प्रेमचंद द्वारा रचित निमंत्रण कहानी नवम्बर 1926 में सरस्वती पत्रिका मेंप्रकाशित हुई यह कहानी अकर्मण्य और धरम के नाम पर भी सुस्वादु व्यंजनों परलार टपकाने वाले पाखंडी पंडितों पर करारा व्यंग्य हैं कहानी का मुख्य पात्र हैपंडित मोटेराम शास्त्री ।खाने का नाम आने के पर ही इनकी बार–बार
जीभ लपकती है ।ऐसे में इन्हें पता चलता है की रानी साहिबा ने 7 ब्राह्मणों कोइच्छापूर्ति भोजन का निमंत्रण दिया है पंडित जी की बाँछे खिल उठती है पंडित मोटे राम कुचक्र रचकर अपने पाँचों पुत्रों और पत्नी को पुरुष वेश पहनाकरभोजन के लिए प्रस्थान कर रहे होते हैं कि उनका मित्र प्रतिस्पर्धी पंडित चिंतामणी आ टपकते हैं । पंडित चिंतामणि भी खाने के लालची हैं। ओर वहसमझ जाते हैं कि कहीं से न्यौता आया है तो वह भी वहाँ जाने के इच्छुक होते हैं ।पंडित मोटे राम उन्हें साथ नहीं ले जाना चाहते थे । इसलिए दोनों में बुरी तरह सेकहासुनी और मार– पिटाई तक हो जाती है । रानी साहिबा के यहाँ भोजन में थोड़ासमय था तो पंडित मोटेराम को जाने क्या सूझी कि वह पंडित चिंतामणि कोभोजन के लिए लिवाने चले गए । रानी साहिबा के सामने उनकी चाल आ जाती हैऔर रानी साहिबा के सामने उनकी चाल आ जाती है ।रानी साहिबा खाने के स्थानपर कुत्ते छुड़वा देती है ।पूरा परिवार बिना भोजन की यह लौट आता है ।औरप्रतिद्वंदी पंडित चिंतामणि पूरे ठाठ से भोजन करते हैं । कहानी की भाषा सहज, सरल और प्रवाहमयी है संवादों द्वारा दोनों पंडितों के चरित्र को पूरी तरह उजागरकिया गया है ।वर्णात्मक शैली में रची यह कहानी हास्य को जन्म देती है औरसोचने पर विवश करती है ओर सोचने पर विवश करती है कि आदमी खाने केलिए आदमी कितना गिर सकता है कि अपनी संतान के पिता किसी अन्य को औरपत्नी को पुरुष बना दे । रानी साहिबा का व्यवहार भी कोई अच्छा प्रभाव नहींछोड़ता ।पंडित चिंतामणि भी अपने मित्र को नीचा दिखाते हैं ।वस्तुत यह कहानीएक दिखावटी समाज का प्रतिनिधित्व करती है जहाँ सब स्वार्थपूर्ति में लगे हैं।कहानी जा उद्देश्य दिशाभ्रमित लोगों को वास्तविकता का आइना दिखाना है किधर्म के नाम पर किस प्रकार ढोंग रचे जाते हैं ।