मैं

मैं हूं तो कुछ नहीं है सामने, मै नहीं तो सारा संसार नजर आता हैमै हूँ तो मै ही हूँ मै के नीचे सब कुछ दब जाता हैमै का मान करते करते मै मै का अहसास तब हुआएक दिन जब मै मै के बोझ के नीचे दब गयामै वो बादल का टुकडा जो अहंकार के […]

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महिला उत्थान में एक पहल “

महिला को कभी भी कम समझने की मत करना कोई भूल, समय आने पर अपने परिवार की लिए उठा लेगी त्रिशूल l नारी को मिलना चाहिए जीवन में उसको उसका संमान, उसे भी अधिकार है कि पूरे हो जाए अपने सारे अरमान l घर में खुश यदि नारी है तो समझो पूरा खुश होगा ये

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वर्तमान में बिगड़ता गृहस्थ जीवन”

एक दूसरे का ख्याल छोड़कर दिन- रात खो गए ऐसे, मानो उन पर असर कर गया हो कोई किसी का मन्त्र l अब तो आपस की बातों में भी दिलचस्पी कम हो रही है, जब से पुस्तक छोड़कर हाथों में आ गया दूरसंचार यन्त्र l घर में कोई भी रिश्तेदार आए या चाहे कोई भी

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” तबादला नीति बनी जी का जंजाल”

चुनाव से ठीक पहले सरकार की एक बात समझ नहीं आई अध्यापकों के लिए मध्य सत्र में ही तबादला नीति चलवाई l सरकार का ये  मानना है कि हमने पूर्ण पारदर्शिता अपनाई, फिर सिफारिश से प्रतिनियुक्ति कर के बड़ी जल्दी दिखाई l महिला-पुरुष में ये दस अंकों का भारी अंतर कैसे होगा पार इस तबादला

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रीतिकालीन आचार्यों का आचार्यत्व

संस्कृत के उत्तरकालीन ग्रंथों में आचार्यों को तीन श्रेणियों निर्धारित की गई है, जिनका वर्णन इस प्रकार है- उद्भावक आचार्य-इसके अंतर्गत उन विद्वानों को रखा गया है जिन्होंने किसी सिद्धांत की उद्भावना की अथवा विवेचना की। जैसे आचार्य वामन, आचार्य अभिनव गुप्त आदि। व्याख्याता आचार्य-इसके अंतर्गत वे आचार्य आते हैं जिन्होंने नवीन सिद्धांतों का अनुसंधान

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रीतिकाल का वर्गीकरण,प्रमुख प्रवृत्तियाँ

रीतिकाल का वर्गीकरण रीति के आधार बना कर इस प्रकार किया जा सकता है- रीतिबद्ध रीतिमुक्त रीतिसिद्ध रीतिबद्ध-रीति के बंधन में बंधे हुए हैं अर्थात जिन्होंने रीति ग्रंथों की रचना की।लक्षण ग्रंथ लिखने वाले इन कवियों में प्रमुख है-चिंतामणि, मतिराम, देव, जसवंत सिंह, कुलपति मिश्र मंडल, सुरति मिश्र, सोमनाथ, भिखारी दास, दुलह, रघुनाथ, रसिकगोविंद, प्रताप

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सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

राजनीतिक परिस्थिति– राजनीतिक दृष्टि से यह काल मुगलों के शासन की वैभव की चरमोत्कर्ष और उसके बाद उत्तर काल में ह्रास, पतन और विनाश का काल था।शाहजहाँ के शासनकाल में मुगल वैभव अपनी चरमसीमा पर था।राजदरबारों में वैभव, भव्यता और अलंकरण प्रमुख था।राजा और सामन्त मनोरंजन के लिए गुणीजनों कवियों और कलाकारों को आश्रय देते

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रीतिकाल का अर्थ और नामकरण

रीतिका अर्थ पद्धति, शैली और काव्यांग निरुपण से है।साहित्य को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है-प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल। फिर पुन मध्यकाल को दो भागों में बांटा गया है- पूर्व मध्यकाल (भक्ति काल) उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) | 1643 विषय 1843 वीं तक के कालखंड को रीतिकाल कहा गया है। नामकरण अलंकृत

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केशवदास

इनका जन्म 1555 ई० में बुन्देलखण्ड के ओरछा में और मृत्यु 1617 में हुई | ये ओरछा नरेश रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के गुरु और राज्याश्रित कवि थे | इनका उपनाम वेदांती मिश्र था | ये निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित थे | ये मुख्यतः रीतिकालीन कवि हैं, परन्तु कुछ रचनाएँ रामभक्ति से सम्बन्धित हैं

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ईश्वरदास

इनकी रामकथा से सम्बन्धित रचना भरत-मिलाप है | इसमें वन में राम से मिलते हुए भरत के करुण और कोमल प्रसंग को आधार बनाया गया है | इनकी दूसरी रचना अंगदपैज भी रामकथा से सम्बंधित है | इसमें रावण की सभा में अंगद के पैर जमाकर खड़े रहने का वीर रस से परिपूर्ण वर्णन किया

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