कृष्ण काव्य का अर्थ एवं उत्पत्ति

मध्यकालीन सगुण भक्ति के आराध्य देवों में सर्वोच्च वेद के कुछ सूक्तों के रचयिता कृष्ण हैं | छान्दोग्योपनिषद् में भी कृष्ण आंगिरस के शिष्य हैं | कृष्ण लीलाओं का सर्वप्रथम उल्लेख अश्वघोष के ब्रह्मचरित में किया गया है | महाकवि हाल द्वारा रचित गाथा सप्तशती में कृष्ण, राधा, गोपी, यशोदा आदि का उल्लेख संस्कृत कवि […]

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मंझन

जन्म=सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में रचना=मधुमालती  1545 नायक= मनोहर, नायिका= महानस नगर की राजकुमारी मधुमालती नायक का एकनिष्ठ (एकतरफा) प्रेम उसे पाने के लिए अनेक कष्ट प्रथम दर्शन में नायिका से प्रेम , उसे पाने के लिए योगी के वेश में घर से निकलकर, रस्ते में एक अन्य सुन्दरी को राक्षस से बचाता है, माँ

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कुतुबन

शुक्ल में प्रेमाख्यान परम्परा का पहला ग्रन्थ माना है | जन्म=1493 में चिश्ती वंश के शेखबुरहान के शिष्य थे | जौनपुर के बादशाह हुसैन शाह के आश्रित कवि थे | रचना=मृगावती 1503 नायक= एक राजकुमार (चंद्रपुर के) (पिता=राजा गणपति देव) नायिका= एक राजकुमारी मृगावती (कंचनपूरी की) (पिता=राजा रूपमुरारी) प्रथम दर्शन में नायिका से प्रेम ,

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मुल्ला दाउद

इनका जन्म= 1493 माना गया है असली नाम दाउद था, सूफी होने के कारण मुल्ला की उपाधि नाम में जुड़ गई | इन्हें एक शिक्षक भी माना गया है | इन्हें अप्रमाणिक रूप से रोज शाह तुगलक और अमीर खुसरो के समकालीन माना जाता है | प्रमुख रचना=चंदायन (लोरकथा नाम ड़ा० माताप्रसाद गुप्त ने दिया) नायक

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मालिक मोहम्मद जायसी

अमेठी के निकट जायस में रहते थे | पिता का नाम= मलिक शेख ममरेज या मलिक राजे अशरफ बचपन में माता-पिता की मृत्यु देखने में कुरूप थे , एक आँख व कान से रहित इसलिए शेर शाह ने इनका मजाक उड़ाया मृत्यु=अमेठी में तीर से, वहीँ समाधि प्रसिद्द सूफी फ़क़ीर=शेख मोहिदी (मुहीउद्दीन) के शिष्य शेरशाह

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सूफी काव्य

सूफी मत का वैचारिक आधार  इसका और प्रचलित नाम – प्रेममार्गी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, प्रेमाख्यान काव्य परम्परा,रोमंसिक कथा है इसमें प्रेम तत्व की प्रधानता  मध्यकालीन प्रेमाख्यान ग्रंथों में इसी रोमांस का चित्रण शुक्ल ने इन प्रेमाख्यानों पर फारसी मसनवियों (नायिका का विवाह प्रतिनायक से हो जाता है और नायक आत्महत्या कर लेता है )प्रभाव माना

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अन्य कवि

बावरी साहिबा– जन्म= 1542-1605 बावरी पंथ, एक प्रमुख संत, उच्च कुल की महिला, व्यक्तिगत जीवनी और काव्य के विषय में कोई विशेष जानकारी नहीं, अकबर की समसामयिक संत सदना= जन्म चौदहवीं शताब्दी में, आदि ग्रन्थ में एक पद , एक निष्ठावान भक्त और साधक थे | संत बेनी= जन्म पंद्रहवीं शताब्दी, जानकारी अप्राप्य, आदिग्रंथ में

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रज्जबदास( रज्जब अली खां)

जन्म-मृत्यु=1567-1689 जन्म स्थान=सांगानेर (राजस्थान) के प्रसिद्ध पठान परिवार में जाति- मुसलमान गुरु का नाम=दादूदयाल (दादूदयाल की अंगबधू की रचना का श्रेय इन्हीं को जाता है) रचनाएँ- सब्बंगी इनकी कृतियों में बानी और सर्वांगी महत्त्वपूर्ण है उदहारण- धुनि ग्रभे उत्पन्नो, दादू योगेंद्रा महामुनि | वेद सुवाणी कूपजल, दुःखसूँ प्रापति होय | शब्द साखी सरवर सलिल, सुख

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सुन्दरदास

जन्म-(1596-1689) में जयपुर की राजधानी धौंसा माता-पिता = परमानन्द खंडेलवाल -सती गुरु= छः साल की आयु में दादू दयाल के शिष्य प्रमुख रचनाएँ- (42 रचनाएँ) ज्ञान समुद्र, सुंदर विलास ( भाषा- परिष्कृत ब्रजभाषा) प्रमाणिक संकलन= सुंदर ग्रंथावली (दो भाग) द्वारा-पुरोहित हरिनारायण शर्मा श्रृंगार रस की रचनाओं के विरोधी थे रचनाओं में भक्ति, योग-साधना और नीति

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मलूकदास

इनका जन्म1574 में इलाहबाद में कड़ा नामक गाँव में हुआ | जन्म अकबर के समय और मृत्यु औरंगजेब के समय हुई | इनके पिता का नाम सुन्दरदास खत्री था | इनके गुरु का नाम पुरुषोत्तम है | इनकी प्रमुख रचनाएँ- रत्नखान, ज्ञानबोध, ज्ञान परोछि(अवधी), भक्तवच्छावली, भक्ति विवेक, बारह खड़ी, रामावतार लीला, ब्रजलीला, ध्रुवचरित, सुखसागर, शब्द

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