किसी भाषा के मूलभूत इकाई स्वनिम कहलाती है।स्वनिम शब्द स्वन से बना है।स्वन का अर्थ है -वाक् ध्वनि। भाषा विशेष में प्रयोग करने पर यह वाक् ध्वनि अर्थभेदक होकर स्वनिम कहलाती है।स्वन या ध्वनि या ध्वनि भाषा की लघुत्तम इकाई मानी जाती है।

परिभाषा-

  • ड़ा० भोलानाथ- स्वनिम किसी भाषा की वह अर्थभेदक ध्वन्यात्मक इकाई है, जो भौतिक यथार्थ न होकर मानसिक यथार्थ होती है तथा जिसमें एक से अधिक ऐसे उपसर्ग होते हैं, जो ध्वन्यात्मक दृष्टि से मिलते-जुलते हैं, अर्थभेदक में असमर्थ तथा आपस में मुक्त वितरक होते हैं ।
  • ड़ा० तिलक- भाषा विशेष के उच्चारित पक्ष की विषम स्वनिक अर्थभेदक तत्त्व की इकाई स्वनिम है ।
  • डेनियर जोन्स- स्वनिम मिलती-जुलती ध्वनियों का परिवार है।

स्वनिम व्यवस्था दो प्रकार की होती है-

खंड्य ध्वनियाँ

खंड्येतर ध्वनियाँ

खंड्य ध्वनियाँ

यह दो प्रकार की होती है- स्वर (11)ओर व्यंजन (33) दो अतिरिक्त व्यंजन=ड़, ढ़

खंड्येतर ध्वनियाँ

ध्वनियों के कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं , जिन्हें ध्वनियों से अलग नहीं किया जा सकता, परंतु ये स्वयं में ध्वनि नहीं हैं। इन्हें ही खंड्येतर ध्वनियाँ या ध्वनि गुण कहा जाता है जो इस प्रकार हैं-

मात्रा– किसी ध्वनि के उच्चारणमें लगा समय ध्वनि की मात्रा कहलाता है । मात्रा के आधार पर दो स्वर- ह्रस्व ओर दीर्घ

बलाघात– जब किसी ध्वनि ओर उच्चारण करते समय विशेष रूप से बल दिया जाता है ।

सुर– ध्वनि को उत्पन्न करने वाली कम्पन-आवृत्ति सुर का प्रमुख कारण होती है ।इसके आधार पर ही इसे उच्च, निम्न और सम किया जा सकता है ।

अनुनासिकता– इसे स्वर गुण के रूप में जाना जाता है ।यह अर्थभेदक इकाई है- माँग-मांग

संगम या संहिता-किन्ही दो भाषिक इकाइयों के बीच कुछ समय के लिए रुकने पर उस अनुच्चरित समय का सीमांकन, संगम या संहिता कहलाता है। जैसे- खा+या= खाया, बन+आया=बनाया

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