प्रेम से इसे स्वीकार करो
जो लाया हूँ भेट करो स्वीकार प्रिय !
अब न तुम तुम हो
न मैं मैं हूँ
हम दोनों हैं एक प्रिय
सूना-२ सा दिन
बेचैन है रात प्रिय
भँवरे ऐसे गुम -सुम हैं
जैसे अमावस्या का चाँद प्रिय
कब तक ऐसे चुप बैठोगी?
कब तोड़ोगी रार प्रिय
मैं तो हूँ प्यासी धरती
कब बरसोगी बन प्यार प्रिय
द्वारा: उमेश कुमार
ESHM, GMSSSS-SHAHZADPUR
AMBALA HARYANA