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हिन्दी भाषा और उसका विकास
- अपभ्रंश (अवहट्ट सहित) और पुरानी हिन्दी का संबंध
- काव्य भाषा के रूप में अवधि का उदय
- काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा का उदय और विकास
- साहित्यिक हिन्दी के रूप में खड़ी बोली का उदय और विकास
- मानक हिन्दी का भाषा वैज्ञानिक विवरण (रूपगत)
- हिन्दी की बोलियाँ- वर्गीकरण तथा क्षेत्र
- नागरी लिपि का विकास और उसका मानकीकरण
- हिन्दी भाषा-प्रयोग के विविध रूप- बोली, मानक भाषा, संपर्कभाषा, राजभाषा और राष्ट्रभाषा, संचार माध्यम व हिन्दी
हिन्दी साहित्य का इतिहास
- हिन्दी साहित्य का इतिहास- दर्शन
- हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन की पद्धतियाँ
- हिन्दी साहित्य के प्रमुख इतिहास ग्रंथ
- हिन्दी के प्रमुख साहित्य केंद्र, संस्थाएँ एवम् पत्र-पत्रिकाएँ
- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन और नामकरण
आदिकाल
- हिन्दी साहित्य का आरंभ कब और कैसे?
- रासो-साहित्य
- आदिकालीन हिन्दी का जैन साहित्य
- सिद्ध और नाथ साहित्य
- आमिर खुसरो की हिन्दी कविता
- विद्यापति और उनकी पदावली
- आरंभिक गद्य और लौकिक साहित्य
मध्यकाल
- भक्ति आंदोलन के उदय के सामाजिक-सांस्कृतिक कारण
- प्रमुखतया निर्गुण एवं सगुण संप्रदाय
- वैष्णव भक्ति की सामाजिक- सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
- अलवर संत, प्रमुख सम्प्रदाय और आचार्य
- भक्ति आंदोलन का अखिल भारतीय स्वरूप और उसका अंतःप्रादेशिक वैशिष्ट्य
- हिन्दी सन्तकाव्य का वैचारिक आधार
- प्रमुख निर्गुण संत कवि- कबीर, नानक, रैदास
- सन्तकाव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- भारतीय धर्म साधना में सन्तकवियों का स्थान
- कबीर: भक्ति भावना, समाज दर्शन,विद्रोह भावना, काव्य कला
- हिन्दी सूफ़ी काव्य का वैचारिक आधार
- हिन्दी के प्रमुख सूफ़ी कवि और काव्य; मुल्ला दाऊद( चन्दायन), क़ुतुबन (मृगावती), मंजन (मधुमालती), मलिक मोहम्मद जायसी (पद्मावत)
- सूफ़ी प्रेमाख्यान का स्वरूप
- हिन्दी सूफ़ी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- जायसी: प्रेम भावना, लोक तत्त्व कथानक रूढ़ि, काव्य दृष्टि
- हिन्दी कृष्ण काव्य के वभिन्न संप्रदाय: वल्लभ संप्रदाय, अष्टछाप,
- प्रमुख कृष्ण भक्त कवि और काव्य: सूरदास (सूरसागर)नन्ददास (रास पंचध्यायी), भ्रमरगीत परंपरा, गीति परंपरा और हिन्दी कृष्ण काव्य- मीरा और रसखान
- सूरदास: भक्तिभावना, वात्सल्य वर्णन
- हिन्दी राम काव्य के विविध संप्रदाय
- रामभक्ति शाखा के कवि और काव्य- तुलसीदास की प्रमुख कृतियाँ, काव्य रूप और उनका महत्त्व
- तुलसीदास की भक्ति भावना, सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि, लोकमंगल, काव्य दृष्टि
रीतिकाल
- सामाजिक सांस्कृतिक परिपेक्ष्य
- रीतिकाल के मूल स्त्रोत
- रीतिकाल की प्रमुख प्रवृतियाँ
- रीतिक़ालीन कवियों का आचार्यत्व
- रीतिकाल के प्रमुख कवि: केशवदास, मतीराम, भूषण, बिहारीलाल, देव, घनानंद, पद्माकर
- रितिबद्ध, रितिसिद्ध और रीतिमुक्त काव्यधारा
- रीतिकाव्यमें लोकजीवन
- केशव: काव्य दृष्टि, संवाद-योजना,
- बिहारी: सौंदर्य-भावना, बहुज्ञता, काव्यकला
- भूषण: युगबोध, अंतर्वस्तु, काव्यकला
- घनानंद: स्वच्छंद योजना, प्रेन व्यंजना, काव्यदृष्टि
आधुनिक काल
- हिन्दी गद्य का उद्भव और विकास
- भारतेन्दु पूर्व हिन्दी गद्य
- आधुनिकता अवधारणा और उसके उदय की पृष्ठभूमि
- 1857 की राज्य क्रांति और सांस्कृतिक पुनःजागरण
- हिन्दी पुनर्जागरण और भारतेन्दु
- भारतेन्दु और उनका मंडल
- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की हिन्दी पत्रकारिता
द्विवेदी युग
- महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग
- हिन्दी नवजागरण और सरस्वती
- महावीर प्रसाद द्विवेदी: नवजागरण
- काव्य भाषा के रूप में खड़ी बोली की प्रतिष्ठा
- राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि और उनका काव्य
- स्वच्छन्दतावाद के प्रमुख कवि और उनका काव्य
छायावाद और उसके बाद
- छायावाद: सामाजिक- सांस्कृतिक दृष्टि, वैचारिक पृष्ठभूमि, स्वाधीनता की चेतना
- छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ
- छायावाद के प्रमुख कवि- प्रसाद : जीवन दर्शन, सौंदर्य चेतना
- निराला: सामाजिक- सांस्कृतिक दृष्टि, प्रगति चेतना, मुक्त छंद
- पंत: प्रकृति चित्रण, काव्य यात्रा, काव्य भाषा
- महादेवी: वेदना तत्व, प्रगीत, प्रतीक योजना
- राष्ट्रीय काव्य धारा, प्रगतिवादी काव्य और उसके प्रमुक कवि
- प्रयोगवाद: व्यष्टि चेतना
- अज्ञेय: प्रयोगधर्मिता और काव्य भाषा
- प्रयोगवाद और नई कविता
- नयी कविता: व्यष्टि-समष्टि-बोध
- मुक्तिबोध- समाज बोध, फंतासी
- नई कविता के कवि, समकालीन कविता-काल संसक्ति और लोक संसक्ति
- रघुवीर सहाय- राजनीतिक चेतना, काव्य भाषा
- कुंवर नारायण- मिथकीय चेतना, काव्य दृष्टि, समकालीन साहित्यिक पत्रकारिता
हिन्दी साहित्य की गद्य विधाएँ
हिन्दी उपन्यास
- प्रेमचन्दपूर्व हिन्दी उपन्यास- परीक्षागुरु, चंद्रकांता- वस्तु और शिल्प।
- प्रेमचंद युगीन उपन्यास- गोदान- मुख्य पात्र, यथार्थ और आदर्श, वस्तु-शिल्प वैशिष्ट्य
- प्रेमचन्दोत्तर उपन्यास- शेखर एक जीवनी- वस्तु-शिल्पगत वैशिष्ट्य, मैला आँचल- वस्तु-शिल्प, आंचलिकता। बाणभट्ट की आत्मकथा- इतिहास आर संस्कृति चेतना, भाषा-शिल्प वैशिष्ट्य
- प्रेमचंद के परवर्ती उपन्यासकार- जैनेंद्र, यशपाल, अमृतलाल नागर, फणीश्वरनाथ रेणु, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, निर्मल वर्मा, नरेश मेहता, श्रीलत शुक्ल, राही मासूस रजा, रांगेय राघव तथा मन्नु भंडारी
हिन्दी कहानी
- 20वीं सदी की हिन्दी कहानी और प्रमुख कहानी आंदोलन। कहानी और प्रमुख कहानीकार- प्रेमचंद और प्रसाद की कहानी कला,
- प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी कहानी और नाई कहानी, संवेदना और शिल्प।
हिन्दी नाटक
- हिन्दी नाटक और रंगमंच, हिन्दी नाटक और भारतेन्दु- भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी- यथार्थ बोध।
- प्रसाद के नाटक: चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना, नाट्य शिल्प
- प्रसादोत्तर नाटक: अंधायुग, आधे-अधूरे – आधुनिकता बोध, प्रयोगधर्मिता और नाट्य भाषा
- हिन्दी एकांकी
हिन्दी निबंध
- हिन्दी निबंध के प्रकार और प्रमुख निबंधकार-बालकृष्ण भट्ट, रामचंद्र शुक्ल- चितामणि, अंतर्वस्तु और शिल्प
- शुक्लोत्तर निबंध और निबंधकार- हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, कुबेरनाथ राय, विद्यानिवास मिश्र, हरिशंकर परिसाई- संस्कृति बोध, लोक-संस्कृति
हिन्दी आलोचना
- हिन्दी आलोचना का विकास और प्रमुख आलोचक- रामचंद्र शुक्ल, नंददुलारे वाचपेयी, हज़ारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, डाo नागेंद्र, डाo नामवर सिंह, विजयदेव नारायण साही
- हिन्दी की अन्य गद्य विधाएँ- रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा साहित्य, आत्मकथा, जीवनी और रिपोर्टाज
काव्य शास्त्र और आलोचना
- हिन्दी काव्य शास्त्र का इतिहास
- काव्य हेतु और काव्य प्रयोजन
- प्रमुख सिद्धांत- रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति और औचित्य-परिचय
- भारतमुनि का रस सूत्र और उसके प्रमुख व्याख्याकार, रस के अवयव, रस निष्पत्ति, साधारणीकरण
- रीति गुण, दोष
- शब्द शक्तियाँ और ध्वनि का स्वरूप
- अलंकार–यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह,भ्रांतिमान, अतिशयोक्ति, अन्योक्ति, समासोक्ति, अत्युक्ति, विशेषोक्ति, दृष्टांत, उदाहरण,प्रतिवस्तूपमा, निदर्शना, अर्थांतरन्यास, विभावना, असंगति तथा विरोधाभास
- प्लेटो और अरस्तू का अनुकरण का सिद्धान्त तथा अरस्तू का विरेचना का सिद्धांत
- लोंज़ाइनस: काव्य में उदात्त तत्त्व
- क्रोंचे का अभिव्यंजनावाद
- आई ए रिचर्ड्स- संप्रेषण सिद्धांत
- स्वच्छंदतावाद, यथार्थवाद, सरंचनावाद, उत्तर सरंचनावा, मार्क्सवाद, मनोविश्लेषणवाद, अस्तित्ववाद और उत्तर आधुनिकता
- समकालीन आलोचना की कतिपय अवधारणाएँ: विडंबना (आयरनी) अजनबीपन (एलियनेशन) विसंगति (एब्सर्ड) अंतर्विरोध (पैराडाक्स) विखंडन (डिक्नस्ट्रक्शन) ।
- आधुनिक हिन्दी आलोचना और प्रमुख आलोचक- रामचंद्र शुक्ल और रस-दृष्टि तथा लोकमंगल की अवधारणा
- नन्दुलारे वाचपेयी-सौष्ठववादी आलोचना।
- रामविलास शर्मा- मार्क्सवादी समीक्षा
- मिथक, फंतासी, कल्पना, रटिक और बिंब