहना ले जाता है । हल्क़ु पूस की ठंडी रातों में खेत की रखवाली करता है जहाँ उसका एक मात्र साथी ज़बरा नामक कुत्ता होता है । कहानी कुछ इस प्रकार है कि हल्क़ु कड़ाके की ठंड में खेतों की रखवाली करता है । परंतु असहनीय ठंड उसकी नसों के खून को जमा देने वाली होती है । तब पेड़ की पत्तियों को इकट्ठा करके आग जला लेता है । जब तक आग जलती रहती है तो वह पूरे जोश में रहता है पर जैसे ही आग बुझ जाती है , सिर्फ़ आग नीचे कुछ पत्तियाँ सुलगती रहती है। ज़बरा जब भौंक कर उसे बुलाता है तो वो समझ जाता है कि खेत में कोई जानवर घुस गया है । फिर उसे फसल के खाने की भी आवाज़ सुनाई देती है तो वह समझ जाता है कि ये ज़रूर नील गाय हैं । वह इन्हें भगाने के लिए जैसे ही आग वाली जगह से चलता है तभी एक ठंडी हवा का झोंका आकर उसे रोक देता है । वह दोबारा आग वाली जगह के पास आकर लेट जाता है । फिर सुबह जब मुन्नी आकर देखती है तो सारा खेत बर्बाद किया जा चुका था । हल्क़ु सारी रात कुत्ते को गोद में लेकर निकाल देता है । रात की ठंडकी यातना उसे इतना तटस्थ बना देती है की उसे नील गाय द्वारा फसल खा लिए जाने से रंज नहीं होता बल्कि प्रसन्नता होती है कि अब उसे रातों को जागकर पहरेदारी नहीं करनी पड़ेगी । कहानी का अंत यथार्थ पृष्ठभूमि ओर मनोवैज्ञानिक अनुभव के साथ होता है ।हल्क़ु ने स्वयं की खींची हुई लकीरों से बाहर निकलते देख पाठक अचंभित रह जाता है ।यही कहानी का शिल्प-सौष्ठव है । पूस की रात कहानीका नायक हल्क़ु सदैव के लिए अमर हो गया है। आज भी किसानों की कमोबेश यही स्थिति है। कहानी का उद्देश्य ग्रामीण जीवन की कठिनता, कर्ज में डूबे किसानों की विवशता, आर्थिक विपन्नता आदि को उजागर करना है ।  आर्थिक संकटों के कारण किसानों की मजदूरी की ओर आकृष्ट होना पलायनवाद जा संकेत है ।

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ख़ुमान रासो

रासो परम्परा के आरम्भिक ग्रंथों में ख़ुमान रासो का नाम सर्वोपरि है।इसका सर्वप्रथम उल्लेख शिव सिंह सेंगर की कृति “शिव सिंह सरोज” में मिलता है । इसके रचयिता दलपति विजय हैं। रामचंद्र शुक्ल इसे नवीं सदी की रचना मानते हैं ।इसमें राजस्थान के चितौड नरेश खुमण (ख़ुमान) द्वितीय के युद्धों का शिव वर्णन किया गया

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गुल्ली डंडा

यह कहानी फ़रवरी 1924 में हंस पत्रिका में प्रकाशित हुई थी ।यह कहानी बाल मनोविज्ञान ओर असमान सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित है ।बचपन की यादों को लेकर यह कहानी लिखी गई है ।इस कहानी के मुख्य पात्र हैं- गया, मतई, मोहन,दुर्गा आदि। लेखक को याद है कि किस तरह गया चमार गुल्ली डंडे का का

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जैन साहित्य (Jain Literature)

महावीर जैन जोकि तथागत बुद्ध के समकालीन माने जाते हैं , जैन धर्म के मुख्य संत माने जाते हैं जबकि इसकी स्थापन महावीर स्वामी ने की थी | बौद्धों की तरह इन्होने भी संसार के दुखों की और ध्यान दिया | सुख-दुःख बंधन जितने के कर्ण ये जिन्न या जैन कहलाए | महावीर ने अहिंसा

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नाथ साहित्य (Nath Sahitya)

इसका जन्म भी बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से ही हुआ था | सिद्ध साहित्य में आई विकृतियों के फलस्वरूप नाथ साहित्य का जन्म हुआ था | नाथों ने योग साधना को एक स्वच्छ रूप में धारण किया और सामाजिक असमानता, व्यभिचार को ख़त्म करने का प्रयास किया |इस सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित रूप देने का

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सिद्ध साहित्य (Siddh Sahitya)

सिद्ध परम्परा का जन्म बौध धर्म की घोर विकृति के फलस्वरूप माना जाता है| बुद्ध का निर्वाण 483 ईसा पूर्व हुआ |उनके निर्वाण के लगभग 50 वर्षों तक बौद्ध धर्म का खूब प्रचार-प्रसार रहा | बौद्ध धर्म का उदय वैदिक कर्मकांडों व हिंसा के खिलाफ हुआ था |यह धर्म सदाचार और सहानुभूति के आदर्शों पर

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आदिकाल (Aadikaal)

आदिकाल (1050-1375)(महारोज भोज से लेकर हम्मीर देव से पीछे तक) इस काल के विभिन्न नाम चरण काल- गिर्यसन प्रारम्भिक काल- मिश्र बंधु वीर गाथा काल- आचार्य शुक्ल (12 ग्रंथों (विजयपाल रासो,खुम्माण रासो ,कीर्तिलता आदि) आधार पर) आदिकाल- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (इस मत को व्यापक स्वीकृति आचार्य शुक्ल हिंदी का आरम्भ तो सिद्धों की रचनाओं

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हिंदी साहित्य में काल विभाजन

हिंदी साहित्य के 1000 के इतिहास को किस प्रकार पढ़ा जाए इसके लिए इसे विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग काल खण्डों में विभाजित किया है जो इस प्रकार है- हिंदी साहित्य के प्रथम साहित्यकार-“गार्सादत्तासी”(फ्रेंच भाषी पुस्तक- “इस्त्वार द ला लितरेत्युर एन्दुई एन्दुस्तानी”(738 कवियों का जिक्र 72 जा सम्बंध हिंदी से ) शिव सिंह सेंगर – “शिव

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